Sunday, December 25, 2016

पत्र: ३ (२५ दिसंबर २०१६)

पत्र: ३ (२५ दिसंबर २०१६)


पत्र टीवीऍफ़ के संस्थापक अरूणभ कुमार के नाम!

नमस्कार अरुणभ!
जब आप अपने सपनों को जीने के लिए, एक उड़ान भरने के लिए धीरे धीरे पग को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे होते है तो, आप अपने अपने क्षेत्रो में सिद्ध महापुरुषों के बारे में पढ़ते है या फिर जानने की कोशिश कर रहे होते है। उनमे से कई महापुरुष गृहीत शिक्षा के इतर जाकर समाज के लिए एक नए दशा-दिशा का स्थापना कर रहे होते है या कर चुके होते है।

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 विद्वजन, विचारक, समाज सुधारक, अधिनायक सब अपने विशिष्ट गुण के कारण इतिहास के लिए एक नया अध्याय बनाते है, जिनसे आने वाली पीढ़ी सीखती है और समाज को आगे बढ़ाने के लिए अपना उत्कृष्ट देती है। टीवीऍफ़ के संस्थापक श्री अरुणभ कुमार (The Qutiyapa Guy) जी आप भारतवर्ष के प्रगतिशील युवाओं के लिए आदर्श बन चुके है। आपके समूह का मनोरंजन क्षेत्र में बहुआयामी कृत्य गुणवत्ता, विशेषता के आधार पर उत्कृष्ट और उत्तम होते है। टीवीऍफ़ के प्रणेता समूह में अधिकांशतः देश के नामी तकनीकी संस्थानों से उपाधिधारक है, शायद इसलिए उच्च कोटि का गुणवत्ता रखकर इस प्रवाह को उत्कृष्ट बनाए हुए है।

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टीवीऍफ़ का टैग लाइन है, "टीवी मर चुका है, हमारे कहानियाँ नहीं", जो आपके संस्था के बारे में बहुत कुछ बोलता है। आपके कुछ उवाचों में हमने आपके संघर्ष की कहानी सुनी है। आपने पिछले कुछ सालों में कई उत्कृष्ट वीडियो श्रृंखला बना दिए, जो समय सीमा के मामले में बॉलीवुड कथा चित्रो (Feature Films) के अनुरूप होंगे परन्तु गुणवत्ता में उनसे बेहतर है। टीवीऍफ़ द्वारा व्यक्त, उत्पादित श्रृंखला जैसे- परमानेंट रूममेट्स, पिचर्स, ट्रिपलिंग, बेयर्ली स्पीकिंग विथ अर्नब, चाय सुट्टा क्रोनिकल, दारू पे चर्चा, टेक कन्वर्सेशन विथ डैड, ह्यूमरोसली योर्स इत्यादि सारे प्रकरण में युवा कहीं ना कहीं खुद को जोड़ लेता है। संस्थापको का तकनीकी संस्थान उपाधिधारक होने के कारण इनके शुरू के वीडियो श्रृंखला अभियांत्रिकी, तकनीकी और प्रबंधन संस्थान के पुरातन छात्रों के लिए अपने महाविद्यालय की यादगार वीडियो जैसे लगती है, जो उनके स्मृतिपटल कुछ संकुचन के साथ साथ आनंद का अनुभूति कराती है।

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परन्तु 'टीवीऍफ़' के मूल वीडियो श्रृंखला (Original Video Series) 'परमानेंट रूममेट्स' में 'तान्या' और 'मिकेश' के गैर-पारंपरिक रिश्ते में सब कुछ है, जिसमे मानवीय भावनाओं को बहुत करीने से उलझते, सुलझते, मिलते, बिछुड़ते, रोते, हँसाते दिखाया गया है।

"पिचर्स" में 'नवीन', 'योगेंद्र', 'जितेंद्र' और 'सौरभ' के हिम्मत को दिखाया गया है, जिसमे चार नव साहसी, उद्यमी बनने के लिए कई कष्टों को झेलते, जूझते हुए आगे बढ़ते है। ये श्रृंखला हमारे लिए एक चुटकी (Pinch) जैसे है।

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"ट्रिपलिंग" में 'चन्दन', 'चंचल' और 'चितवन' एक जैसे परवरिश से होकर भी तीन तरह के अलग-अलग दिक्कतों में एक दूसरे के करीब आते है। तीन भाई बहनों के जीवन में आए उतार चढ़ाव के साथ एक सफ़र को अप्रतिम तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

आजकल प्रसारित हो रहे 'ह्यूमरोसली योर्स' प्रकरण जिसमे एक व्यक्ति 'विपुल' के सामने आने वाले कठिनाइयों और समाधान के साथ साथ 'काव्या' के साथ प्रेम प्रलाप, टीवीऍफ़ समूह के गुणवत्ता और परिश्रमी होने का सबूत देता है।

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आशा है ऐसे ही उच्च कोटि के संग्रह देखने के साथ साथ विज्ञान परिकल्पना (Science Fiction) आधारित वीडियो भी देखने को मिलेगा।

धन्यवाद अरुणभ!
शेष फिर........

पत्र: ३
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh)
नई दिल्ली, भारत

Friday, November 11, 2016

पत्र: २ (११ नवम्बर २०१६)

पत्र: २ (११ नवम्बर २०१६)
पत्र दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल के नाम,
महोदय,
आशा और जैसा कि ट्विटबाजी और आपके वीडियो से लग रहा है आप सकुशल है। खैर वैसे भी जबसे मोदी जी ने अचानक से ५०० और १००० रूपये के नोट बैन किया  आपके चेहरे पर हवाईयाँ उड़ गई थी, तबियत तो ठीक है ना?
खैर यहाँ कुछ साल पहले आपके कृत्यों, वादों और चर्चाओ का बहुत बखान हुआ करते थे। 
सब के सब बोलते थे, क्या बंदा है यार! 
वहीं आज सभी बोलते हो क्या बंदा है यार?
खैर ये सब छोड़िये, ये बताइये आप अभियंता होकर, देश (देश तो आपके हाथ में नही) या  प्रदेश में तकनीक, अभियांत्रिकी, औद्योगिक या फिर जनमानस के जीवनशैली में कितने नवाचार पर काम किये है? अभियांत्रिकी का मूल उद्देश्य तो आप जानते ही होंगे। जनमानस की जीवनशैली सुधारने की बजाय आप अपने जीवन शैली को ही अग्रसर करने में लगे हुए हैं। 
पिछले महीने पड़ोसी देश पर हुए सर्जीकल स्ट्राइक पर भी आपके फेसबुक लाइव/ यूट्यूब वीडियो में आप उन लोगो के प्रश्नों प्रधानमंत्री महोदय के सामने उठा रहे है जो आपके अपने देश की विरोध करते है। 
कल के वीडियो में भी आप प्रधानमंत्री महोदय को कोस रहे थे, जैसे कि किसी ने आपकी रातों रात जेब काट ली हो, या आपकी तिज़ोरी लूट ली हो। आपकी भाषा भी इतने गिरे दर्जे की हो गई है कि क्या कहें! आप वोट के लिए इतने नीचे गिर जाएंगे, कभी सोचा भी ना था।
आपने बोला, कि देश की आम आदमी इसमें पिस रही है, कैसे आम आदमी पिस रही है?
देश की अधिकतर जनता अपने पैसे या तो बैंक में रखती है या फिर कहीं निवेश की होती है। घर में नोट रखना बहुत पुरानी बात है, वैसे भी आम जनता कभी लाखों रुपये नहीं रखती। वो गिने चुने काम भर के रुपये पास रखती है। 
आपने बोला, शादियों में लोग परेशान हो रहे है, पर आपने कभी सोचा है, दहेज़ का लेन-देन कितना होता है?
केटरर्स, टेंट वाले कैश में अगर काम करते है तो, उनकी कमाई भी दो-तीन लाख से ऊपर होती होगी, और वो आईटीआर भरते होंगे, फिर दिक्कत किस बात की?
अम्बानी, अडानी के बारे में बोला, बहुत अच्छे! पर कभी सोचा माल्या, ललित मोदी, कलमाड़ी, कनिमोझी और ए राजा नही बचे फिर तो ये भी फसेंगे ही किसी ना किसी रोज।
एक कहावत मशहूर है, 'लोग खुद जैसा होते है वैसा सोचते है'। कहीं फिर आप तो ऐसे नही?

मैं भारतीय राजनीति का पिछले दो दशकों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भुक्तभोगी रहा हूँ। किसान का लड़का हूँ, केंद्र सरकार और प्रादेशिक सरकार के लड़ाई में बहुत पिसे है, खेतों में खड़ी फसल कभी चीनी मिल बंद हो जाने से सूख गई तो कभी मौसम की मार से। बारिश ने फसलों को बहा दिया, तो कभी सूखे ने अनाज लगने ही नहीं दिया। मानवीय मजदूरी, पेट्रोलियम, खादों के दाम बढ़ा दी गई पर आज भी अनाजों के दाम अपेक्षा में कम है। आजादी के ६९ साल बाद आज भी गांव में मानवीय मूलभूत सुविधाओं से विमुख है पर मोदी सरकार की तरफ से कोशिश की तारीफ करनी होगी। आज ना सही, पर कल तो देश विकासशील से विकसित की श्रेणी में आ जाएगा। 
केंद्र सरकार को लिखे ईमेल का प्रति उत्तर मिल जाता है पर आपके सरकार और आपको लिखे ईमेल का कोई प्रतिउत्तर नही मिलता| अब इसे क्या कहें? आपको एक पत्र लिखा था ३ मई २०१६ को 'हैल्लो मुख्यमंत्री जी!' एक ट्रैफिक सिग्नल को दुरुस्त कराने के लिए फिर भी आप या आपके विभागों की तरफ से कोई समाधान नही। 

