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Friday, September 16, 2016

पल भर का प्यार‬: १०

#‎पल_भर_का_प्यार‬: १०

राज और अनुज काफी अच्छे मित्र थे, कॉलेज के चार सालों में दोनों ने अधिकतर वक़्त साथ बिताए थे। अनुज का घर बक्सीपुर में था तो राज सिंघड़िया में किराए के मकान में रहता था। अनुज कंप्यूटर साइंस (सीएस) विषय से इंजीनियरिंग की पढाई कर रहा था तो राज इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी (आईटी) में महारथ हासिल करने में लगा हुआ था। क्योंकि दोनों विभागों के विषयों में ज्यादा अंतर नहीं होता, इसलिए दोनों को पढाई में कोई दिक्कत भी नहीं होती। दोनों की छुट्टियाँ अक्सर साथ बीतती थी। कभी अनुज राज के कमरे पर आता तो कभी राज अनुज के घर पर पर डेरा डाले रहता। परन्तु परीक्षा के दिनों में अनुज हमेशा राज के कमरे पर पड़ा रहता था।  पौने चार साल की दोस्ती में दोनों इतने करीब हो गए थे, कि  दोनों को किसी और की फिक्र नहीं रहती, एग्जाम के दिनों में तो पढ़ लेते पर बाकि दिनों में घूमना, फिरना, गेम खेलना, मूवी देखना होता था। 

कॉलेज के अंतिम दिन चल रहे थे, एग्जाम ख़त्म हो चुके थे पर प्रैक्टिकल वाईवा नहीं हुआ था। वाईवा का डेट भी आ चूका था। मई महीने के गर्म भरे मौसम की खड़ी दुपहरी में, राज के कमरे में अनुज और राज दोनों लैपटॉप पर २४ (टवेंटी फोर) सीरियल देख रहे थे। कमरे में कूलर की हवा हनहनाते हुए चल रही थी, कुछ ही समय पहले दोनों ने नाश्ता किया था। तभी राज का मोबाइल घनघनाने लगा। चूँकि स्पीकर पर वॉल्यूम लेवल अपने चरम पर था, इसलिए मोबाइल का आवाज दोनों में से कोई नहीं सुन सका। सीरियल ख़त्म होने के बाद राज की नजर अपने मोबाइल पर पड़ी, देखा तो अंकिता के नंबर से मिस्ड कॉल था। 


कॉलेज के दिन ख़त्म होने के कारण, नौकरी के लिए सब हाथ पैर मार रहे थे। कॉलेज ने तो प्लेसमेंट नहीं कराया इसलिए नौकरी पाने के लिए दोनों, वो सब कुछ ट्राई करते, जिससे उनको नौकरी मिल जाये। नौकरी के लिए दूसरे शहरों में होने वाले वाकिंग में राज और अनुज दोनों साथ जाते, सरकारी नौकरियों के लिए भी दोनों साथ में आवेदन करते। अधिकतर प्रतियोगी परीक्षाओं और वाकिंग में अंकिता भी राज के साथ ही जाती।
"भाई तुमको मेरे फ़ोन का रिंगटोन नहीं सुनाई दिया था क्या?", राज अनुज से पूछा, "नहीं तो", अनुज ने अपना सिर ना में हिलाते हुए उत्तर दिया।
"यार अंकिता की कॉल आई थी", अनुज बोला और अपने मोबाइल से अंकिता को कॉल करने लगा। 
अंकिता राज की क्लासमेट थी, और दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों अक्सर एक दूसरे का हाल चाल जानने के लिए फ़ोन करते, लम्बी बातें करते रहते थे। 
अंकिता से बात करते हुए पता चला कि आने वाले रविवार को एक सरकारी संस्था में नौकरी के लिए लिखित परीक्षा है, जिसका एडमिट कार्ड मेल पर आ चूका है, अंकिता से बात करते हुए राज ने अनुज को बोला, "भाई, अपना एडमिट कार्ड चेक करना सेंटर कहाँ है?" 
इधर अनुज लैपटॉप में एडमिट कार्ड चेक करने लगा और राज अंकिता से बातें करते हुए कमरे में ही टहलने लगा। कुछ मिनटों के बाद अनुज बोला, "यार, अपना परीक्षा केंद्र तो लखनऊ में हैं।"
 जैसे ही राज ने अंकिता को ये बात बताई, अंकिता ने राज को अपने साथ में ही रेलवे टिकट बुक करने को बोल दिया। अनुज को शनिवार का टिकट बुक करने को बोलकर राज अंकिता से बातें करते रहा। 
कुछ मिनटो के बाद जब राज और अंकिता की बात-चीत ख़त्म हुई, अनुज ने बताया कि शनिवार शाम का टिकट हो गया है। 
"ठीक है", राज ने बोला और दोनों फिर से टवेंटी फोर सीरियल देखने में व्यस्त हो गए। 
वाईवा भी ख़त्म हो चुके थे। शनिवार का दिन आ गया, पुर्नियोजित समयानुसार शाम को तीनो दोस्त गोरखपुर प्लेटफार्म नंबर १ पर मिले। राज अकेले आया था, जबकि अनुज के साथ उसके पिताजी और अंकिता के साथ उसके चाचाजी थे। राज, अनुज और अंकिता तीनो के सीट एक ही कूपे (कम्पार्टमेंट) में थी। ट्रेन का समय हो गया, तीनो ने सबसे आशीर्वाद लिया और ट्रेन में जा बैठे। ट्रेन चलने लगी, सबने हाथ हिलाकर टाटा बॉय किया।  

