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Saturday, March 18, 2017

पत्र: ११ १८ मार्च २०१७)

पत्र: ११ (१८ मार्च २०१७)

देश में मोदी प्रदेश में योगी 


पत्र श्रृंखला के आज के अंक में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को पत्र,


अभी कल ही मैंने एक पत्र लिखा था, जो की यौन उत्पीड़न पर एक खुला पत्र था। आज मैं उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नाम एक पत्र लिख रहा हूँ। योगी जी आपको प्रणाम एवं आपको बहुत बहुत बधाई!

ये जीत विकास के नाम पर या यूँ कहें कि मोदी जी के नाम पर मिली है, मैं अपना मताधिकार का प्रयोग नही करना चाहता था परन्तु मैंने संविधान द्वारा दिए गए इस अधिकार का प्रयोग किया। ये लहर २०१४ जैसी मोदी जी की लहर थी जो प्रतिनिधि को दरकिनार कर लोगो ने मत दिए।

मैंने गोरखपुर में अपने जीवन के आठ साल गुजारे है, अपने शिक्षा के अहम् आठ साल। ख़ुशी होती है कि एक ऐसे पवित्र शहर से जुड़ा हुआ हूँ, जिसमे सभी धर्म के लोग धार्मिक-सद्भाव से रहते है। आज क्योंकि आप प्रदेश के मुख्यमंत्री बन रहे है, इसलिए हम पूर्वांचलियों के लिए बहुत सारे सपने सच होंगे ऐसा प्रतीत हो रहा है। पूर्वांचल के विकास में जो काम माननीय वीर बहादुर सिंह जी ने किया था, उसे अब जाकर गति मिलेगा वरना भूतपूर्व मुख्यमंत्री गण केवल चुनावी प्रक्रिया के लिए पूर्वांचल का दर्शन करते थे, विकास के लिए नही।

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१९९८ से आप गोरखपुर से सांसद रहे है और गोरखपुर के लिए कई अभूतपूर्व विकास कार्य करवाये, और आशा है कि अब बाबा गोरखनाथ की कर्मभूमि गोरखपुर में तरक्की का मार्ग प्रशस्त होगा। कुछ कार्य का यहाँ जिक्र करना चाहूँगा, जो जनता के बीच चर्चित है:-

  • गोरखनाथ अस्पताल का स्थापना
  • मेडिकल कॉलेज का मान्यता यथावत रखना
  • जापान इंसेफेलाइटिस के लिए मेडिकल कॉलेज में अलग से वार्ड की स्थापना
  • गैस सिलिंडर भरने के लिए संयंत्र का स्थापना
  • एम्स की स्थापना
  • खाद कारखाना का पुर्नजन्म

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अब मैं चाहूँगा कि आप पूर्वांचल की आर्थिक दशा को और मजबूत करें जिससे कि यहाँ से मजदूर और पेशेवर/इंजीनियर इत्यादि का पलायन रुके और यहाँ का विकास हो।

  • वीडा और गीडा में उद्योगों की स्थापना, 
  • गोरखपुर में आईटी पार्क, 
  • कुशीनगर में विश्स्तरीय एयरपोर्ट की अविलम्ब शुरुआत, 
  • चीनी मिलों का पुर्नउद्धार, 
  • बाढ़ से बचने के लिए क्षेत्र में नदियों, नहरों और बाँधो की मरम्मत, 
  • क्षेत्र में कोल्ड स्टोरेज स्थापना,
  • गोरखपुर के दोनों विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा,
  • गोरखपुर से शहरीय/अंतर्राज्यीय परिवहन की दुरुस्त व्यवस्था
  • गोरखपुर में जंक्शन के अलावा एक और विश्वस्तरीय रेलवे स्टेशन,
  • चौरी-चौरा शहीद स्मारक को एक पर्यटक स्थल के रूप में विकास,
  • राज्य में स्थित धार्मिक स्थलों तक यातायात की दुरुस्त व्यवस्था,
जो विकास आजादी के ७० सालों में नही हुए वो आने वाले कुछ सालों में प्रशस्त हो, इन्ही शब्दो के साथ आपके आशीर्वाद के लिए शुभेक्क्षु, राजेश्वर। 