आप कभी खुद से ऊपर उठ कर देश को पहले रख कर नेतृत्व करो, फिर देखो देश कैसा हो जाता है। माननीय मुख्यमंत्री जी, केवल खुद के महत्वकांक्षा के लिए ऐसे व्यक्तव्य देकर युवाओं के मनोबल पर प्रतिघात ना करें। अगर फिर भी आप जैसे पढ़े लिखे मुख्यमंत्री का ये हाल है तो उल्लुओं जैसे नेताओ की जात ही कभी कभी अच्छी लगती है। 
वैसे देश की राजनीति में एक पप्पू तो है ही, अब एक गुड्डू की जरुरत थी, जो लगभग पूरी हुई लगती है।
शेष फिर.......
पत्र: २
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh)
नई दिल्ली, भारत

Monday, November 7, 2016

पत्र: १ (७ नवम्बर २०१६)

पत्र: १ (७ नवम्बर २०१६)

पत्र प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी, गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी, रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश सिंह यादव और मुख्य निर्वाचन आयुक्त डॉ. नसीम जैदी के नाम, 

महोदयों,
आशा है आप सभी सकुशल होंगे, मैं २७ साल का एक भारतीय नागरिक हूँ। जिसका बचपन एक गाँव में, पढ़ाई शहर में हुई है, रोजी रोटी के लिए नौकरी मेट्रो शहर में करते हुए अब अपने कृतियों और नवाचार को एक प्रारूप देने में लगा है। यह एक पत्र के साथ साथ आप बीती है जिसे मैं बयाँ कर रहा हूँ। अगर समय ना हो तो सीधे नीचे के दो पैराग्राफ पढ़ लीजिये, जिसमे मैंने सुझाव देने की कोशिश की है, कि आपका वक़्त बच सके और मेरी बात आप तक पहुँच सके। और अगर मन करें तो आगे के पैराग्राफ पढ़िएगा, और मेरे वास्तुस्थिति को समझिएगा।
मेरे पैदा होने से एक साल पहले ही देश में मताधिकार का प्रयोग करने की आयुसीमा घटाई गई थी, और जब मैं पैदा हुआ तो देश के राजनीतिक गलियारे में बहुत चहल पहल हो रही थी। देश के प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोपो का अम्बार था, बचपन से लेकर आज तक देश, प्रदेश, गाँव हर जगह राजनीति का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभाव पड़ा है। इवीऍम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के प्रयोग से देश के चुनाव नीति और तौर तरीके में बहुत बदलाव हुए, फिर भी वोट डालने की प्रतिशतता में बढ़ोत्तरी के लिए अभी बहुत परिवर्तन की जरुरत है। 
मैं दिल्ली में रहता हूँ और अपने गाँव पर ही मताधिकार का प्रयोग करता हूँ। मैंने आजतक के सारे चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग मैं घर जाकर करता रहा हूँ, पर अब थोड़ी मुश्किल है क्योंकि,:
२०१४ के आम चुनाव में घर जाने के लिए तत्काल टिकट लिया पर वेटिंग के कारण टिकट कैंसल हो गया। फिर भी जैसे तैसे गया, आने के लिए 'सुविधा ट्रेन' में टिकट बुक किया था। सुविधा ट्रेन अभी नई नई शुरू हुई थी, और डायनामिक प्राइसिंग का कांसेप्ट रेलवे में शुरुआत हुआ था। खैर टिकट ले लिया, जिसमे कैंसल करने का भी कोई ऑप्शन नही था। गोरखपुर से दिल्ली आने के लिए मेरा और मेरे मित्र दो लोगो का टिकट था। परन्तु मेरे मित्र किसी कारणवश यात्रा नही कर रहे थे। सुविधा ट्रेन में ज़्यादा पैसा खर्च करके टिकट लेने के बाद भी जब मैं गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर अपने कोच में चढ़ने लगा, तो कोच पूरी तरह से भरी हुई थी,मेरा सीट पर जाने को तो छोड़ो, ट्रेन में चढ़ना मुश्किल हो रहा था। साथ में सामान काम था, इसलिए जैसे तैसे धक्का मुक्की करके ट्रेन में चढ़ा और सीट तक पहुँचा। पुरे ट्रेन राजकीय पुलिस से खचाखच भरी हुई थी, मेरे अलॉटेड सीट पर पहले से ही पुलिस के बंदे बैठे हुए थे, जिनसे थोड़ा सा एडजस्ट करने को बोलने पर वो अपने वर्दी का धौस दिखाने लगे। उनको बोलने पर कि मेरे पास दो सीट के लिए टिकट है, एक सीट पर बैठे पुलिस वाले ने गाली गलौज देनी शुरू कर दी। बहुत ही दयनीय स्थिति थी, पुलिस के बन्दे हर जगह पड़े हुए थे, सारे सीट पर, कम्पार्टमेंट में चलने वाले जगह पर भी कुछ पुलिस के लोग लेटे हुए थे। रास्ते में बस्ती स्टेशन पर तो गेट ही नही खोलने दिए कि ट्रेन में कोई और यात्री ना चढ़ सके। कोच के हर कॉम्पार्टेन्ट में एक दो सवारी और १०-१२ पुलिस वाले या तो लेटे पड़े थे या फिर बैठे थे, लखनऊ पहुँचने तक मैं सामान अपने पीठ पर लादे सीट के पास खड़ा रहा। लखनऊ में पहुँचते ही ट्रेन से कुछ पुलिस वालों के उतरते थोड़ी जगह बनी तो एक पुलिस वाले ने बैठने को जगह दिया। 
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वैसे भी उत्तर प्रदेश के पुलिस वालों के साथ ८० प्रतिशत नकारात्मक प्रभाव दिखा है, जबकि राजधानी दिल्ली के पुलिस वालों का ९० प्रतिशत प्रभाव सकारात्मक रहा है। 
इस बार फरवरी में होने वाले प्रादेशिक चुनाव में भी वोट देने जाना चाहता हूँ कि सेवाएं और सुविधाओं में थोड़ी तरक्की हो, ना कि फिर से गाली सुनूँ, फिर से परेशान होऊं, देश बदले, सोच बदले.......

प्रधानमंत्री कार्यालय, रेलवे मंत्रालय, गृह मंत्रालय, निर्वाचन आयोग और उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री कार्यालय के कर्ता-धर्ता इन बिंदुओं पर ध्यान दीजियेगा:-
  • चुनाव की तिथि चार महीने पहले घोषित किया जाए कि अधिकाधिक नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें, जब तक कि किसी इलेक्ट्रॉनिक मत (वोट) का प्रारूप ना आ जाए, क्योंकि अग्रिम रेल टिकेट लेने की समय सीमा चार महीने (१२० दिन) हैं। 
  • अतिरिक्त ट्रेन चलाई जाए, मेट्रो शहरो से क्षेत्र के आस पास, चुनाव तिथि के नजदीक, कि मतदाता सुविधानुसार समय पर पहुँच सके और मताधिकार का प्रयोग कर सके।  
  • चुनाव में ड्यूटी पर लगे राजकीय पुलिस, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को बस की बजाय रेल सुविधा दिया जाए कि वो अपने घर या स्थानीय ड्यूटी पर जल्दी पहुँच सके। क्योंकि इनके भयावह स्वरुप को झेलना या यूँ कहें समझ पाना बहुत मुश्किल है। क्योंकि क्या है ना, इस देश में खाकी और खादी के सफ़ेद कपड़ो में बस दिखने को सादगी है। 
  • इलेक्ट्रॉनिक वोट का कांसेप्ट जल्दी से लागू किया जाए कि मत प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हो। 
शेष फिर....... 

पत्र: १ 
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh)
नई दिल्ली, भारत 


Wednesday, November 2, 2016

सच्चाई साझा करें झूठ नही!

मैंने जैसे ही फेसबुक अकाउंट खोला, एक मित्र द्वारा साझा किया 'फास्टेस्ट लेडी बैंकर" का पोस्ट दिखा। पोस्ट में बैंक के केबिन में एक महिला दिख रही थी, जिनके हाथ में कुछ नोट थे। जिज्ञासावश मैंने भी उस पोस्ट पर क्लिक किया, यूट्यूब पर एक वीडियो खुला, जिस वीडियो में एक महिला कैशियर कुछ रुपयों के नोटों को एक एक करके कॉउंटर मशीन में डाल रही थीं। उन महिला के काम करने की गति बहुत धीमी थी। 

मुझे उनके काम करने की गति में थोड़ी असहजता लगी, तो मैंने सोचा की गूगल बाबा से पूछ लेते है क्या सच्चाई है, जैसे ही मैंने फास्टेस्ट लेडी बैंकर लिखकर सर्च बटन दबाया, मुझे कई सारे लिंक मिलने लगे पर कोई भी ऐसा नही था जिस पर सच्चाई मानी जा सके। फिर न्यूज़ टैब पर देखा तो कई सारे विश्वसनीय लिंक मिले, जिनमे कुछ समाचार संस्था भी थे।

वहाँ पता चला "महिला श्रीमती प्रेमलता शिंदे,"महाराष्ट्र बैंक" में खजांची हैं और दो दिल के दौरे और एक पक्षाघात स्ट्रोक झेलकर भी बच गई हैं। शिंदे अगले साल फरवरी में सेवानिवृत्त हो रहीं हैं और पर्याप्त पूर्ण वेतन के साथ सेवानिवृत्ति तक घर पर बैठने के लिए उनके पास छुट्टियाँ जमा है, फिर भी उन्होंने एक सम्मानजनक तरीके से अपनी सेवा समाप्त करने के लिए चुना है। उसकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए, उनकी शाखा ने उनके लिए एक अतिरिक्त कैश काउंटर की स्थापना की, इन सबके अलावा, शिंदे जी के पति का निधन हो गया है और उनका बेटा विदेश में रहता है खुद के लिए काम कर रहीं है।"