अनुज अपने शर्मीले स्वाभाव के कारण किसी से बातचीत शुरुआत करने से कतराता था। परन्तु उसे सामरिक, राजनीतिक, विज्ञान, अविष्कार, प्रौद्योगिकी, रक्षा मामलों में वाद-विवाद करना अच्छा लगता था। उसे इन विषयों पर वाद-विवाद करके कोई हरा दे, ऐसा मुमकिन ना था। इससे पहले कभी भी अंकिता और अनुज का मुलाकात कॉलेज में कई  बार हुआ था परन्तु आमने-सामने ऐसे कभी नहीं बैठे थे। राज अपने वाकपटुता से किसी भी विषय पर चर्चा करने लग जाता। राज और अंकिता बाते करने में मशगूल हो गए और अनुज अपने साथ चेतन भगत की किताब "रेवोलुशन २०-२०" में व्यस्त हो गया। अनुज और अंकिता दोनों की आपस में बातचीत ना के बराबर ही थी, राज को रहना उचित नहीं लग रहा था और उसने बात करते करते "भारतीय सरकार द्वारा चीन निर्मित सेलुलर प्रौद्योगिकी यंत्रों का भारत में प्रतिबंध" टॉपिक पर चर्चा करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते कूपे में बाकि के तीन सीटों पर बैठे विद्वजन गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, बहुराष्ट्रीय कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर और एक सरकारी कंपनी में एचआर थी जो इस चर्चा में शामिल हो गए। राज, अंकिता और विद्वजन के चर्चा में अनुज चुप रह जाए ये मुश्किल था, अनुज भी अपनी बाते स्पष्ट तथ्यों के साथ वाद विवाद करने लगा। 
जहाँ अंकिता और बाकि विद्वजन भारतीय सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को अनुचित ठहरा रहे थे वहीं राज और अनुज भारतीय सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को उचित बताने के लिए तरह तरह के आधारों, विवरणों, घटनाओं, समाचारों का जिक्र करने लगे। चर्चा काफी लम्बी खींचने लगी तो प्रोफ़ेसर जी ने अनुज, राज और अंकिता तीनो के तर्कों, विश्लेषणों, आधारों का प्रशंसा करते हुए बोले, "रात काफी हो चुकी है, और आपने बहुत अच्छा परिचर्चा किया, मुझे काफी अच्छा लगा कि आप लोग, ऐसे विषयों पर भी चर्चा कर रहे हो" और अनुज के मुखातिब होकर बोले, "अगर आपके पास वक़्त हो तो मेरे ऑफिस में आकर मिलिए"। 
राज और अंकिता प्रोफ़ेसर जी के तरफ देखने लगे तो वो फिर से बोले,"आप लोग भी आ सकते है", तीनो दोस्तों के समझ में कुछ नहीं आ रहा था और एक प्रश्न के भाव लेकर प्रोफ़ेसर जी को एकटकी लगाए देख रहे थे, कुछ देर बाद प्रोफेसर जी बोले, "दरअसल मुझे एक तकनीकी सहायक की जरुरत है, यदि रूचि हो तो शायद आप में से कोई मेरी सहायता कर सके"।
"सर कितने सहायकों की जरुरत है? दो तीन नहीं है क्या?" अंकिता ख़ुशी प्रकट करते हुए पूछी और फिर बताती गई, "सर तीन नहीं तो कम से कम हम में से दो को सहायक रख कर देखिये, आपको निराश नहीं करेंगे। अनुज को तो देख ही लिए आप उसके जैसा होनहार, तर्क-संगत, विद्वान् आपको नहीं मिलेगा, हम आपसे ज़रूर मिलेंगे, हम सोमवार सुबह गोरखपुर लौट जाएंगे, आपसे हम कब मिले?" 

"मैं कल ही लौट जाऊँगा, सोमवार को ही मिल लो...... पर तैयारी करके आना", प्रोफेसर जी ने बोला। 
"ठीक है सर, हम तीनो आपसे सोमवार को १० बजे सुबह मिलेंगे, आपके ऑफिस में " अंकिता कौतुहल में ही बोल दिया, बिना अनुज और राज से पूछे। 
अंकिता आँखे बड़ी करके मुस्कुराते हुए राज और अनुज की तरफ देख रही थी, जैसे बैठे बिठाये उनको नौकरी मिल गई। अनुज और राज दोनों और संजीदा हो गये। रात के दस बज चुके थे, तीनों ने मिलकर भोजन किया और अपने अपने सीट पर जाकर सो गए।  