शेष फिर,
पत्र: ११  
राजेश्वर सिंह
नई दिल्ली, भारत
#rajeshwarsh

Sunday, February 19, 2017

पत्र: ६ (१९ फरवरी २०१७)

पत्र: ६ (१९ फरवरी २०१७)

पत्र चुनावी दंगल के उम्मीदवारों और उनके स्टार प्रचारको को, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चुनावी दंगल में सम्मिलित है।


माननीय नेताओ और नेत्रियों,
सादर नमस्कार,

आशा है आप जहाँ भी होंगे सकुशल होंगे और प्रजातंत्र में राजतंत्र जैसे सुख-सुविधाओं का जबरदस्त उपभोग कर रहें होंगे। इस पत्र को लिखते वक्त देश के बड़े जनसँख्या वाले राज्य में विधानसभा चुनाव चल रहा है और सभी दल विरोधी दलों की बखिया उधेड़ने में लगे हुए है। इन्ही अधोलिखित चुनाव प्रचार में भाषणों, कथनों, कृत्यों, कारनामों, साक्ष्यो इत्यादि को ध्यान में रखते हुए इसे लिख रहा हूँ, आशा है ये पत्र आपके दिलोदिमाग़ पर कुछ प्रभाव डाले और आप आने वाले दिनों मे देशहित में ज्यादा सोचे।

आजकल के डिजिटल युग में सब नेता लोग एक दूसरे से अच्छा दिखने के होड़ में लगे हुए है। किसी दल का काम बोलता है तो कोई परिवर्तन चाहता है। किसी दल को जाति-धर्म के आधार पर वोट चाहिए कि आलिशान मकान बनवा लें तो किसी के लिए परिवार में ही नेताओं की लंबी फ़ेहरिश्त चाहिए। ये लोग शायद घर पर भी नेतागिरी करना चाहते है या फिर इनको विधानसभा-संसद में पारिवारिक माहौल चाहिए।

काम बोलने से याद आया, अगर काम ही बोलता है तो गठबंधन क्यों? इसी गठबंधन का एक दल तो ऐसा है जो गठबंधन के दूसरे दल के ख़िलाफ़ कुछ दिनों पहले लोगो के बीच जा-जाकर खटिया बिछा कर विरोध कर रहा था, पर जब खटिया ही लूट ली गई तो मरता क्या ना करता, कैरियर पर बैठ लिए। वैसे भी इस दल के युवा(केवल कहने के लिए युवा) नेता जो उम्र के मामले में तो अर्धशतक लगाने वाले है, परन्तु अभी तक इनसे कभी आधिकारिक तौर पर खटिया चरमराने-टूटने का खबर नही मिला है।

वैसे तो चुनाव आयोग ने कमर कस कर रखी है, नियमो के अनुसार पालन कराने के लिए फिर भी भारतीय हमेशा जुगाड़ निकाल ही लेते है। कुछ उम्मीदवारों ने तो अपने ही खिलाफ एक या एक से अधिक उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे है जिससे कि तथाकथित उम्मीदवार को चुनाव प्रचार के लिए कई वाहनों, प्रचारको का इंतेजाम हो सके। इसकी आधिकारिक तौर पर पुष्टि शायद ही कोई कर सके, परन्तु इस चुनाव दंगल में ये सब हो रहा है।

वैसे तो आप लोगो के कारनामे भी पढ़कर परमानन्द की अनुभूति होती है। ये तो चुनावी दंगल है, और जनप्रतिनिधि बनने के लिए आप लोगो में से अधिकतर ने अपने जीवनकाल में ऐसे ऐसे कृत्य किये होंगे जिसे सामाजिक और क़ानूनी तौर पर वैध नही माना जाता फिर भी आप लोग महान है। आपके लिए सब कुछ छूट है, चाहे जोर जबरदस्ती करे, बलात्कार करे, क़त्ल करे या अतिक्रमण करे, आदि आदि कृत्य अनादि काल से आप लोगो के लिए जायज है। 