सरकारी संस्थानों में कभी कभी कुछ ऐसे धीमी गति से काम करते हुए कर्मचारी मिल जाते है। मगर कभी जान बूझकर धीमी गति से काम करने वाले नही मिलते। जिन महाशय व्यक्ति ने ये वीडियो साझा किया, उन्होंने सोचा होगा कि इससे वो देश में एक बदलाव ला रहे हैं। साझा करने वाले भी यही सोचकर साझा किये होंगे कि जो पोस्ट है वो वाकई ठीक है और उनको साझा करके वो देश के तरक्की में अपना कोरम पूरा कर दिए। गलतियों को साझा करना सही है परंतु उसके पीछे का कारण पता करने के बाद।

कुछ वक़्त पहले एक और वीडियो ट्रेंड में आया था, जिसमे एक दिल्ली के पुलिस "सलीम" जी को मेट्रो में गिरते हुए दिखाया गया था। दिल्ली पुलिस से उन्हें निष्कासित भी कर दिया गया परंतु चिकित्सीय जाँच में पाया गया की उन्हें पक्षाघात स्ट्रोक हुआ था, जिसकी वजह से वो दिल्ली मेट्रो में गिर पड़े थे। फिर उनकी बहाली हुई।

आजकल समस्याओं को महान हस्तियों से जोड़कर कुछ अफवाहें फैलाई जा रही हैं, जिनमे से एक का उदाहरण मैं दे रहा हूँ, जिसे लगभग आठ-नौ मित्रो को समझा चुका हूँ। मैसेज/मेल/पोस्ट होता है पार्टी में बचे भोजन को गरीबों में बाँटने के लिए १०९८ (1098) पर कॉल करें और संस्था आपके घर से भोजन ले जाकर गरीब बच्चों में बाँट देगी। इस अफ़वाह के चलते चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन को कई फ़ोन कॉल मिलते है, जिनमे बताया जाता है कि "हमारे यहाँ पार्टी हुआ है, कुछ खाना बचा है आप ले जाइये"। चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन (सीआईएफ) महिलाओं के संघ एवं बाल विकास मंत्रालय की नोडल एजेंसी है, जो देश भर में चाइल्डलाइन 1098 सेवा की स्थापना, प्रबंधन और निगरानी के लिए बुनियादी संगठन है। जो बाल संरक्षण के मुद्दे जैसे, "दुर्व्यवहार और हिंसा, तस्करी, बाल श्रम, कानून के साथ संघर्ष, बाल विवाह, बाल यौन शोषण, माता पिता की देखभाल के बिना गली के बच्चे, जन्म पंजीकरण, सशस्त्र संघर्ष, विकलांगता, दवाई का दुरूपयोग, बच्चियों, एचआईवी-एड्स संक्रमित बच्चे, ग़ुम बच्चे इत्यादि" का समन्वयन करती है। 

ना जाने कितने ऐसे केस होते है, जिन्हें हम बेवजह ही इतना बढ़ावा दे देते है कि उस इंसान या संस्था को परेशानी और शख्सियत के साथ साथ देश के भी साख को नुक्सान होता है। 

वीडियो या पोस्ट को ट्रेंड में लाने के लिए एक व्यंगात्मक/टिप्पणीनात्मक शीर्षक देखकर साझा ना करें। चंद पसंद और टिप्पणी के लिए कुछ भी प्रकाशित करने से पहले उसके सत्यता की जाँच कर लें। 

आजकल कुछ फ़र्ज़ी समाचार संस्थाये भी ऐसे लेख, फोटो और वीडियो को पोस्ट कर लोगो को दिग्भ्रमित कर रहीं है, इसलिए सजग रहिये, सचेत रहिये और देश की तरक्की में सहयोग करते रहिये। 


जय हिन्द! 


राजेश्वर सिंह
#rajeshwarsh
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Friday, September 16, 2016

पल भर का प्यार‬: १०

#‎पल_भर_का_प्यार‬: १०

राज और अनुज काफी अच्छे मित्र थे, कॉलेज के चार सालों में दोनों ने अधिकतर वक़्त साथ बिताए थे। अनुज का घर बक्सीपुर में था तो राज सिंघड़िया में किराए के मकान में रहता था। अनुज कंप्यूटर साइंस (सीएस) विषय से इंजीनियरिंग की पढाई कर रहा था तो राज इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी (आईटी) में महारथ हासिल करने में लगा हुआ था। क्योंकि दोनों विभागों के विषयों में ज्यादा अंतर नहीं होता, इसलिए दोनों को पढाई में कोई दिक्कत भी नहीं होती। दोनों की छुट्टियाँ अक्सर साथ बीतती थी। कभी अनुज राज के कमरे पर आता तो कभी राज अनुज के घर पर पर डेरा डाले रहता। परन्तु परीक्षा के दिनों में अनुज हमेशा राज के कमरे पर पड़ा रहता था।  पौने चार साल की दोस्ती में दोनों इतने करीब हो गए थे, कि  दोनों को किसी और की फिक्र नहीं रहती, एग्जाम के दिनों में तो पढ़ लेते पर बाकि दिनों में घूमना, फिरना, गेम खेलना, मूवी देखना होता था। 

कॉलेज के अंतिम दिन चल रहे थे, एग्जाम ख़त्म हो चुके थे पर प्रैक्टिकल वाईवा नहीं हुआ था। वाईवा का डेट भी आ चूका था। मई महीने के गर्म भरे मौसम की खड़ी दुपहरी में, राज के कमरे में अनुज और राज दोनों लैपटॉप पर २४ (टवेंटी फोर) सीरियल देख रहे थे। कमरे में कूलर की हवा हनहनाते हुए चल रही थी, कुछ ही समय पहले दोनों ने नाश्ता किया था। तभी राज का मोबाइल घनघनाने लगा। चूँकि स्पीकर पर वॉल्यूम लेवल अपने चरम पर था, इसलिए मोबाइल का आवाज दोनों में से कोई नहीं सुन सका। सीरियल ख़त्म होने के बाद राज की नजर अपने मोबाइल पर पड़ी, देखा तो अंकिता के नंबर से मिस्ड कॉल था। 


कॉलेज के दिन ख़त्म होने के कारण, नौकरी के लिए सब हाथ पैर मार रहे थे। कॉलेज ने तो प्लेसमेंट नहीं कराया इसलिए नौकरी पाने के लिए दोनों, वो सब कुछ ट्राई करते, जिससे उनको नौकरी मिल जाये। नौकरी के लिए दूसरे शहरों में होने वाले वाकिंग में राज और अनुज दोनों साथ जाते, सरकारी नौकरियों के लिए भी दोनों साथ में आवेदन करते। अधिकतर प्रतियोगी परीक्षाओं और वाकिंग में अंकिता भी राज के साथ ही जाती।
"भाई तुमको मेरे फ़ोन का रिंगटोन नहीं सुनाई दिया था क्या?", राज अनुज से पूछा, "नहीं तो", अनुज ने अपना सिर ना में हिलाते हुए उत्तर दिया।
"यार अंकिता की कॉल आई थी", अनुज बोला और अपने मोबाइल से अंकिता को कॉल करने लगा। 
अंकिता राज की क्लासमेट थी, और दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों अक्सर एक दूसरे का हाल चाल जानने के लिए फ़ोन करते, लम्बी बातें करते रहते थे। 
अंकिता से बात करते हुए पता चला कि आने वाले रविवार को एक सरकारी संस्था में नौकरी के लिए लिखित परीक्षा है, जिसका एडमिट कार्ड मेल पर आ चूका है, अंकिता से बात करते हुए राज ने अनुज को बोला, "भाई, अपना एडमिट कार्ड चेक करना सेंटर कहाँ है?" 
इधर अनुज लैपटॉप में एडमिट कार्ड चेक करने लगा और राज अंकिता से बातें करते हुए कमरे में ही टहलने लगा। कुछ मिनटों के बाद अनुज बोला, "यार, अपना परीक्षा केंद्र तो लखनऊ में हैं।"
 जैसे ही राज ने अंकिता को ये बात बताई, अंकिता ने राज को अपने साथ में ही रेलवे टिकट बुक करने को बोल दिया। अनुज को शनिवार का टिकट बुक करने को बोलकर राज अंकिता से बातें करते रहा। 
कुछ मिनटो के बाद जब राज और अंकिता की बात-चीत ख़त्म हुई, अनुज ने बताया कि शनिवार शाम का टिकट हो गया है। 
"ठीक है", राज ने बोला और दोनों फिर से टवेंटी फोर सीरियल देखने में व्यस्त हो गए। 
वाईवा भी ख़त्म हो चुके थे। शनिवार का दिन आ गया, पुर्नियोजित समयानुसार शाम को तीनो दोस्त गोरखपुर प्लेटफार्म नंबर १ पर मिले। राज अकेले आया था, जबकि अनुज के साथ उसके पिताजी और अंकिता के साथ उसके चाचाजी थे। राज, अनुज और अंकिता तीनो के सीट एक ही कूपे (कम्पार्टमेंट) में थी। ट्रेन का समय हो गया, तीनो ने सबसे आशीर्वाद लिया और ट्रेन में जा बैठे। ट्रेन चलने लगी, सबने हाथ हिलाकर टाटा बॉय किया।  