भोर के ३ बजे तीनो लखनऊ पहुंच गए, स्टेशन से ऑटो लिया, लखनऊ एयरपोर्ट के पास तीनों को जाना था। ऑटो के एक तरफ राज बैठ गया और अंकिता को बीच में बैठने के लिए इशारा किया। अंकिता बीच में बैठ गई इसके बाद अनुज ऑटो में बैठा। एक तरफ राज था तो दूसरे तरफ अनुज था और बीच में बैठी अंकिता थी। ऑटो में ग़ज़ल गायकी के बादशाह जगजीत सिंह का गाया "ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो......" गीत बज रहा था, तीनो एक दूसरे को देखने लगे। 
अचानक राज ने कहा, "यार बचपन ही सही था, जो हम मौज में रहते थे, किसी चीज़ का फिक्र नही था", राज की बात सुनकर अंकिता और अनुज ने हाँ में सिर हिलाया, और ऑटो स्टेशन के पार्किंग से निकल  मुख्य मार्ग पर आ गई। राज की बातें सुनकर ऑटो वाला बोला, "भैया जिंदगी है ये, बढ़ती ही जाएगी, कोई रोक नही पायेगा", ऑटो वाले की बात सुनकर तीनो मुस्कुराने लगे। रेलवे स्टेशन से एयरपोर्ट जाने में लगभग आधे घंटे लगते है, ये सोचकर राज ऑटो में ही सो गया। अनुज और अंकिता चुपचाप बैठे गाने सुन रहे थे। 
अगला ग़ज़ल जगजीत सिंह जी के आवाज में था "झुकी झुकी सी नजर बेक़रार है कि नही, दबा दबा ही सही दिल में प्यार है कि नही. ... . . . . . . . . . ."
ऑटो वाला ऑटो को गति के साथ भगा रहा था, सड़क एकदम सुनसान थी, कभी कभार कुत्तों का भौंकना सुनाई देता था, वो भी पल भर में दूर चला जाता था। राज एक किनारे सोया हुआ था,ऑटो के अंदर घुप अँधेरे में अनुज और अंकिता ऑटो में चुपचाप गाने सुनने में व्यस्त थे। 
अनुज और अंकिता एकाध पल के लिए एक दूसरे को देख लेते थे, और आँखे मिलते ही मुस्कुरा देते थे। "तुम जो इतना मुस्कुरा रहें हो, क्या ग़म है जो छिपा रहे हो.... . . .. . . ." ग़ज़ल बज रहा था जब अचानक एक मोड़ पर ऑटो दाएं तरफ मुड़ा और राज अंकिता के ऊपर आ गिरा। राज के अंकिता के तरफ अचानक आने से, अंकिता अनुज के और करीब सरक गई। ये सब इतना अचानक हुआ कि किसी को कुछ पता ना चला। राज की नींद टूट चुकी थी और ऑटो वाले को डाँटते हुए बोला, "अरे भैया थोड़ा देखकर चलाइये"।
"ठीक है भैया", ऑटो वाले ने बोला और ऑटो को सड़क पर सरपट दौड़ाये रखा। 
सामने की तरफ से आने वाले इक्का दुक्का गाड़ियों के आवाजाही से कभी कभार ऑटो में रोशनी आ रही थी। इन्ही रौशनी में अनुज और अंकिता एक दूसरे को तिरछी नज़रो से देख रहे थे। कुछ समय बाद ऑटो में जगजीत सिंह जी की पत्नी चित्रा सिंह जी का गाया गीत "तू नही तो जिंदगी में और क्या रह जाएगा.........." बजने लगा। इन गीतों के तरत्नमय ने ऑटो में अनुज और अंकिता के दरम्यान एक शमां जला दी थी, जिससे राज और ऑटो चालक दोनों अनभिज्ञ थे। 
अनुज और अंकिता दोनों किसी द्विस्वपन में खो गए ऐसा प्रतीत हो रहा था, "भैया आगे से बाएं ले लो" राज ने ऑटो चालक को कहा तो अनुज और अंकिता की तन्द्रा टूटी। इतने में अंकिता के बुआ का घर आ गया और अंकिता को उसके बुआ के घर छोड़कर राज और अनुज अपने एक मित्र के घर चले गए। सुबह होने में अभी कुछ घंटे बाकि थे और परीक्षा नौ बजे से था।
राज बिस्तर पर पड़ते ही सो गया, पर अनुज की आँखों से नींद गायब हो थी। इधर अनुज का ये हाल था तो उधर अंकिता भी अपने बुआ के बिस्तर पर पड़े पड़े किसी सपने में खो चुकी थी। 

अंकिता और अनुज के परीक्षा केंद्र एक ही थे और राज का करीब के ही दूसरे विद्यालय में था।  
   

ये कहानी थोड़ी लंबी है इसलिए इसे कई भाग में लिखना पड़ेगा। 
पल भर का प्यार‬: १० का दूसरा पार्ट जल्दी ही लिखूँगा........ 

तब तक बाकि के पोस्ट पढ़ सकते है!



Tuesday, May 15, 2012

परिवार और प्यार



आज १५ मई २०१२, विश्व परिवार दिवस है, यानि "वर्ल्ड'स फॅमिली डे", आप सभी को मेरी तरफ से शुभकामनाये, आप अपने परिवार के साथ सुखी, समपन्न, समृधि, सफल जीवन का आनंद ले......


ये बहुत अच्छा है कि इसी बहाने मै अपनी बात रख रहा हूँ, जो काफी दिनो से मेरे दिमाग में चल रही थी, कौध रही थी | यहाँ मै इक सवाल करना/पूछना/रखना चाह रहा हूँ (अपने बड़ो से, या असल कहिये कि आप बड़ो से इसका सीधा सरोकार है) और बताना चाह रहा हूँ {अपने हमउम्र भाइयो और बहनो से, क्यूकि हमारे दिमाग में कुछ गलतफहमिया है, या ये कहिये कि हम कुछ पथभ्रम में है (अगर बहन शब्द बुरा लगे तो माफ़ी चाहूँगा)}:-

हम सभी जानते है कि परिवार साधारणतया पति, पत्नी और बच्चो के समूह को कहते हैं, परन्तु हम भारतीयो के परिवार में तीन या तीन से अधिक पीढियो के व्यक्तियो का समूह होता है | आजकल की दुनिया (समय) में हम खुद को आधुनिक (मोडर्न) कहते है, अंग्रेजी में बाते करना हमारा सौभाग्य बनता है, लो-वेस्ट जींस पहनने से नही कतराते, पार्टियो में या वैसे भी सिगरेट, शराब (व्हिस्की कहना सही होगा) पीना स्टेटस की बात होती है पर, जब कोई लड़का खुद की पसंद की लड़की से शादी करने की बात करता है तो समाज, रिश्तेदार की समझ पता नही कहा से आ जाती है!!!

अब तक तो आप समझ ही गये होँगे कि मै किस मसले के बारे में बात करना चाह रहा हूँ:- जी हाँ! मै अपने गोरखपुर में रहने वाले पढ़े-लिखे सभ्य कहलाने वाले बुद्धिजीवी वर्ग की बात कर रहा हूँ, जो समझ में खुद को इक पढ़ा-लिखा समझदार नागरिक मानते है, वो परिवार के लिए बहुत ही मेहनत करते है | बच्चो को अच्छे से अच्छे स्कूल में एडमिशन करवाते है, दिन भर ऑफिस, खेत, व्यापार में काम करते है, बच्चो को अच्छी से अच्छी सुविधाए देते है [शायद यहाँ आपमें से कुछ लोग मेरे विचारो से सहमत ना हो, पर हर इक माँ-बाप अपने बच्चो को अच्छा-से-अच्छा शिक्षा, सुविधा देने का प्रयास ज़रूर करते है, परन्तु कुछ अभागो के नसीब में ये नही होता {मेरा अभागा कहने का मतलब साफ़ यही है कि कुछ (बहुत कम) माँ बाप ऐसे भी होते है जो आर्थिक सम्पन्नता होने पर भी अपने बच्चो को उनके मूल आवश्यकताओ से दूर रखते है} पर यहाँ मै संपन्न वर्ग के अधिकतर लोगो की बात कर रहा हूँ जिनको सुविधाए दी जाती है, या जो सुविधाए देते है] | 