आप लोग अपने इलाके में एक अलग ही सरकार चलाने लगते हो, वो चाहे लोगो से वसूली करनी हो या फिर चौराहों पर वसूली, ठेका दिलवाना हो या फिर किसी को ठोक पीट कर ठीक कराना हो। 

आप लोग पुलिस को तो मुट्ठी में लेकर चलते है, जब चाहे जैसा चाहे मौका-ए-वारदात पर उनका खुल कर इश्तेमाल कर लेते है।

चाहे जैसा माहौल हो, चाहे आप जेल में हों या घर पर, आप लोगों की सेवा भाव आपके भरे पुरे खाते पीते शरीर में दिखता है। वोट करने वाली जनता पतली दुबली ही रहती है परन्तु आप लोगो की बलिष्ठ शरीर आपके सेहत का एक झलक पेश करता है। 

वैसे भी आप लोगो की वजह से ही तो जनता की छद्म सेवा की जाती है, वरना तो सारे सरकारी नौकर (माफ़ करियेगा नौकरी करने वालों को नौकर कह रहा हूँ) कर्मचारी निठ्ठले है, जिनके कानों पर जूं नही रेंगती। 

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आप ही लोगो की वजह से तो किसान खेत में फसल उगाता है वरना तो वो भूखे मर जाएगा। देश के एक बड़े मंत्री ने चुनावी प्रचार में कहा, "हम इस प्रदेश के किसानों की तकदीर बदल देंगे", उनके इस कथन पर एक किसान केवल यही कहना पसंद करेगा, "बेटा जिस विश्वविद्यालय से जिस समय तुमने राजनीति शुरू किया, वो क्षेत्र उस समय गन्ना उत्पाद में विश्व भर में प्रथम स्थान पर था। पर तुम तो बेटा प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने, देश के केंद्रीय मंत्री भी बन गए पर आज चीनी आयात कर रहे हो। तुमसे ना बेटा, कभी ना हो पाएगा। इसीलिए बेटा हम कह रहे है तुम अपने बेटे का तकदीर केवल बदलो और उसको राजनीति में स्थापित करवाओ-खिलाओ बाकि हमारी तकदीर क्या घंटा बदलोगे? तुम्हारी औकात नही है| एक बात है देश के प्रहरी पर भरोसा है, जो देश की तरक्की में तार्किक ध्यान दे रहा है।"

आप लोग भविष्य को ध्यान में रखते हुए अपने परिवार के सात पीढ़ियो के खर्च के लिए कमाई कुछ सालों में कर जाते हो और देश को उसी हालात में रहने को मजबूर करते हो| अगर साफ़ शब्दो में बोला जाये, तो यही कि तुम लोग अपनी सोच बढ़ा कर राष्ट्रहित में काम भी करो कब तक एक ही बंदा सोचेगा और एक्शन लेगा।

शेष फिर....... 
पत्र: ६
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh) 
गोरखपुर, भारत

Wednesday, January 18, 2017

पत्र: ५ (१८ जनवरी २०१७)

पत्र: ५ (१८ जनवरी २०१७)
पत्र उनके लिए जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी के समर्थक है! 


प्रिय भाजपा समर्थको, 
नमस्कार! 
आशा है आप सभी सकुशल होंगे, और आगामी विधान-सभा चुनावों के लिए तैयार होंगे। कहते है कि सारे देश की मनोदशा उत्तर प्रदेश से होकर जाती है। और सभी राष्ट्रीय दल अपने चुनावी दाव-पेंच लगाने में जुटे हुए है। 

अभी अभी ताजा खबर मिला कि माननीय श्री एन डी तिवारी अपने जैविक पुत्र रोहित शेखर के साथ भाजपा में शामिल हो गए। वही तिवारी जी जिनकी उम्र आज लगभग इक्यानवे साल हो चुकी है और जिन्होंने एक युवा को तब अपना पुत्र माना जब सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया वो भी डीएनए टेस्ट करवा कर। खैर मैं क्या कहूँ राजनीति से मेरा प्रत्यक्ष या परोक्ष कुछ भी लेना देना नही है परन्तु जब देश एक तेज गति से विकासशील से विकसित राष्ट्र की तरफ बढ़ रहा है, ऐसे समय युवाओं को ना मौका देकर ऐसे निर्लज्ज (माफ़ करियेगा इस शब्द के लिए) को राष्ट्रीय दल में शामिल करना शोचनीय है। वैसे भी जब प्रधानमंत्री श्री मोदी जी अपने भाषणों में कुशल वक्ता के तौर पर युवाओं को मौका और एक उच्चीकृत मानसिकता से राष्ट्रहित में काम करने की बात करते है। 