अनुज अपने शर्मीले स्वाभाव के कारण किसी से बातचीत शुरुआत करने से कतराता था। परन्तु उसे सामरिक, राजनीतिक, विज्ञान, अविष्कार, प्रौद्योगिकी, रक्षा मामलों में वाद-विवाद करना अच्छा लगता था। उसे इन विषयों पर वाद-विवाद करके कोई हरा दे, ऐसा मुमकिन ना था। इससे पहले कभी भी अंकिता और अनुज का मुलाकात कॉलेज में कई  बार हुआ था परन्तु आमने-सामने ऐसे कभी नहीं बैठे थे। राज अपने वाकपटुता से किसी भी विषय पर चर्चा करने लग जाता। राज और अंकिता बाते करने में मशगूल हो गए और अनुज अपने साथ चेतन भगत की किताब "रेवोलुशन २०-२०" में व्यस्त हो गया। अनुज और अंकिता दोनों की आपस में बातचीत ना के बराबर ही थी, राज को रहना उचित नहीं लग रहा था और उसने बात करते करते "भारतीय सरकार द्वारा चीन निर्मित सेलुलर प्रौद्योगिकी यंत्रों का भारत में प्रतिबंध" टॉपिक पर चर्चा करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते कूपे में बाकि के तीन सीटों पर बैठे विद्वजन गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, बहुराष्ट्रीय कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर और एक सरकारी कंपनी में एचआर थी जो इस चर्चा में शामिल हो गए। राज, अंकिता और विद्वजन के चर्चा में अनुज चुप रह जाए ये मुश्किल था, अनुज भी अपनी बाते स्पष्ट तथ्यों के साथ वाद विवाद करने लगा। 
जहाँ अंकिता और बाकि विद्वजन भारतीय सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को अनुचित ठहरा रहे थे वहीं राज और अनुज भारतीय सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को उचित बताने के लिए तरह तरह के आधारों, विवरणों, घटनाओं, समाचारों का जिक्र करने लगे। चर्चा काफी लम्बी खींचने लगी तो प्रोफ़ेसर जी ने अनुज, राज और अंकिता तीनो के तर्कों, विश्लेषणों, आधारों का प्रशंसा करते हुए बोले, "रात काफी हो चुकी है, और आपने बहुत अच्छा परिचर्चा किया, मुझे काफी अच्छा लगा कि आप लोग, ऐसे विषयों पर भी चर्चा कर रहे हो" और अनुज के मुखातिब होकर बोले, "अगर आपके पास वक़्त हो तो मेरे ऑफिस में आकर मिलिए"। 
राज और अंकिता प्रोफ़ेसर जी के तरफ देखने लगे तो वो फिर से बोले,"आप लोग भी आ सकते है", तीनो दोस्तों के समझ में कुछ नहीं आ रहा था और एक प्रश्न के भाव लेकर प्रोफ़ेसर जी को एकटकी लगाए देख रहे थे, कुछ देर बाद प्रोफेसर जी बोले, "दरअसल मुझे एक तकनीकी सहायक की जरुरत है, यदि रूचि हो तो शायद आप में से कोई मेरी सहायता कर सके"।
"सर कितने सहायकों की जरुरत है? दो तीन नहीं है क्या?" अंकिता ख़ुशी प्रकट करते हुए पूछी और फिर बताती गई, "सर तीन नहीं तो कम से कम हम में से दो को सहायक रख कर देखिये, आपको निराश नहीं करेंगे। अनुज को तो देख ही लिए आप उसके जैसा होनहार, तर्क-संगत, विद्वान् आपको नहीं मिलेगा, हम आपसे ज़रूर मिलेंगे, हम सोमवार सुबह गोरखपुर लौट जाएंगे, आपसे हम कब मिले?" 

"मैं कल ही लौट जाऊँगा, सोमवार को ही मिल लो...... पर तैयारी करके आना", प्रोफेसर जी ने बोला। 
"ठीक है सर, हम तीनो आपसे सोमवार को १० बजे सुबह मिलेंगे, आपके ऑफिस में " अंकिता कौतुहल में ही बोल दिया, बिना अनुज और राज से पूछे। 
अंकिता आँखे बड़ी करके मुस्कुराते हुए राज और अनुज की तरफ देख रही थी, जैसे बैठे बिठाये उनको नौकरी मिल गई। अनुज और राज दोनों और संजीदा हो गये। रात के दस बज चुके थे, तीनों ने मिलकर भोजन किया और अपने अपने सीट पर जाकर सो गए।  


भोर के ३ बजे तीनो लखनऊ पहुंच गए, स्टेशन से ऑटो लिया, लखनऊ एयरपोर्ट के पास तीनों को जाना था। ऑटो के एक तरफ राज बैठ गया और अंकिता को बीच में बैठने के लिए इशारा किया। अंकिता बीच में बैठ गई इसके बाद अनुज ऑटो में बैठा। एक तरफ राज था तो दूसरे तरफ अनुज था और बीच में बैठी अंकिता थी। ऑटो में ग़ज़ल गायकी के बादशाह जगजीत सिंह का गाया "ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो......" गीत बज रहा था, तीनो एक दूसरे को देखने लगे। 
अचानक राज ने कहा, "यार बचपन ही सही था, जो हम मौज में रहते थे, किसी चीज़ का फिक्र नही था", राज की बात सुनकर अंकिता और अनुज ने हाँ में सिर हिलाया, और ऑटो स्टेशन के पार्किंग से निकल  मुख्य मार्ग पर आ गई। राज की बातें सुनकर ऑटो वाला बोला, "भैया जिंदगी है ये, बढ़ती ही जाएगी, कोई रोक नही पायेगा", ऑटो वाले की बात सुनकर तीनो मुस्कुराने लगे। रेलवे स्टेशन से एयरपोर्ट जाने में लगभग आधे घंटे लगते है, ये सोचकर राज ऑटो में ही सो गया। अनुज और अंकिता चुपचाप बैठे गाने सुन रहे थे। 
अगला ग़ज़ल जगजीत सिंह जी के आवाज में था "झुकी झुकी सी नजर बेक़रार है कि नही, दबा दबा ही सही दिल में प्यार है कि नही. ... . . . . . . . . . ."
ऑटो वाला ऑटो को गति के साथ भगा रहा था, सड़क एकदम सुनसान थी, कभी कभार कुत्तों का भौंकना सुनाई देता था, वो भी पल भर में दूर चला जाता था। राज एक किनारे सोया हुआ था,ऑटो के अंदर घुप अँधेरे में अनुज और अंकिता ऑटो में चुपचाप गाने सुनने में व्यस्त थे। 
अनुज और अंकिता एकाध पल के लिए एक दूसरे को देख लेते थे, और आँखे मिलते ही मुस्कुरा देते थे। "तुम जो इतना मुस्कुरा रहें हो, क्या ग़म है जो छिपा रहे हो.... . . .. . . ." ग़ज़ल बज रहा था जब अचानक एक मोड़ पर ऑटो दाएं तरफ मुड़ा और राज अंकिता के ऊपर आ गिरा। राज के अंकिता के तरफ अचानक आने से, अंकिता अनुज के और करीब सरक गई। ये सब इतना अचानक हुआ कि किसी को कुछ पता ना चला। राज की नींद टूट चुकी थी और ऑटो वाले को डाँटते हुए बोला, "अरे भैया थोड़ा देखकर चलाइये"।
"ठीक है भैया", ऑटो वाले ने बोला और ऑटो को सड़क पर सरपट दौड़ाये रखा। 
सामने की तरफ से आने वाले इक्का दुक्का गाड़ियों के आवाजाही से कभी कभार ऑटो में रोशनी आ रही थी। इन्ही रौशनी में अनुज और अंकिता एक दूसरे को तिरछी नज़रो से देख रहे थे। कुछ समय बाद ऑटो में जगजीत सिंह जी की पत्नी चित्रा सिंह जी का गाया गीत "तू नही तो जिंदगी में और क्या रह जाएगा.........." बजने लगा। इन गीतों के तरत्नमय ने ऑटो में अनुज और अंकिता के दरम्यान एक शमां जला दी थी, जिससे राज और ऑटो चालक दोनों अनभिज्ञ थे। 
अनुज और अंकिता दोनों किसी द्विस्वपन में खो गए ऐसा प्रतीत हो रहा था, "भैया आगे से बाएं ले लो" राज ने ऑटो चालक को कहा तो अनुज और अंकिता की तन्द्रा टूटी। इतने में अंकिता के बुआ का घर आ गया और अंकिता को उसके बुआ के घर छोड़कर राज और अनुज अपने एक मित्र के घर चले गए। सुबह होने में अभी कुछ घंटे बाकि थे और परीक्षा नौ बजे से था।
राज बिस्तर पर पड़ते ही सो गया, पर अनुज की आँखों से नींद गायब हो थी। इधर अनुज का ये हाल था तो उधर अंकिता भी अपने बुआ के बिस्तर पर पड़े पड़े किसी सपने में खो चुकी थी। 

अंकिता और अनुज के परीक्षा केंद्र एक ही थे और राज का करीब के ही दूसरे विद्यालय में था।  
   

ये कहानी थोड़ी लंबी है इसलिए इसे कई भाग में लिखना पड़ेगा। 
पल भर का प्यार‬: १० का दूसरा पार्ट जल्दी ही लिखूँगा........ 

तब तक बाकि के पोस्ट पढ़ सकते है!



Wednesday, July 27, 2016

Kalam Sir (Achievements, Lesson to Youths)!

I can't say much but I depict my heart that
"I was unable to meet you when you are alive, I met you when you are gone beyond me, in horizon of spirituality. I desired many times to take your blessings, but couldn't."



Dr. APJ Abdul Kalam, Photo Courtesy: Google






I learned about your biography, when I was enrolled in Science Olympiad, and in a book of Influencer Scientist, I recognized my vision 'to be noticed for extra ordinary work in society', just because of your life. 

After a tweet from +Srijan Pal Singh that you had a cardiac attack, I found myself uneasy situation, I queered about your health. But within few minutes I got the breaking news from financial news paper's application that "Ex President Dr. Kalam passed away". I was about to take dinner after the bath, but my hunger got diverse with anguish. I felt helpless, I keep checking tweets of Mr. Srijan Pal Singh about to access news about you. On the very next day, I visited your place of residence 10, RajaJi Marg. The peoples were anguish and waiting long long way and line to say bye bye to their teacher, mentor, ideal and honorable president. It felt that a gem which is lost somewhere never ever can be restored. 