पढ़ने-लिखने के परिवार लड़के/लड़की के वर/वधु बनने का सपने देखने लगते है और उनको इस पारिवारिक-पवित्र-सूत्र बंधन में बांधने के लिए तत्पर हो जाते है, उनका ये दायित्व होता है, जिसको वो अपनी कार्यकुशलता से करना चाहते है, और करते भी है (मै मानता हूँ, और उनकी इस कुशलता की प्रशंसा भी करता हूँ) | 

पर सबसे मुश्किल तब होता है जब उनका लड़का/लड़की (जो विजातीय लड़की या लड़के से प्यार करने वाले) की शादी की जाती है (या करने की तैयारी की जाति है), तो सम-जाति-बिरादरी का ख्याल सबसे पहले आता है, मै यहाँ स्पष्ट करना चाहूँगा कि यहाँ मै केवल प्यार करने वाले व्यक्ति (लड़का/लड़की दोनो) की बात करना चाहूँगा, लड़के-लड़की से उसके बचपन में {२४ साल से पहले, (क्यूंकि उसके पहले शादी होना तो मुश्किल ही होता है)} कहा/बताया जाता है की वो जिस लड़की/लड़के को पसंद करेगा/करेगी, उसका/उसकी विवाह उसी लड़की/लड़के से करा दी जाएगी, हो जाएगी | परन्तु जब वक्त आता है अपने बातो को रखने को, तो, वो अपने लड़के/लड़की की शादी के लिए सम-जाति की तरफ चले जाते है, या यो कहिये कि उनकी शादी सम-जाति में ही करा दी जाती है, उनके प्यार को भुलवा दिया जाता है या फिर उनके प्यार का, भावनाओ का सरेआम क़त्ल कर दिया जाता है | जब लड़का/लड़की उनसे अपने दिल की बात बताता है, समझाना चाहता है, कहना चाहता है तो वो बुद्धिजीवी, पढ़ा-लिखा, सभ्य वर्ग (हमारे पूज्यनीय, आदरणीय) सीधे इन बात पर ही आते है, ये तर्क रखते है हमारे सामने:-

१. वो अलग बिरादिरी की है, हमारी रहन-सहन कैसे सीख पायेगी?? 
२. तुमको पढ़ाने-लिखने के लिए हमने क्या कुछ नही किया? इतने पैसे खर्च किये तुम्हारे पढाई पर (लडको के मामलो में अक्सर सुनने को मिलता है) |
३. समाज की सोचो, लोग क्या कहेंगे? 
४. तुम्हारे परिवार में पहले किसी ने पहले ऐसा नही किया, तुम सोच भी कैसे सकते हो??
५. तुमसे छोटी तुम्हारी भाई-बहने है, उनपर क्या असर पड़ेगा??
६. उस लड़के/लड़की के लिए तुम हमे छोड़ रहे हो?

वो भी जानते है कि इन तर्कों का कोई महत्व नही है, खासकर उन्ही की अपनी व्यक्तिगत सोच में भी पर समाज को ज्यादा सोचते है | और आखिर में जब लड़का या लड़की उनको कहते है की वो अपनी मर्ज़ी का करेंगे तो पूज्यनीय बड़े लोग सीधे सम्बन्ध तोड़ने की बात पर आ जाते है| और उनका यही उत्तर होता है "जब अपनी ही करनी है तो हमसे क्यू कह रहे हो, जाओ जो मान में आये करो, पर आज के बाद हमारी शक्ल भी देखने नही आना, आज से हम तुम्हारे लिए मर गये |" जबकि वहा पर लड़का या लड़की कोई भी अपने परिवार को छोड़ने कि बात भी नही करता है, या परिवार छोधने की इक सोच भी अन्दर तक झकझोर देती है | 

मै अपने आदरणीयो से ये प्रश्न करना चाहता हूँ कि, "क्या वजह है कि इतने आधुनिकता में जीते हुए भी हमारे पूज्यनीय ऐसा करते है, समाज का डर अपने बच्चे के प्यार से बढ़कर है या फिर उन्हें अपने बच्चो के पसंद पर भरोशा नही होता?"

और मै अपने हमउम्र और स्नेहिल छोटो से चाहूँगा कि वो भी अपना विचार रखें, शायद हमे कुछ नया जानने/सीखने को मिल जाये|


नोट:- ये पूरा लेख मैने खुद तैयार किया है, या यो कहिये मेरे दिमाग के किसी कोने में बैठे एक लेखनी का कमाल है जो कुछ बुद्धिजीवियो के सोच को समझना चाहता है, या फिर किसी के दर्द का उल्लेख है, कटाक्ष है............ मैंने अपने शब्दो को आपके सामने रखने में काफी एहतियात रखा है और अगर इसके बाद भी कोई त्रुटी रह गयी हो तो माफ़ी चाहूँगा.........

यदि कोई टिपण्णी करना, सुझाव देना चाहते है तो ज़रूर लिखे, आपके शब्दो का इंतज़ार है |

परिवार और प्यार
सप्रेम, 
राजेश्वर सिंह 'राज्श'
www.rajeshwarsh.blogspot.in


Saturday, September 24, 2011

हमारा नाम

Hi I am Rajeshwar Singh from New Delhi INDIA.........