जब आपके दल में ही ऐसे वृद्ध और अवगुण से परिपूर्ण (अपने पुत्र को पुत्र ना मानना, परमहिलाओं से यौन सम्बन्ध, राजभवन में यौन संतुष्टि के लिए कई महिलाओं से अंतरंग सम्बंध) राष्ट्र नेता सम्मिलित होंगे तो फिर इस देश का क्या हाल होगा? महिला सशक्तिकरण, युवाओं का साथ, नवाचार, दूर की सोचने की बात करते है ऐसे समय में ९१ साल के वयोवृद्ध ठरकी (जो ८८ साल की उम्र में शादी करता है, वो भी सर्वोच्च न्यायालय से फजीहत होने के बाद) को दल में शामिल करके कौन सा राष्ट्रहित में काम कर रहे है? 

आख़िरकार तिवारी परिवार के साथ साथ बहुगुणा जोशी परिवार, खंडूरी परिवार, आर्य परिवार के सगे-सम्बंधियों को चुनाव में उम्मीदवार बनाकर परिवारवाद की कौन सी परिभाषा बन रही है? क्या एक दल की चोली या धोती उतारकर दुसरे की पहनने से एक नपुंसक, पुरुष या महिला में परिवर्तित हो जाता है? और उसकी सोच बदल जाती है? 

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मेरे जैसे कइयों के दिमाग में ये प्रश्न कौंध रहा होगा, आखिर कौन से मामले में भाजपा दल कांग्रेस, सपा, बसपा, द्रमुक आदि दलों से अलग है? कब तक वही पुराने गणित पर गिनती करेगा? कुछ तो नवाचार की सम्भावना बनाओ। 

तब तो सबको एक और मौका मिलना चाहिए, ललित मोदी, विजय माल्या, सुब्रतो सहारा, आसाराम, अमरमणि, अमनमणि इत्यादि को भी.................... 

एक कटाक्ष: डब्लूएचओ (वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन) को एचआईवी/एड्स से होने वाले बीमारी में तिवारी कथा को शामिल कर लेना चाहिए, कि अंजान पुरुष/महिला से असुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाने पर आपका एक औलाद भी हो सकता है जो डीएनए टेस्ट से आपके कमाई से हिस्सा ले लेगा। 

शेष फिर....... 
पत्र: ४ 
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh) 
नई दिल्ली, भारत 

Wednesday, January 4, 2017

पत्र: ४ (४ जनवरी २०१७)

पत्र: ४ (४ जनवरी २०१७)

पत्र उत्तर प्रदेश के मतदाताओ के साथ साथ, प्रधानमंत्री जी, चुनाव आयोग और चुनाव विश्लेषकों को, 

प्रिय भारतवासियों, 
प्रणाम!
आशा है आप सभी सकुशल है और देश के विकास में अपना योगदान, अपनी कोशिश कर ही रहे होंगे। 
आज ही चुनाव आयोग ने देश के कुछ प्रदेशो के विधान सभा चुनाव के लिए तिथि तय किया है, जब चुनाव के चरणों और तिथियों पर नजर पड़ी तो सोचने पर मजबूर कर दिया। उत्तर प्रदेश बहुसंख्य जनमानस का प्रदेश है। हर जगह के जैसे यहाँ भी चुनाव को एक त्यौहार जैसे माना जाता है। अखबारों में कुछ और नही पढ़ने को होता तो, टीवी पर चुनाव समाचार और उनसे जुड़ी जानकारी के अलावा कुछ और नही दिखता। सब इसी त्यौहार में मदमस्त हुए होते है। 
आम चुनाव २०१४, ७ अप्रैल २०१४ से १२ मई २०१४ तक नौ चरणों में पूरा किया गया, इन चरणों को पूरा करने में ३६ दिन लगे, जबकि उत्तर प्रदेश का विधान सभा चुनाव ७ चरणों में पूरा होगा जिसमे २८ दिन लगेंगे।
इसके पहले के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव २६ दिन (२०१२) और ३२ दिन (२००७) में पूरा किया गया था। 