But apart from the body, your teachings, lessons, scripts, biography are still alive. Some of those are:- 

  • Kalam started his career by designing a small helicopter for the Indian Army, but remained unconvinced with the choice of his job at DRDO. 
  • Kalam was also part of the INCOSPAR committee working under Vikram Sarabhai, the renowned space scientist.[9] In 1969, Kalam was transferred to theIndian Space Research Organization (ISRO) where he was the project director of India’s first indigenous Satellite Launch Vehicle (SLV-III) which successfully deployed the Rohini satellite in near earth orbit in July 1980. 
  • Joining ISRO was one of Kalam’s biggest achievements in life and he is said to have found himself when he started to work on the SLV project. 
  • Kalam first started work on an expandable rocket project independently at DRDO in 1965. In 1969, Kalam received the government’s approval and expanded the program to include more engineers. 
  • In 1963–64, he visited Nasa’s Langley Research Center in Hampton Virginia, Goddard Space Flight Center in Greenbelt, Maryland andWallops Flight Facility situated at Eastern Shore of Virginia. 
  • During the period between the 1970s and 1990s, Kalam made an effort to develop the Polar SLV and SLV-III projects, both of which proved to be success. 
  • In the 1970s, Kalam also directed two projects, namely, Project Devil and Project Valiant , which sought to develop ballistic missiles from the technology of the successful SLV programme. Despite the disapproval of Union Cabinet, Prime Minister Indira Gandhi allotted secret funds for these aerospace projects through her discretionary powers under Kalam’s directorship.Kalam played an integral role convincing the Union Cabinet to conceal the true nature of these classified aerospace projects. 
  • His research and educational leadership brought him great laurels and prestige in 1980s, which prompted the government to initiate an advanced missile program under his directorship. 
  • Kalam and Dr. V. S. Arunachalam, metallurgist and scientific adviser to the Defense Minister, worked on the suggestion by the then Defense Minister, R. Venkataraman on a proposal for simultaneous development of a quiver of missiles instead of taking planned missiles one by one.R Venkatraman was instrumental in getting the cabinet approval for allocating 388 crore rupees for the mission, named Integrated Guided Missile Development Program (I.G.M.D.P) and appointed Kalam as the Chief Executive. 
  • Kalam played a major part in developing many missiles under the mission including Agni, an intermediate range ballistic missile and Prithvi, the tactical surface-to-surface missile, although the projects have been criticised for mismanagement and cost and time overruns.
  • He was the Chief Scientific Adviser to the Prime Minister and the Secretary of Defence Research and Development Organisation from July 1992 to December 1999. 
  • The Pokhran-II nuclear tests were conducted during this period where he played an intensive political and technological role. Kalam served as the Chief Project Coordinator, along with R. Chidambaram during the testing phase. Photos and snapshots of him taken by the media elevated Kalam as the country’s top nuclear scientist. 
  • In 1998, along with cardiologist Dr.Soma Raju, Kalam developed a low cost Coronary stent. It was named as “Kalam-Raju Stent” honouring them. 
  • In 2012, the duo, designed a rugged tablet PC for health care in rural areas, which was named as “Kalam-Raju Tablet”.

Tuesday, July 12, 2016

कश्मीर को नजर लगी?


आज से ठीक पाँच साल पहले ६ जुलाई की सुबह मैं कश्मीर घाटी में पहली बार गया था, एक मोबाइल नेटवर्क को स्थापित करने वाले टीम का हिस्सा बनकर| ऐसी खुबसूरत वादी देखकर मैं मोहित हो गया था, अपने उस वक्त के भावनाओ वाकयों को लिखने के लिए वक्त चाहिए, जिसकी कमी है| परन्तु एक प्रश्न बार बार कौंध रही है, क्या हो रहा है कश्मीर को जिसके बारे में सही कहा गया है "Gar firdaus bar-rue zamin ast, hami asto, hamin asto, hamin ast"

बुरहन वानी का आतंकवादिओं से मेल और फौजिओं से मुठभेड़ में मौत, एक बार सोचने पर मजबूर करता है, ये संगठन काम कैसे करता है? 
कौन करता है पीर-पंजाल पहाड़ी श्रृंखला में अशांति फैलाने का कृत्य?
कौन करता है बुरहन वानी, जाकिर भट, वासिम मल्ला आदि जैसे लाखों का ब्रेनवाश?


डल झील के पास किसी भी रेस्टोरेंट में पता कीजिये, वहाँ के किसी डॉक्टर से बात कीजिए, गेस्ट हाउस के मालिकों से पूछिए, देश के विश्वविद्यालयों (JNU, Aligarh Muslim Univesity, Jamia Hamdard, Hyderabad University etc और जिनमे प्राइवेट विश्वविद्यालय भी है) और कालेजों में पढने वाले कश्मीरी छात्रों से पूछिए, मिल जाएगा कुछ किताबों के नाम, "जिनमे भारतीय होना कश्मीर घाटी के लिए एक दुस्वपन की तरह बताया गया है"|

कभी इन किताबों को पढ़ के देखिए, जुड़ जायेंगे खुद ही, ऐसे ही जैसे कामवासना ज्ञान के लिए वात्स्यायन के लिखे कामसूत्र से लोग जुड़ जाते है|

एक भारतीय होने के बावजूद मुझे और टीम को सोपोर, अनंतनाग, बारामुला, सोपियन इत्यादि जिलों में जाने पर भी डर लगता था, २२ दिन रहा था कश्मीर घाटी में, खुबसूरत वादियों में, हरियाली से सराबोर माहौल में...... पर जाने किसकी नजर लग गई है इसे?

मिल जाएगा कुछ प्रश्नों का पुलिंदा, जैसे यासीन मलिक, लाल चौक के लफड़े....... सोपोर में हर शुक्रवार होने वाले धमाके!

Tuesday, May 31, 2016

चलना हमारा काम है!

बचपन में आठ लाइन की दो- तीन कविताएँ रट लिया करता था, जो मुख्यतः होती थी, "मछली जल की रानी है, उसका जीवन पानी है..." और मैथिली शरण गुप्त जी का "नर हो ना निराश करो मन को, कुछ काम करो कुछ काम करो...."| वस्तुतः ये कविताये याद करने का मुख्य कारण था, परीक्षा में आठ लाइन की लिखने के लिए आना| आज इन कवियों के पंक्तियों में जोश, भावना, मानवता नजर आता है| जो उपयोगी है सीखने और जीवन को समझने के लिए, संघर्ष करने के लिए, जीतने के लिए, लड़ने के लिए, गिर कर खड़े होने के लिए........
आज जब इस कविता पर नजर पड़ी तो मन ने खुद ब खुद उँगलियों को कॉपी पेस्ट करने के लिए उकसा लिया एक नया पोस्ट लिखने के लिए, 


शिवमंगल सिंह सुमन की कविता....


चलना हमारा काम है
गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूँ दर दर खड़ा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक न मंज़िल पा सकूँ, 
तब तक मुझे न विराम है, चलना हमारा काम है।
कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गईं
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।
जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरुद्ध, इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।
इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पड़ा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पड़ा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।
मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोड़ा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे? जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।
साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रुकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम, उसीकी सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।
फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूँदकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिश्रित गरल, वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है।

Thursday, May 26, 2016

A Lesson for me and every one

A Lesson for me and every one


It was the summer of 1990. As Indian Railway (Traffic) Service probationers, my friend and I travelled by train from Lucknow to Delhi. Two MPs were also travelling in the same bogie. That was fine, but the behaviour of some 12 people who were travelling with them without reservation was terrifying. They forced us to vacate our reserved berths and sit on the luggage, and passed obscene and abusive comments. We cowered in fright and squirmed with rage. It was a harrowing night in the company of an unruly battalion; we were on edge, on the thin line between honour and dishonour. All other passengers seemed to have vanished, along with the Travelling Ticket Examiner.

We reached Delhi the next morning without being physically harmed by the goons, though we were emotionally wrecked. My friend was so traumatised she decided to skip the next phase of training in Ahmedabad and stayed back in Delhi. I decided to carry on since another batchmate was joining me. (She is Utpalparna Hazarika, now Executive Director, Railway Board.) We boarded an overnight train to Gujarat’s capital, this time without reservations as there wasn’t enough time to arrange for them. We had been wait-listed.

We met the TTE of the first class bogie, and told him how we had to get to Ahmedabad. The train was heavily booked, but he politely led us to a coupe to sit as he tried to help us. I looked at the two potential co-travellers, two politicians, as could be discerned from their white khadi attire, and panicked. “They’re decent people, regular travellers on this route, nothing to worry,” the TTE assured us. One of them was in his mid-forties with a normal, affectionate face, and the other in his late-thirties with a warm but somewhat impervious expression. They readily made space for us by almost squeezing themselves to one corner.

They introduced themselves: two BJP leaders from Gujarat. The names were told but quickly forgotten as names of co-passengers were inconsequential at that moment. We also introduced ourselves, two Railway service probationers from Assam. The conversation turned to different topics, particularly in the areas of History and the Polity. My friend, a post-graduate in History from Delhi University and very intelligent, took part. I too chipped in. The discussion veered around to the formation of the Hindu Mahasabha and the Muslim League.

The senior one was an enthusiastic participant. The younger one mostly remained quiet, but his body language conveyed his total mental involvement in what was being discussed, though he hardly contributed. Then I mentioned Syama Prasad Mookerjee’s death, why it was still considered a mystery by many. He suddenly asked: “How do you know about Syama Prasad Mookerjee?” I had to tell him that when my father was a post-graduate student in Calcutta University, as its Vice-Chancellor he had arranged a scholarship for the young man from Assam. My father often reminisced about that and regretted his untimely death [in June 1953 at the age of 51].

The younger man then almost looked away and spoke in a hushed tone almost to himself: “It’s good they know so many things ...”