तेरे याद ने आज फिर से हँसा दिया,
क्यूंकि तुमने अपना नाम मेरे नाम से जोड़ लिया|
जब भी सोया मै तेरे जुल्फों की छाँव में,
हर इक सुबह की भोर को शाम बना दिया||
तेरे अल्फाजो का खनक कभी दूर जाता नही,
इस तरह तुमने आज फिर मेरा जाम भर दिया||
आँखों की ज़ंजीरो में कैद है आज भी वो पल,
जो समय, दिन, रात हमने साथ बिताया||
तू बनी रहती है बावरी मेरे सामने यूँ ही,
सारी पहर घडी को भी आज ठहरा दिया|
महफ़िलो की रंगीनियों में चमक और बढ़ गयीं,
जब तुमने मेरा नाम अपने नाम से जोड़ लिया||

हमारा नाम:-
By:
राजेश्वर सिंह "RazzU"

Thursday, August 25, 2011

Love

Hi I am Rajeshwar Singh from New Delhi INDIA.........



For love from love,
To love by love.
I pour all my feelings on you,
but scared about tomorrow.
I know you are always with me,
but I scared about your sorrows.
You are also aware about my love,
& emotions you feels mostly.
But how can I realize your feelings,
& how can I tell you my emotions.

Sunday, July 24, 2011

वादिया और एहसास

Hi, I am Rajeshwar Singh, Razu for friends, here with my love, from Srinagar, J&K, India:-

तुम्हारी याद आज मुझे फिर से हँसा गया
तुम्हारी याद में मै फिर से मुस्कुरा गया
यादों में फिर से डूब गया ये दिल
ये दिल फिर तुम पर य़ू ही छा गया

हवा के मानिंद झोके एहसास कराने लगे
जैसे गुजरा हो तुम्हारा दुपट्टा मेरे सामने से
यहाँ की वादियो की हरी भरी हरियाली 
मदहोश करने लगी तुम्हारे प्यारे यादों में 

मरने को जी करता है 
यहाँ की खुबसूरत हसीनाओ पर
पर क्या करूँ मै इस दिल का
जो पहले ही मर मिटा है तुम पर

हवा की सर्र सर्र आवाज़े ऐसी लगती है
जैसे अभी-२ राजू कहकर तुम गुज़री हो 
पलकों के झपकने पर दिल ढूंढ़ लाता है
खुबसूरत चेहरा, जैसे कोई गुलाब अभी-२ खिला हो

जब भी लुत्फ़ उठाता हूँ किसी खास व्यंजन का
तुम्हारे नरम-मुलायम हाथो का एहसास हो ही जाता है
जब भी घूमता हूँ किसी नए जगह पर
तुम्हारा प्यारा एहसास साथ हमेशा होता है

सोने ना देती है ये खुबसूरत वादिया
एहसास कराती है तुम्हारे साथ का
खोया रहता हूँ तुम्हारे इस बेहतरीन साथ में 
क्यूंकि ये एहसास ही मुझे खुश रखता है

वादिया और एहसास
By:
राजेश्वर सिंह 'राजू'

Thursday, July 7, 2011

You 'Mine Words'

Hi, I am Rajeshwar Singh from Srinagar, Jammu & Kashmir, INDIA.........

There are motive/s behind any writings, here a motive too. To express some dreamy nights to nightmare. I love me most & like to do things which I like, so I am following myself.............

'RED ROSES for You' 

I thank to two person, your parents, 
Who are God & Goddess for you.
I like to love those person.
Who are known as family for you.


I feel proud on your two shiny eyes.
Who resembles my presence in your life.
I like to listen your sweet voice.
Who disappear all sadness from my life.

Ruby hair extend the love on my face.
Whenever I sleep in your lap.
Some Juicy drop realizes me in heaven.
When falls on my lip from your lovely lips.

'RED ROSE for You' 

I feel the peak of softness.
When I hold your victorious hands.
I feel your heartbeat through blood.
Which flows at its fast in your vain. 

My heart got in trouble.
When it meets with yours. 
God provides me fragrance of scents.
When my breathe melts with yours.

Nature gives more rejoice.
When you are there with me.
I demand all happiness in our life.
Because a beauty like you is always with me.


You 'Mine Words'
By:
Rajeshwar Singh 'RazsH'

Monday, June 20, 2011

रात और ख्याल

Hi I am Rajeshwar Singh from Kamareddy, Andhra Pradesh, INDIA.........

My heartbeat runs 72 times per minute, Some times when my heart feels emotions about close-one & jumps more than 72 times per minute, I like to create these stupid lines. I pleased, smiled on my self while I was writing these lines.

रात और ख्याल
आज रात तुम आये मेरे ख्यालों में,
गुम हो गया तुम्हारे बहकी सांसो में| 
भूल गया खुद को तुम्हारे बातों में,
उलझा रहा पूरी रात तुम्हारे बालों में||
आज रात तुम फिर आये मेरे ख्यालों में| 
आज रात तुम आये मेरे ख्यालों में||

आज रात तुम आये मेरे ख्यालों में, 
तुम जो शरमा कर बैठे मेरे आगोश में| 
बिछ गयी इस कदर मेरे अल्फाजों में,
परवाह ना रहा तुम्हे खुद का मेरे बाँहों में||
खो गया मै भी काले नैनो की बादलो में|  
आज रात तुम फिर आये मेरे ख्यालों में|| 

आज रात तुम आये मेरे ख्यालों में,
ना फिक्र रही घडी की सुइयों का हमें|
जो मिल गयी तुम्हारे होठो की लाली हमें,
डूब गया मै तुम्हारे लबों की नमी में|| 
पूरी रात ऐसे कट गयी तुम्हारे साथ में|
आज रात तुम फिर आये मेरे ख्यालों में||

आज रात तुम आये मेरे ख्याल में,
तुम भी हो गयी पगली, पगले के साथ में|
पहले थीं अन्जानी इस अन्जान के याद में,
खुद का पहचान ढूंढने लगी मेरे पहचान में|| 
मैं भी जीने लगा उस पगली के प्यार में| 
आज रात तुम फिर आये मेरे ख्याल में||
पूरी रात ऐसे कट गयी तुम्हारे साथ में|
आज रात तुम फिर आये मेरे ख्यालों में||

रात और ख्याल
By:-
राजेश्वर सिंह 'राज़्श'

Friday, April 15, 2011

साथ महबूब का

Hi I am Rajeshwar Singh from Hyderabad, INDIA.........