इतने दिनों के लिए प्रदेश स्तर, जिला स्तर, गांव स्तर के सरकारी महकमा परियोजनाओं को छोड़, चुनाव में व्यस्त रहता है।  क्या हम सही में उन्नति कर रहे हैं? तकनीकी में आगे बढ़ने के साथ क्या हम उन तकनीक का प्रयोग और संवर्धन आम जनमानस से ऐसे मौके पर नही कर सकते? आखिर कब तक समय और पैसे का दुरूपयोग होते रहेगा?
मेरे अनुसार ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, विधान सभा, विधान परिषद् और लोक सभा चुनाव सब एक साथ होने चाहिए वो भी इलेक्ट्रॉनिक मतदान की सहूलियत के साथ, आज कैशलेस के साथ इसकी भी जरुरत है। 

शेष फिर........ 

पत्र: ४ 
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh)
नई दिल्ली, भारत

Monday, November 7, 2016

पत्र: १ (७ नवम्बर २०१६)

पत्र: १ (७ नवम्बर २०१६)

पत्र प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी, गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी, रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश सिंह यादव और मुख्य निर्वाचन आयुक्त डॉ. नसीम जैदी के नाम, 

महोदयों,
आशा है आप सभी सकुशल होंगे, मैं २७ साल का एक भारतीय नागरिक हूँ। जिसका बचपन एक गाँव में, पढ़ाई शहर में हुई है, रोजी रोटी के लिए नौकरी मेट्रो शहर में करते हुए अब अपने कृतियों और नवाचार को एक प्रारूप देने में लगा है। यह एक पत्र के साथ साथ आप बीती है जिसे मैं बयाँ कर रहा हूँ। अगर समय ना हो तो सीधे नीचे के दो पैराग्राफ पढ़ लीजिये, जिसमे मैंने सुझाव देने की कोशिश की है, कि आपका वक़्त बच सके और मेरी बात आप तक पहुँच सके। और अगर मन करें तो आगे के पैराग्राफ पढ़िएगा, और मेरे वास्तुस्थिति को समझिएगा।
मेरे पैदा होने से एक साल पहले ही देश में मताधिकार का प्रयोग करने की आयुसीमा घटाई गई थी, और जब मैं पैदा हुआ तो देश के राजनीतिक गलियारे में बहुत चहल पहल हो रही थी। देश के प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोपो का अम्बार था, बचपन से लेकर आज तक देश, प्रदेश, गाँव हर जगह राजनीति का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभाव पड़ा है। इवीऍम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के प्रयोग से देश के चुनाव नीति और तौर तरीके में बहुत बदलाव हुए, फिर भी वोट डालने की प्रतिशतता में बढ़ोत्तरी के लिए अभी बहुत परिवर्तन की जरुरत है। 
मैं दिल्ली में रहता हूँ और अपने गाँव पर ही मताधिकार का प्रयोग करता हूँ। मैंने आजतक के सारे चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग मैं घर जाकर करता रहा हूँ, पर अब थोड़ी मुश्किल है क्योंकि,:
२०१४ के आम चुनाव में घर जाने के लिए तत्काल टिकट लिया पर वेटिंग के कारण टिकट कैंसल हो गया। फिर भी जैसे तैसे गया, आने के लिए 'सुविधा ट्रेन' में टिकट बुक किया था। सुविधा ट्रेन अभी नई नई शुरू हुई थी, और डायनामिक प्राइसिंग का कांसेप्ट रेलवे में शुरुआत हुआ था। खैर टिकट ले लिया, जिसमे कैंसल करने का भी कोई ऑप्शन नही था। गोरखपुर से दिल्ली आने के लिए मेरा और मेरे मित्र दो लोगो का टिकट था। परन्तु मेरे मित्र किसी कारणवश यात्रा नही कर रहे थे। सुविधा ट्रेन में ज़्यादा पैसा खर्च करके टिकट लेने के बाद भी जब मैं गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर अपने कोच में चढ़ने लगा, तो कोच पूरी तरह से भरी हुई थी,मेरा सीट पर जाने को तो छोड़ो, ट्रेन में चढ़ना मुश्किल हो रहा था। साथ में सामान काम था, इसलिए जैसे तैसे धक्का मुक्की करके ट्रेन में चढ़ा और सीट तक पहुँचा। पुरे ट्रेन राजकीय पुलिस से खचाखच भरी हुई थी, मेरे अलॉटेड सीट पर पहले से ही पुलिस के बंदे बैठे हुए थे, जिनसे थोड़ा सा एडजस्ट करने को बोलने पर वो अपने वर्दी का धौस दिखाने लगे। उनको बोलने पर कि मेरे पास दो सीट के लिए टिकट है, एक सीट पर बैठे पुलिस वाले ने गाली गलौज देनी शुरू कर दी। बहुत ही दयनीय स्थिति थी, पुलिस के बन्दे हर जगह पड़े हुए थे, सारे सीट पर, कम्पार्टमेंट में चलने वाले जगह पर भी कुछ पुलिस के लोग लेटे हुए थे। रास्ते में बस्ती स्टेशन पर तो गेट ही नही खोलने दिए कि ट्रेन में कोई और यात्री ना चढ़ सके। कोच के हर कॉम्पार्टेन्ट में एक दो सवारी और १०-१२ पुलिस वाले या तो लेटे पड़े थे या फिर बैठे थे, लखनऊ पहुँचने तक मैं सामान अपने पीठ पर लादे सीट के पास खड़ा रहा। लखनऊ में पहुँचते ही ट्रेन से कुछ पुलिस वालों के उतरते थोड़ी जगह बनी तो एक पुलिस वाले ने बैठने को जगह दिया। 
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वैसे भी उत्तर प्रदेश के पुलिस वालों के साथ ८० प्रतिशत नकारात्मक प्रभाव दिखा है, जबकि राजधानी दिल्ली के पुलिस वालों का ९० प्रतिशत प्रभाव सकारात्मक रहा है। 
इस बार फरवरी में होने वाले प्रादेशिक चुनाव में भी वोट देने जाना चाहता हूँ कि सेवाएं और सुविधाओं में थोड़ी तरक्की हो, ना कि फिर से गाली सुनूँ, फिर से परेशान होऊं, देश बदले, सोच बदले.......