Suddenly the senior man proposed: “Why don’t you join our party in Gujarat?” We both laughed it off, saying we were not from Gujarat. The younger man then forcefully interjected: “So what? We don’t have any problem on that. We welcome talent in our State.” I could see a sudden spark in his calm demeanour.

The food arrived, four vegetarian thalis. We ate in silence. When the pantry-car manager came to take the payment, the younger man paid for all of us. I muttered a feeble ‘thank you’, but he almost dismissed that as something utterly trivial. I observed at that moment that he had a different kind of glow in his eyes, which one could hardly miss. He rarely spoke, mostly listened.

The TTE then came and informed us the train was packed and he couldn’t arrange berths for us. Both men immediately stood up and said: “It’s okay, we’ll manage.” They swiftly spread a cloth on the floor and went to sleep, while we occupied the berths.

What a contrast! The previous night we had felt very insecure travelling with a bunch of politicians, and here we were travelling with two politicians in a coupe, with no fear.

The next morning, when the train neared Ahmedabad, both of them asked us about our lodging arrangements in the city. The senior one told us that in case of any problem, the doors of his house were open for us. There was some kind of genuine concern in the voice or the facial contours of the otherwise apparently inscrutable younger one, and he told us: “I’m like a nomad, I don’t have a proper home to invite you but you can accept his offer of safe shelter in this new place.”

We thanked them for that invitation and assured them that accommodation was not going to be a problem for us.

Before the train came to a stop, I pulled out my diary and asked them for their names again. I didn’t want to forget the names of two large-hearted fellow passengers who almost forced me to revise my opinion about politicians in general. I scribbled down the names quickly as the train was about to stop: Shankersinh Vaghela and Narendra Modi.

I wrote on this episode in an Assamese newspaper in 1995. It was a tribute to two unknown politicians from Gujarat for giving up their comfort ungrudgingly for the sake of two bens from Assam. When I wrote that, I didn’t have the faintest idea that these two people were going to become so prominent, or that I would hear more about them later. When Mr. Vaghela became Chief Minister of Gujarat in 1996, I was glad. When Mr. Modi took office as Chief Minister in 2001, I felt elated. (A few months later, another Assamese daily reproduced my 1995 piece.) And now, he is the Prime Minister of India.

Every time I see him on TV, I remember that warm meal, that gentle courtesy, caring and sense of security that we got that night far from home in a train, and bow my head.

(I copied this content from The Hindu. The author is General Manager of the Centre for Railway Information System, Indian Railways, New Delhi. leenasarma@rediffmail.com)

Monday, May 23, 2016

Don't Hesitate, Do Initiate!

Don't Hesitate, Do Initiate!

“If you are young and ambitious, you shouldn't be afraid to fight for change, for taking risk”.


Our life is all about growth irrespective to goals and objectives. Out of them some we decide and some are naturally defined. If we consider the genetic goals like height, weight, age, skin color etc these all are natural. These natural growth are consistent and may vary across a few level only. The variation of natural growth depends upon physical, chemical and biological phenomenon of location, thus depend upon weather. For example, if two baby having same skin color nurture at different location, in different weather condition. When they will grow by age, probability of having different skin color is higher irrespective to if they have nurtured at same location.

Incubation: Life Before Child. If we talk about human life cycle we will notice that only fastest male sperm out of half million sperms get fertilized with the female's eggs and construct a structure in the mother's womb. That is a basic phenomenon of fighting, surviving and hailing the life in nature.

Nurturing: Life of a Baby. When we set some objectives to accomplish by our own, it differs from the natural goals in a long way. It may come with several variation depending upon the energy we have put in it to achieve the defined goal as desired. The situation, energy level, moments do fluctuate all around while we try to accomplish that defined goal. But the self motivated, hardship enthusiastic desired personality come with great deeds and perform a great success rather to the predefined goal. This results great and provides us both bad and good days, lessons.

Acceleration: Difficulties with a child. When we initiate doing something new, many things seem difficult, and they tend to be difficult. But when something good happens, it brings so much joy that everything else is forgotten. In our life, experiences help us to reach at some where as we desire, but along-with practices, learning to execute, we manages to achieve much more beyond the set goal.



Happiness: Life of a young. For achieving the settled goal, never afraid to anyone, anything, anyplace. Don't hesitate to initiate things which none has done that way. After inception do design, develop and forecast the goal. Because life beyond the hesitation is initiation, it is more of the setting up to perform, developing to fight. This initiation expresses us to conquer the defined goal with the hard work, dedication, exposure of performance and execution. The more we initiate, the more we take risk more chances it has of being successful and constructive.


#राजेश्वर_सिंह (#RajeshwarSingh)

Thursday, May 19, 2016

After Breakup, Create Culture!

After Breakup, Create Culture!

In life we all experiences unexpected and something devastating at some point of time. Sometime we thought of loosing the prospective of gaining any thing. It may be Breakup from Friend, Breakup from Job, Breakup from Relations or occurrence of unhappy thing/situation, knowingly 'failure', a term which disturbs and scattered the energy levels. It is a universal part in the life of us 'human'.

Sometimes while giving up after failure is the most devastating rather looking for the future challenging events. Each of us have gone through breakup at something in our lives, yet the live does't stop us from breathing.
After breakup hook up with the life, create the culture to overcome from the situations soon. Look after the reasons behind the breakup and try to overcome from that problem in the next event. I'm saying 'try', because we are human and we may be going with several happenings, things, events simultaneously with us at a single point of time
Here I put some points I have learned from the life, I lived. Looking forward and creating culture to overcome from the drastic situations, breakups, is the way to live life.

Breakup is not final, it is a startup of new job, new relations, new opportunities, new events, new challenges. The success, happiness come to those who fail more frequently, they create culture of trying all around and develop strength inside to tackle with situation more effectively and confidently.
Sometimes "It's over" or "why to try again" is the most frequent thoughts come in the person's mind after breakup. It is difficult to overcome from the drastic situation, but keeping a clear vision that look after the current circumstances creates a culture to move forward. After breakup empowering negative aspects is just like  killing a live either of the person or prospective.


Breakup is not fatal it comes to those who tries to accomplish any target, who lives the life, who sustain the situations, who delivers the probabilities. Breakup is nevertheless consider till you quit from the situation come in your way. Breakup at any point of time may affect creativity, will, spirit, vision, drive, desire, passion or dreams and allowing it to affect the life is just like inhaling poison to destroy the faith of life. Breakup is not of our choice but overcome from it is absolutely power of aspects which creates confident to try again.

Breakup is not forever, it is hard to believe when surrounded by breakups. It does't last until or unless we consciously choose to keep a track of loss occurred. The fact to overcome from breakup is to learn from it, not to fade down because you tried it. Breakup is another chance to re-invent, re-create, re-design, re-structure, re-define the culture to accomplish target. 

We have gone through the scientist Thomas Edison, who tried 9,999 different ways to develop a light bulb all of which failed until his 10,000th try when he invented light bulb. He created a culture of trying. He keeps trying until the objective accomplished.
The life of APJ Abdul Kalam Sir is another era from which you can learn, how to overcome from breakup. It is just because of creating culture of trying. 


#राजेश्वर_सिंह (#RajeshwarSingh)

Tuesday, May 17, 2016

पल भर का प्यार‬: ९

#‎पल_भर_का_प्यार‬: ९



गर्मी के मौसम से दिल्ली में त्राहि मच रही है, अखबार में हर अगला दिन गर्मी के अधिकतम स्तर को छूने लगा है। इस गर्मी के मौसम में इंसानों, जन्तुओ, फूल, पत्तियों, पेड़ो के साथ साथ आईपीएल मैच में भी गर्मी अपने उच्च स्तर पर पहुँच रहा है। पिछले मैच में आरसीबी के कोहली और एबी ने तो अपनी गर्मी शतक बनाकर निकाल दिया वो भी २०-२० मैच में! वैसे तो उत्तराखंड राज्य ठंडा प्रदेश है फिर भी पिछले कुछ दिनों से राजनीति से मौसम बहुत गर्म हो रखा था, माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश पर दो घंटे के समय में रावत ने बहुमत साबित करके अपनी सरकार बना लिया।

इधर अमोल को रात को १२ बजे तक मैच देखने के बाद दोस्तों से बात करते और ऑफिस का काम ख़त्म करते करते २ बज जाते है। रात को मच्छरों और गर्मी के प्रकोप के कारण नींद पूरी करते करते सुबह के लगभग नौ-दस बज ही जाते है, पर पिछले कुछ दिनों से अमोल सुबह-सुबह सूर्योदय के पहले जागने लगा हैं। सोये चाहे जितने बजे सुबह ६ बजे से पहले जागना होता है, सुबह तरोताजा होने के बाद पार्क में जाकर दौड़ने लगा है। लगभग घंटे भर के टहलने के बाद ७ बजे से पहले चाय-नाश्ता कर लेता है। सुबह सुबह ऑनलाइन रेडियो लगा कर हाथ में अख़बार लिए बैठ जाता है, रेडियो के वॉल्यूम का लेवल इतना ऊँचा रखता है कि साथ में रहने वाले मित्र भी उसे अपनी भाषा में तरह-तरह के उपयुक्त शब्दों के बौछार करने लगे है।