This is just a dream....
Date & Time : 14th April'11, 11:39PM


पैराडाइज होटल में शाम का वक्त था
शमाँ रंगीन था जो साथ दिलदार था 
हसीना के गुलाबी लबों पे मुस्कराहट थी 
महबूब के मुलायम हाथो का एहसास था
मद्दिम रौशनी में चेहरे पे हँसी थी
क्यूंकि वहां कुछ खुरापातिया थी
देख कर महबूब की आँखों में 
कुछ शायरी कर दी उनके हुस्न पर
शायरी का शमां और मधुर बन गया 
जो जगजीत जी का सुर-संगीत मिल गया 
बातो-बातो में वक़्त बढ़ने लगा
और रात के १० बज गया
जाते-जाते डिनर का ख्याल आया
हैदराबादी बिरयानी के साथ सोफ्ट ड्रिंक ले लिया
शाम तो बीत गयी आज ख़ुशी-ख़ुशी
कल भी होगा तुम्हारे साथ हसी-ख़ुशी

'साथ महबूब का'
By: राजेश्वर सिंह 'राज़्श' 

Monday, April 4, 2011

Be in touch

Hi I am Rajeshwar Singh from Hyderabad, INDIA.........


I received this message from one of my fast friend on 27th March'11, but didn't read at that time.. Yesterday i was clicking the Inbox, I saw this message. This message realizes me the goodness of  being in touch. In last few days, due to some unhappy moments (missed to attend Convocation & was hurt by one of my close friend), I had seen, I developed attitude to go away from the ITMians & thats why I deleted myself from mostly communities on FACEBOOK, but I can't do this any more. I have to live myself as I wanna, will never miss contact from all due to one or some silly moments. 
So Sorry to all. I am back to MASTI with you all.

One day we all be sitting and thinking hard about life.
How it changed from simple college life to restrict professional life.

How pocket money changed to huge monthly pay cheque, 
but gives less happiness.
How a few local jeans changed to new branded wardrobe, 
But less occasions to use them.
How a single plate of samosa changed to a full pizza, 
But hunger is less
How a cycle always in reserve, changed to a car always on, 
But less places to go.
How a tea by roadside to CCD, Barista, 
But it feels as if the shop is far away.
How a general class journey changed to flight journey, 
but less vacations for enjoyment
And many more
May be this is the truth of journey called "LIFE".

Dedicated to all my friends.
Plz stay in touch always.
Be in touch & keep smiling my face.
I smiles when I saw you are smiling.

Sunday, April 3, 2011

तुम किसके साथ थे?

Hi I am Rajeshwar Singh from Hyderabad, INDIA.........


Date & Time: 3rd April'11 at 7:15 PM


ये है सपना मेरा
जो मैंने आज देखा 
अपनी खुली आँखों से
काम के बोझ से दबा हूँ
पर वक़्त निकल जाता है
तुमको सोचने के लिए
सपने देखने के लिए

ये आज मेरा दिन ऐसे हुआ
जैसे मै तेरे साथ घूम रहा था
हैदराबाद की जाम वाले रास्तो में
तुम्हारी बातों को सुन रहा था
दोनों के हाथो में आइस-क्रीम था
इस गर्म मौसम में साथ था
और हम दोनों ही खुश थे
सामने देखा लाल-गुलाब तो
मै भी खुद को ना रोक पाया
ले लिया कुछ लाल-गुलाब तुरंत
याद करके पुराने दिनों को
जब मेरे पास होते थे गुलाब हरपल
तुमने पूछा- लिया किसके लिए
खुद के लिए, मैंने जवाब दिया
तुम थोडा सा इतराई
फिर जब ना तुमको दिया तो
गुस्सा होकर इधर-उधर देखने लगी
मै बस तुम्हे जला रहा था
तुम भी ये जान रही थी
तुम यूँ ही साथ चलती रही 
मै ख़ामोशी से बातें सुनता रहा
कुछ पल साथ चलते हुए 
इक-दुसरे को टीज़ करते हुए
सामने आया पिज्जा-हट
फिर वह इक सीट पर बैठ गये
तुम थी सामने, मै था सामने
पिज्जा हट का पिज्जा था
और साथ में कॉकटेल भी
इक गुलाब लेकर लबो में
मैंने तुमसे वो पूछ ही लिया
जो मैंने ना पूछा ४ सालो में
क्या-तुम मेरा साथ दोगी?
क्या मेरी हमसफ़र बनोगी?
और तुम्हारे उत्तर आने से पहले ही
मै सपनो से जगा दिया गया
फिर ये सपनो की दुनिया....
मुझे मुस्कराहट दे गयी
पर इक प्रश्न छोड़ गयी
तुम किसके साथ थे??
तुम साथ किसके थे?? 




'तुम किसके साथ थे?'
By: राजेश्वर सिंह 'राज़्श'

Wednesday, March 30, 2011

देखा तुझे मै

Hi I am Rajeshwar Singh from Hyderabad INDIA.........

Date & Time: 30th March'11, 6:51PM
I am happy to write this idiotic emotions:


देखा तुझे मै जब कभी भी
चेहरा कि लाली य़ू बढ़ गयी
पीकर तेरे आँखों की शोहबत 
ये दिल बिन पीये, नशीली हो गयी
जब भी तुमसे प्यार किया मै
सारे गम पल भर में मिट गए
किस्मत का लिखा ना कोई जाने
कल थे पराये, आज हम इक हो गये
सबकी आँखों में आँखे दिखने लगी
कुछ यूँ तुम्हारी इबादत हो गयी
यादों के पहलु में तुम कुछ ऐसे बैठे
और किसी की फिकर ना रह गयी
देखा तुझे मै जब भी कहीं भी
चेहरा कि लाली य़ू बढ़ गयी
यादों को सिरहाने लेकर बैठा था मै
जब तुम मिले थे मुझसे उस कोने में 
हाथो में हाथ अब आ गये है 
बाकी मंजिल भी य़ू ही मिल जाएगी
तेरा साथ जो मिल गया है
बाकी मंजिल भी मुझे मिल जाएगी

'देखा तुझे मै'
By: राजेश्वर सिंह 'राज़्श'

Friday, March 4, 2011

साथ तुम्हारा

Hi I am Rajeshwar Singh from Vizag, INDIA.........