प्रधानमंत्री कार्यालय, रेलवे मंत्रालय, गृह मंत्रालय, निर्वाचन आयोग और उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री कार्यालय के कर्ता-धर्ता इन बिंदुओं पर ध्यान दीजियेगा:-
  • चुनाव की तिथि चार महीने पहले घोषित किया जाए कि अधिकाधिक नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें, जब तक कि किसी इलेक्ट्रॉनिक मत (वोट) का प्रारूप ना आ जाए, क्योंकि अग्रिम रेल टिकेट लेने की समय सीमा चार महीने (१२० दिन) हैं। 
  • अतिरिक्त ट्रेन चलाई जाए, मेट्रो शहरो से क्षेत्र के आस पास, चुनाव तिथि के नजदीक, कि मतदाता सुविधानुसार समय पर पहुँच सके और मताधिकार का प्रयोग कर सके।  
  • चुनाव में ड्यूटी पर लगे राजकीय पुलिस, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को बस की बजाय रेल सुविधा दिया जाए कि वो अपने घर या स्थानीय ड्यूटी पर जल्दी पहुँच सके। क्योंकि इनके भयावह स्वरुप को झेलना या यूँ कहें समझ पाना बहुत मुश्किल है। क्योंकि क्या है ना, इस देश में खाकी और खादी के सफ़ेद कपड़ो में बस दिखने को सादगी है। 
  • इलेक्ट्रॉनिक वोट का कांसेप्ट जल्दी से लागू किया जाए कि मत प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हो। 
शेष फिर....... 

पत्र: १ 
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh)
नई दिल्ली, भारत