ऐसा पहली बार हुआ है जो अमोल इतनी सुबह जागने लगा है| दरअसल अमोल के लिए शादी का रिश्ता आया हैं। लड़की मुस्कान पुणे में रहती है, पेशे से अध्यापक है। पारिवारिक मित्र के सहयोग से इनकी शादी के लिए दोनों के परिवार में बातचीत चल रही है और शादी लगभग तय है। अगले साल के फाल्गुन में लग्न निकालने के लिए पंडित जी से सलाह लिया जा रहा है। तकनीक से परिपूर्ण इस दुनिया में अब तक अमोल और मुस्कान के बीच कोई बातचीत नही हो पाई है, ऐसा नही है कि मोबाइल नंबर मिलने में कोई दिक्कत है, अमोल और मुस्कान दोनों की एक साझा मित्र है मिथलेश जो ऑनलाइन रेडियो पर ‘मीठी के फटके’ नाम से ऑस्ट्रेलिया के लिए कार्यक्रम (शो) होस्ट करती है। फिर भी दोनों ना जाने क्यों बात करने, जज्बात बताने में कतराते है। मीठी से ही अमोल और मुस्कान दोनों एक दुसरे के पसंद-नापसंद, हाल-चाल जानने पहचानने लगे है। मीठी कई बार अमोल को बात करने के बोल चुकी है और नंबर भी दे दिया परन्तु, अमोल के दिल की धड़कने बढ़ जाती है जब भी वो कोशिश करता है कि बात करें।उँगलियाँ मुस्कान के नंबर को डायल करने में ही कापने लगती है, फिर बात करें तो कैसे करें। वैसे तो अमोल को ‘भाबी जी घर पर है’ एपिसोड बहुत पसंद हैं ‘आईपीएल मैच’ के अलावा, पर अब रात को ‘आईपीएल मैच’ के साथ साथ ‘भाबी जी घर पर है’ भी छूटने लगा है। जब से अमोल और मुस्कान के घर वाले इस रिश्ते को और मजबूत बनाने में लगे हुए है और इधर ये दोनों शर्म के कारण अभी हाय-हेल्लो भी नही कर पाए है।

कुछ रोज पहले मीठी ने अमोल से उसके पसंद के गाने की लिस्ट मांगी थी, अमोल ने अग्निपथ फिल्म से ‘चिकनी चमेली.....’, कपूर एंड संस फिल्म से ‘लड़की ब्यूटीफुल.....’, हम आपके है कौन फिल्म से ‘टाइटल ट्रैक’ और ‘दिल से जुदा होकर हम कैसे रह पायेंगे.....’, जवानी दीवानी फिल्म से ‘कैसी तेरी खुदगर्जी’ गानों का एक लिस्ट दे दिया।

उसी रात अमोल को व्हाट्सएप्प पर मीठी का मेसेज मिला, “मेरा कल सुबह का प्रोग्राम सुनों.....”, मेसेज तो १० बजे ही आया था पर अमोल आईपीएल और दोस्तों से बातचीत के बाद उस मेसेज को रात के १ बजे पढ़ पाया, रिप्लाई में वो ‘क्यों, क्या हो गया?’ लिखा। मीठी रिप्लाई नही करेगी, अमोल जानता था क्योंकि मीठी को सात बजे के कार्यक्रम (शो) के लिए सुबह जल्दी जागना होता था इसलिए वो सो गई होगी। कुछ स्पेशल होगा तभी मीठी ने कार्यक्रम (शो) सुनने के लिए मेसेज की है सोचते हुए सुबह पौने सात बजे का अलार्म लगाया और सो गया।

अमोल तो खर्राटे भरते हुए सो रहा था सुबह के पौने सात बजते ही अलार्म बजने लगा। अमोल अभी भी सो रहा था कि उसके एक मित्र ने उसके चूतड़ पर लात मारी और खिसियाते हुए बोले, “अबे कहीं जाना है क्या, जो इतने सुबह का अलार्म लगाया है”। अमोल अलसाए हुए उठा और आँख मलते हुए तरोताजा होने के लिए चल दिया। बाथरूम से आकर फ्रिज से ठंडा पानी निकाला, एक गिलास पानी गटकने लगा।सात बजने में कुछ मिनट बचे थे, अखबार भी आ गया था, अखबार हाथ में लिया, कुर्सी बालकनी में रखकर बैठ गया। मोबाइल में इन्टरनेट रेडियो लगाया, ईयरप्लग कान में लगाया और अखबार पढने लगा।

मीठी का कार्यक्रम ‘मीठी के फटके’ प्रसारित होने वाला था, “दोस्तों, नमस्ते प्रणाम मैं आपकी दोस्त होस्ट सखी सहेली मीठी लेकर आई हूँ मीठी के फटके.... जिसमे हैं मेरे बकबक के अलावा बहुत कुछ.... आज मैं आपको बताउंगी खुश रहने के तरीके इस म्यूजिकल ब्रेक के बाद..... सुनिए आज का पहला गाना माय फेवरेट...

‘फिल्म बागी से ‘मैं नाचूँ छम छम.....’’ और ये गाना बजने लगा। कुछ समय बाद दूसरा गाना ‘फिल्म पतिंगा से ‘मेरे पिया गये रंगून किया है टेलीफून तुम्हारी याद सताती है.....’’ बजा। अमोल मीठी का शो सुनते सुनते चाय बनाने लगा, तीसरा गाना ‘फिल्म सीआईडी से ‘ओ लेके पहला पहला प्यार भरके आँखों में ख़ुमार जादू नगरी से आया कोई जादूगर......’’ इतने में चाय बन चुकी थी और अमोल चाय का प्याला लिए फिर से बालकनी में आ गया। इसके बाद ‘फिल्म फागुन से ‘एक परदेशी मेरा दिल ले गया जाते जाते मीठा मीठा गम दे गया.....’’ बजने लगा| मीठी कोई ऐसी बात नही कर रही थी जिससे अमोल को लगे कि उसे कुछ विशेष लगे। तभी मीठी की आवाज सुनाई देने लगा, “आपके रगो में रोमांस का ख़ुमार चढ़ने लगा होगा, आइये अब सुनते है अग्निपथ से चिकनी चमेली...” और ये गाना बजने लगा।

इसके बाद सारे वही गाने बजे जो अमोल को पसंद थे। शो सुनने के बाद अमोल मुस्कुरा रहा था कि, अमोल का फ़ोन घनघनाने लगा, स्क्रीन पर देखा तो मीठी का नंबर फ़्लैश हो रहा था। हाय हेल्लो और हालचाल होने के बाद मीठी ने जो बताया उसपर अमोल को विश्वास ही नही हुआ।

मीठी ने बताया की ये मुस्कान का आईडिया था कि अमोल के पसंद के गाने चलाये जाए, जिसे वो सुन सके। अमोल कुछ पूछने वाला ही था कि मीठी ने एक और रहस्य से पर्दा उठा दिया, शो के शुरुआत में चलाये गए गाने मुस्कान के पसंद के थे जो उसने अमोल को समर्पित (डेडीकेट) किये थे।

अब अमोल और मुस्कान दोनों हर रोज अपने पसंद के गानों की लिस्ट मीठी को बता देते है और हर दिन की शुरुआत अपने पसंद और अपने होने वाले हमसफर के पसंद के गाने को सुन कर करते है। बातें वो अब भी नही करते..... बस ऐसा है अमोल और मुस्कान का ‘पल भर का प्यार’!



#पल_भर_का_प्यार (‪#‎Momentary_Love), stories with emotion, a new series in my writing skill. ये संग्रह साधारण लड़के/लड़कियों के ज़िंदगी के कुछ छोटे-मोटे पलों को बयां करती है। जिसे पढ़कर शायद आपके चेहरें पर एक छोटी सी मुस्कान आ जाए और आप भी बुदबुदाने लगे, “यार अपने साथ भी कभी ऐसा हुआ था”।

इस संग्रह के किसी भी कहानी को दूसरे कहानी से जोड़कर ना पढ़े, हर एक भाग एक नई कहानी है, किसी भी कहानी का इस संग्रह के दूसरे कहानियों से कोई ताल्लुकात नही है सिवाय प्यार, कुछ नाम और शीर्षक ‘पल भर का प्यार’ के......... और मैं आप मे से कुछ लोगो के उलझन को दूर कर दूँ, इन कहानियों मे से कुछ मेरी खुद की हैं, तो कुछ मेरे दोस्तो की है (जिन्होने मुझसे अपने दिल-ए-हालत साझा किया है), कुछ मेरे दिमाग की उपज है।

#राजेश्वर_सिंह (#RajeshwarSingh)

पल भर का प्यार‬: ८

#पल_भर_का_प्यार‬: ८




फेसबुक भी क्या ग़जब का प्लेटफार्म है, जो रूठो को मना देता है तो वहीं रिश्तों में दरार बना देता है, पल में हँसा देता है, तो रुलाने में भी वक्त नही लगाता, चाहने वाला रिप्लाई नही कराता और बुरे लोगो से पीछा नही छुड़ाता। काश फेसबुक एक इंसान मनोभावों को समझता और रिश्तों को और सुलझाता। खैर अमोल की मुलाकात मुस्कान से काफी दिनों के बाद एक दोस्त के शादी में हुई। दोनों एक ही कॉलेज में पढ़े थे, अंतिम मुलाकात के समय दोनों में काफी झगड़ा हो गया था। बात बस इतनी थी कि अमोल अपने आदत (दोस्तों को तंग करना) के अनुसार मुस्कान को चिढ़ा दिया था, चुहिया कहकर। उस झगडे के बाद दोनों अपने जिंदगी में व्यस्त हो गए। 
कॉलेज के कई साल गुजर गए थे, अमोल अपने एक दोस्त की शादी में दूसरे करीबी दोस्त के साथ बातचीत में मशगूल था कि पीछे से एक आवाज़ आई ,"और हीरो क्या हाल चाल?"
अमोल और उसकी करीबी दोस्त दोनों ने पीछे मुड़कर देखा तो कॉलेज के दोस्तों का एक झुण्ड था, सब बहुत गर्मजोशी से मिले। उसी में मुस्कान भी थी, सबने हाथ मिलाकर और गले मिलकर अपने ख़ुशी को बयां किया। अंतिम में अमोल और मुस्कान की नजरें मिली, लड़ाई के वक़्त दोनों ने एक दूसरे से कभी ना बात करने की प्रतिज्ञा ली थी, जिसके कारण अमोल ने फिर से खिंचाई करते हुए बोला, "क्या बात है बड़े लोग भी आये है.....!"
"हाँ हाँ क्यों नहीं..... केवल तुम्ही आ सकते हो क्या?",  मुस्कान बोली फिर से मुँह बना ली। इस बार कॉलेज जैसा रुआँसा नहीं हुई थोड़ा मुस्कुराई  भी थी। 
"तुम लोग फिर से शुरू हो गए......... यार अब तो बच्चे ना बनों.......", एक दोस्त ने डांटा, इसके बाद अमोल और मुस्कान ने हाथ मिलाए। 
बातों बातों में दोनों ने एक दूसरे का कुशल-क्षेम पूछा। फिर बाकी के समय दोनों अपने अपने करीबी मित्र के साथ व्यस्त रहें। 