Date: 4th March'11 at 9: 50 PM in the memories of my soul's feeling.

मै दिन-रात ये सोचता हूँ,
हर पल ये चाहता हूँ
तुम रूठो मै मनाऊं
मै रूठू तो तुम मनाओ
रूठना-मनाना खेल करू तुम्हारे सायो की
महसूस हो नरमी तुम्हारे हाथो की
सांसो में महक हो तुम्हारे गेसुओ की
कानो में खनक हो तुम्हारे बोलो की
संगीत सुनु मै तुम्हारे गीतों की
मेरे चेहरे पर झोके तुम्हारे दुपट्टे की
सिरहाने तुम बैठो तकिया के जैसे
डूब जाऊं मै तुम्हारे बातो में ऐसे ही
चूमता रहूँ तुम्हारे अल्फाजो को ऐसे ही......




साथ तुम्हारा
By: राजेश्वर सिंह 'राज्श '

Tuesday, February 8, 2011

मंजिल

Hi I am Rajeshwar Singh from Hyderabad INDIA.........

Date: 18th Aug'10, 12:00 PM
Location: Gurgaon

तेरी आँखों में अपनापन है
यादों में बस तेरा ही ख्याल है
ज़ीने की चाहत होती है तेरे साथ में
होंगे हम साथ कुछ दिन में
जीयेंगे हम अपने जिंदगी को साथ में
पाएंगे खुशिया हम हर हाल में
मुस्कुराएंगे हम इक-दूजे के साथ में

हाथ होंगे  इक-दूजे के हाथ में
हमारे साँसों में इक ही खुशबु होगी
आँखों में य़ू ही अपनापन होगा

अपलक देखने को जी करता है
साथ टहलने को जी करता है
इस पल इक-दूजे से दूर सही
अपनी मंजिल है साथ में ही
जीना है जिंदगी कुछ औरो के लिए भी
वो लोग भी अपने ही है
उनके जीवन स्तर को सुधारना है
तुम य़ू ही हर पल मुस्कुराते रहो
मेरे खुशियों को य़ू ही बढ़ाते रहो
पाए हम अपने खुशियों को
पाए हम अपने मंजिल को
य़ू ही रहे ब्यूटी बरकरार
बनी रहे बेबी की मुस्कान
हम सब पाए अपनी मंजिल
साथ चले जिंदगी का कारवां


मंजिल
By: राजेश्वर सिंह 'राज्श '

Tuesday, January 4, 2011

मेरी बेचैनी

Hi I am Rajeshwar Singh from Gurgaon, INDIA.........

Date: 4th Jan'11
Time: 11:22 PM

क्यू मै बेचैन हो जाता हूँ भरी महफ़िल में
क्यू गुनगुनाता हूँ राह चलते हुए
क्यू आती है याद तुम्हारी हरपल
इंतज़ार रहता है सिर्फ तुम्हारे फ़ोन के
ये है मेरे दिल की घबडाहट
या फिर तुमसे दिल्लगी है
अब समझा इस दिल के आँखों का आलम
क्यूकि इसमे बैठी तुम्हारे जैसी हसीना है

मेरी बेचैनी
By:
राजेश्वर सिंह 'राज़्श'

Sunday, January 2, 2011

अपनी गुज़ारिश

Hi I am Rajeshwar Singh from Gurgaon INDIA.........

Date: 1st Jan'2011
Time: 9:56 PM

Created in BIHAR SAMPARK KRANTI train ahead Lucknow railway station.

ट्रेन की सीट पर सोया
'रसीदी टिकट' पढ़ रहा हूँ
ये तो रचना है अमृता प्रीतम जी का
जो मेरे अल्फाजो को भुना रहा है
कुछ पंक्तिया आई सामने तो
दिल ने कहा तुम पर शब्द गूंथने को
शांत हो गया था ट्रेन का माहौल
पर कौन रोक सकता है पटरियों के आवाज़ को
आगाज़ है नए उम्र का नए साल का
ये शुभारम्भ है मेरे हाथ में इस कलम का
तुम याद आते रहे हर पल आज
कभी पवन के झोंको में तो कभी मेरे मुस्कराहट में
कैसे ज़ाहिर करू अपने बेताबी को
प्यारे अल्फाजो को अपने इश्क को
कैसे समर्पित करू इस माला को
शब्द-माला में गुंथे हुए शब्दों को
गूंथने का कुछ य़ू आलम हुआ
ये फुल पड़ते गाए और माला बन गई
ये माला जो है मैंने गुंथा शब्दों का
मेरे जूनून का तुम्हारे मुहब्बत का
मेरे ख़ुशी का तुम्हारे छुअन का
मेरे अल्फाजो का तुम्हारे ख़ामोशी का
२०१० की अंतिम सर्द रात का
तुम्हारे बिना बात के रूठने का
२०११ की सुबह किसी को ना फ़ोन करने का
ये शब्द है सुबह-सुबह तुम्हारे सन्देश आने का
ये शब्द है सुबह तुमसे बात करने का
मेरे जिद करने पर तुमसे मिलन का
ऐसे-वैसे गुफ्तगू करने का 
है ये तुम्हारे बेइंतहा चाहत का
मेरे बातो पर तुम्हारे खीझने का
तुम्हारे बोलो पर मेरे रिझने का
इक छोर पकडे रहना इस माला के धागा का
क्योकि मुझे जूनून है तुम पर शब्द पिरोने का
याद आ रहे है अब भी तुम्हारे होठो के मुस्कान
आँखों के अपनेपन का हाथो के नरमी का
हाथो की नरमी का हाथो की छुअन का
मेरे दिल की धड़कन का तुम्हारे एहसासों का
याद कर रहा हूँ मै विदा होते हुए तुम्हारे झलक का
मेरे आँखों की ख़ुशी का तुम्हारे गुजारिश का
फिक्र है हमे अपने साजिशो का खुद को फसने का
साथ ही साथ इस जाल में तुम्हे फ़साने का
उस मोड़ के इंतज़ार का अपने इकरार का
ऊपर वाले की साजिश है अपने मिलन का
हमारे तकरार का मेरे पुकार का
तुम्हारे गुज़ारिश का मेरे दीदार का
इक लफ्ज़ में कहूँ तो, पिरो रहा हूँ..............
.....अपने आँखों के अनकहे प्यार को

अपनी गुज़ारिश-
By:
राजेश्वर सिंह 'राज़्श'

Tuesday, December 28, 2010

मेरा मुस्कुराहट

Hi I am Rajeshwar Singh from New Delhi INDIA.........