शादी को गुजरे कई महीने हुए फिर फेसबुक पर अमोल को मुस्कान का फ्रेंड रिक्वेस्ट आया, अमोल ने एक्सेप्ट कर लिया। फिर दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। अब जब भी वक़्त होता है दोनों बातें करते है। आखिरकार अमोल और मुस्कान की नफरत और दुश्मनी का रिश्ता दोस्ती में बदल गया। 




#पल_भर_का_प्यार (‪#‎Momentary_Love), stories with emotion, a new series in my writing skill. ये संग्रह साधारण लड़के/लड़कियों के ज़िंदगी के कुछ छोटे-मोटे पलों को बयां करती है। जिसे पढ़कर शायद आपके चेहरें पर एक छोटी सी मुस्कान आ जाए और आप भी बुदबुदाने लगे, “यार अपने साथ भी कभी ऐसा हुआ था”।

इस संग्रह के किसी भी कहानी को दूसरे कहानी से जोड़कर ना पढ़े, हर एक भाग एक नई कहानी है, किसी भी कहानी का इस संग्रह के दूसरे कहानियों से कोई ताल्लुकात नही है सिवाय प्यार, कुछ नाम और शीर्षक ‘पल भर का प्यार’ के......... और मैं आप मे से कुछ लोगो के उलझन को दूर कर दूँ, इन कहानियों मे से कुछ मेरी खुद की हैं, तो कुछ मेरे दोस्तो की है (जिन्होने मुझसे अपने दिल-ए-हालत साझा किया है), कुछ मेरे दिमाग की उपज है।

#राजेश्वर_सिंह (#RajeshwarSingh)

Sunday, May 8, 2016

माँ के ममता को नमन!




मातृ दिवस पर विश्व के सभी नारी जाति के मातृत्व को प्रणाम और शत् शत् नमन, वंदन.......

माँ, शब्द सबसे पहले मैंने सीखा था
माँ, एहसास सबसे पहले मैंने समझा था
माँ, लफ्ज़ सबसे पहले मैंने बोला था
आपने ही तो माँ शब्द सिखाया था
शायद माँ शब्द मैंने पहले लिखा था
आपने अपनी उंगलियों से ही लिखाया था
जब मै अपना पहला पग चला था
आपने ही ऊँगली पकड़ चलाया था
माँ, आप ही मेरी पहली प्रेमिका हो
माँ, आप ही मेरी सहेली हो 
माँ, आप ही मेरी जीवनदायिनी हो
माँ, आप ही मेरी ईश्वर हो
जीवन में आप जैसा स्नेह, 
आप जैसा प्यार
कोई नही दे सकता, 
और ना ही दे सका
मेरी इच्छा-अनिच्छाओ को, 
अपना बनाने वाली
मेरे दुःख-दर्द में, 
सहभागी बनने वाली
मुझको नींद ना आने पर, 
खुद पूरी रात जागने वाली
माँ, आप ही हो जिनका,
मुझ पर पूरा प्रभाव है
माँ, आपकी महिमा, सरलता
शब्दों में ना लिख सकता
और ना ही
भाषा में व्यक्त कर सकता हूँ
आपका स्नेह, दुलार
आदर प्यार
यही तो है जो आगे बढ़ा रहा है
और मै आगे बढ़ रहा हूँ
मेरे लिए ना जाने कितने
आप व्रत रहती है, पूजा करती है
मुझे सफल बनाने के लिए
भगवान से मिन्नतें मांगती है
माँ, आपके कारण मै हूँ
माँ, आपसे ही मै हूँ 
माँ, आपका ही मै हूँ 
माँ, आपके लिए मै हूँ 


मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ:-
मातृ देवोः भवः!!!!
#राजेश्वर_सिंह (#RajeshwarSingh)

©www.rajeshwarsh.blogspot.in

Tuesday, May 3, 2016

हैल्लो मुख्यमंत्री जी!

माननीय मुख्यमंत्री जी,
नमस्कार!
मैंने ट्विटर और न्यूज़ चैनल पर आपके उवाच देखता/पढ़ता/सुनता रहता हूँ, पाँच साल पहले २०११ के गर्मी से भरे अप्रैल महीने में आपके भ्रष्टाचार के खिलाफ भाषण सुनने में अच्छे लगते थे। और आपके उन्ही धरना प्रदर्शन और उवाच के चलते आप आज दिल्ली प्रदेश के मुख्य्मंत्री बन गए। मैं चाहता हूँ कि आप अपने जीवन में तरक्की करें पर प्रदेश के जनता के जमा टैक्स को ऐसे 'ईमानदारी' का ढोंग दिखाने वाले विज्ञापन पर खर्च ना करिए।
आपके कुछ क्रियाकलापों से हम युवा को बहुत कुछ सिखने को मिलता है, जैसे 'आप जो चाहो वो कर सकते हो', आप नौकरी छोड़ कर मेहनत किया, नेतागिरी में आये, और दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए।
परन्तु आज मुझे आपके कमेंट्स, ट्वीट्स, उवाच सुनकर कभी कभी मन में प्रश्न उठता है जैसे आप रेवेन्यू सर्विसेज भी क्वालिफाइड है भी कि नहीं? कभी ऐसा लगता है जैसे कि इस कुर्सी ने आपको बदल दिया है, आप आजकल अनपढ़, अज्ञानी रजिनीतिज्ञ की तरह व्यवहार करने लगे है जो संसद और विधान सभा में कुर्सियां, माइक, पेपर इत्यादि फेंकने लगते है, और हो हल्ला करते है।

ऑड इवन के लिए इतना खर्चा!
कभी पानी बचाने के बारे में सोचा है आपने? जितनी पानी दिल्ली बर्बाद करती होगी उतना शायद ही कोई और राज्य करता हो, जितने भी फ़िल्टर मशीन (आटोमेटिक वाटर टेलर मशीन) लगे है अधिकतर जगह फ़िल्टर के उपरांत वाले पानी (लगभग ४०%) नालिओं में बहा देते है। 
मैंने तीन महीने पहले एक सिग्नल के बारे में आपके साथ-साथ दिल्ली पुलिस को भी लिखा था परन्तु उसपर अभी तक कुछ नहीं हुआ।


मंगल बाजार की तरफ से सड़क पार करने के लिए किस सिग्नल को संज्ञान में लेकर सड़क पार करें समझ में नहीं आता, गाड़ीओ वाले या पैदल यात्रिओं वाले। पिलर नंबर ९७ पर लगे ट्रैफिक सिग्नल पर मंगल बाजार से शकरपुर की तरफ जाने वाले पैदल यात्रिओ और लक्ष्मी नगर से निर्माण विहार जाने वाले गाड़ीओ दोनों के लिए एक ही वक़्त में सिग्नल ग्रीन रहता है।



हम युवाओं के साथ ऐसे मजाक मत करिए, ऐसे फ़ालतू के विज्ञापन खर्च करके, कुछ चीजे है जिन्हे उन पैसो से सही की जा सकती है। जैसे अस्पतालों और सरकारी भवनों के सामने लगे दिशा निर्देश, सूचनाएं इत्यादि बोर्ड (जानकारी के लिए वसुंधरा एन्क्लेव के पास एक आयुष (होमियोपैथी आधारित) अस्पताल का बोर्ड जीर्ण शीर्ण हो गई है)।
स्वराज्य क्या ख़ाक आएगा जब 
अनुसंधान, नवाचार, उद्मिता ही नहीं होगी।  दिल्ली में 'टेक्नोलॉजी डेवेलोपमेंट कंसोर्टियम' हो, जिनमे औद्योगिक विकास पर चर्चा, सलाह, अनुसंधान, नवाचार हो।  आईआईटी के अलावा भी अन्य  कॉलेजो में प्रतिभावान पढ़ते है उन्हें भी मौका दिया जाना चाहिए, उद्मिता के लिए। इस देश को आगे बढ़ाने के लिए आप भी बहुत कुछ कर सकते है, प्रधानमंत्री पद के लिए इतने जल्दी मत करिए, लालू, नीतीश, मुलायम, शरद इत्यादि लोग भी सपने सँजो रखे है।

आप मुझे मोदी भक्त सोच रहे होंगे, पर मोदी जी के सरकार की उपलब्धियों पर अगर मैं लिखूँ तो बहुत कुछ लिखूँगा, यद्यपि वक़्त की कमीं है, फिर भी इतना मुझे बताने में ख़ुशी हो रही है कि एक कंपनी आई टी आई जो धराशायी हो गई थी वो भी मुनाफ़ा कमाने लगी Click here for official figure

आपको मैं कोई नसीहत या फिर सलाह नहीं दे रहा हूँ, मैं अपने पीड़ा को बता रहा हूँ। आप केवल कहने के 'आम आदमी' रह गए है, सलीका, शिष्टाचार सब भूल गए है, आप इंजीनियर होकर भी इंजीनियर नहीं लगते है। आपने हमें रेडियो और टीवी पर बहुत हैल्लो किए है, मैंने भी बस हैल्लो किया है।  

शेष फिर कभी,
#राजेश्वर_सिंह (#RajeshwarSingh)