Creation on: 21st May'10 1:00 AM at Gorakhpur

हम है कही तुम हो कही
जब भी देखता हूँ तुम्हारे तस्वीरो को
समेत लेता हू खुद को बीते हुए पलो में
यादें उन दिनों की, करती है बेबस मुस्कुराने को

चिल्लाना वो कैंटीन में कोल्ड-ड्रिंक्स पीने को
मैगी खाने को, समोसे लाने को
परेसान करना हमको फ्रूटी लाने को
समेत लेता हू खुद को उन प्यारे लम्हों में

वो देखना मेरा, तुम्हारे जुल्फों को
कमेन्ट करने पर देखना गुस्से में मुझको
कही नज़र ना लगे मुझे कही से
लगाना काज़ल मेरे माथे पर
अपने कजरारी आखो से
दिखाना थोडा गुस्सा
तो झल्काना कभी अपने प्यार को
बेबस करती है तुम्हारी यादे
इस stupid/idiot को मुस्कुराने को


मेरा मुस्कुराहट:
By
राजेश्वर सिंह 'राज़्श'

Saturday, December 18, 2010

जिंदगी में तुम "Stupidiotic Creation for Beautiful one"

Hi I am Rajeshwar Singh from New Delhi, INDIA.........
Date & Time: 18th Dec'10, 04:13 PM
Place: New Delhi

याद आया आज वो तुम्हारे होठ फिर
कुछ ऐसा हुआ था मेरे साथ
मै लपका उस दुकान पर 
सामने था बोतल फ्रूटी का
मैंने पिए फ्रूटी इस ठंडी के मौसम में
नाक दे गया जबाब मुझे
फिर याद आया तुम्हारे दुपट्टे का
निकाल लिया रुमाल जेब से
नाक पर रुमाल या रुमाल पर नाक
मै रगड़ने लगा, नाक पोछने लगा 
फिर याद आया तुम्हारे नैनों के काजल
जो कभी लगाते थे हमारे माथे पर
तुम्हारे हाथो के नरमी को महसूस करते हुए
मै सपनो की दुनिया में खोने लगा
फिर बजा मेरे मोबाइल का टोन
"दिल से रे दिल से रे...............
.....दिल तो आखिर दिल है ना पिया ओ पिया"
देखा तो कस्टमर केयर का कॉल था
फिर देखने लगा पुराने मेसेज को
जो भेजे थे मैंने परसों रात को
उंगलिया कुछ ऐसे चलने लगी की-पेड पर
हो गया डायल तुम्हारा नंबर
जब दिल की बाते हो गयी तुमसे
सब दर्द मिट गया, मै खुश हो गया 
और ऐसे ही रहेंगे हम ऐसा दिल का अरमान है
अब तो जिंदगी का दुःख-सुख तुम्हारे साथ है



जिंदगी में तुम "Stupidiotic Creation for Beautiful one"
By-
राजेश्वर सिंह 'RazsH'

Friday, November 26, 2010

"इलज़ाम मुझ पर"

Hi I am Rajeshwar Singh From Gorakhpur INDIA.........

Date: 23rd May'10
Time: 2:35 PM

मुझ पर है सैकड़ो इलज़ाम 
मेरे साथ ना चला करो
होने लगेगी तुम पर भी छीटाकशी 
बढ़ जाएगी इल्जामो की गिनती
कर बैठूँगा कुछ मै उन लोगो से
जो करेंगे छीटाकशी तुम पर
हम रहे अकेले तन्हा अभी सही है
पर बातें य़ू ही करते रहेंगे
जब भी चलना अकेले कहीं पर
महसूस करना मुझको अपने पास
हाथ मेरा है तुम्हारे हाथ में
साथ मेरा है तुम्हारे साथ
मै हूँ हर पर पल तुम्हारे पास तुम्हारे साथ. 

इलज़ाम मुझ पर--
राजेश्वर सिंह 'राज्श'

"तुम्हारी यादें"

Hi I am Rajeshwar Singh From Gorakhpur INDIA.........
स्थान- लखनऊ
दिनांक- २३ अक्टूबर'10
समय- १:३० रात

यादें बनकर उभरती है
तुम्हारे माथे की खुबसूरत लटें
मुस्कुराने पर इक चाहत सी जगाती है
चेहरे की वो कातिलाना मुस्कुराहटें
तन्हा बैठने पर याद आती है
लब वो तुम्हारे, मैगी खाते फ्रूटी पीते
जब भी मेरे ये आँखें झपकती है
ख्याल आता है वो मासूम पलकें
अनुभव मुझको, अपनेपन का कराती है
वो काज़ल वाली तुम्हारी आखें
ज़ेहन में इक जादू सा चलती है
वो धक्-धक् करती तुम्हारी सांसें
सारे दुःख-दर्द मिट जाती है
जब हो जाती है बातें तुमसे 
हमारा साथ इस दुनिया को ये सिखाती
मुझमे-तुझमे है अपनापन, चाहे हो जितने लड़ाई-झगडे
तर्क-वितर्क हम-तुम में होती ही रहती है
इक-दूजे के और करीब लाती है हमारी बातें

तुम्हारी यादें--
राजेश्वर सिंह 'राज्श'