Wednesday, July 1, 2015

पल भर का प्यार‬: ५

‪#‎पल_भर_का_प्यार‬: ५


अमोल ऑफिस मे अपने कार्यों मे व्यस्त था कि उसका मोबाइल घनघनाने लगा, स्क्रीन पर उसके दोस्त प्रणव का फोटो और नाम छपा था। अमोल ने हरे बटन को दबाया और स्पीकर कान के पास लगाया ही था कि, “ओए तुम्हें पता है, मैं कहाँ हूँ?”, प्रणव का उल्लास मे लबालब आवाज आया। 
“हाँ, पता है,” अमोल मुसकुराते हुये बोला। 
“कहाँ”, प्रणव जान गया कि अमोल समझ गया है फिर भी जानबूझ कर पूछा। 
“तुमने पाव भाजी और मैंगो शेक का ऑर्डर दिया है,” अमोल ने उत्तर दिया। 
“हाँ, तुमने तो पहचान लिया”, प्रणव बोला और हालचाल पूछने लगा, “और बताओ कहाँ हो? क्या हो रहा है?”


प्रणव से बातें करने के बाद अमोल कुर्सी पर बैठे बैठे कुछ सोचते हुये मुस्कुराने लगा ..................

उस समय अमोल इंजीन्यरिंग की पढ़ाई अपने शहर से कर रहा था। प्रणव उसका सबसे करीबी का दोस्त था। दोनों की दोस्ती बहुत पक्की थी। जब कॉलेज बंद होता तब भी दोनों दिन भर या तो शहर मे घूम रहे होते या फिर अमोल के कमरे मे बैठे पिक्चर देख रहे होते।

शुक्रवार का दिन था, शाम के वक़्त प्रणव का मोबाइल घनघना उठा, देखा तो अमोल का नंबर फ्लैश हो रहा था। प्रणव ने कॉल रिसीव किया और पूछा, “क्या हुआ?”
“गोलघर जाना है, कपड़े लेना है”, अमोल ने उत्तर दिया। 
“दिन भर कॉलेज मे साथ थे, तब नही बोल सकता था, अब घर आने के बाद बता रहा है”, प्रणव गुस्से से बोल रहा था। 
“अरे यार तू आ जा ना, मैं तेरा प्रतीक्षा कर रहा हूँ”, अमोल बोला। 
“चल ठीक है आधे घंटे मे पहुँच रहा हूँ”, प्रणव बोला।

४५ मिनट बाद दोनों साथ मे थे, गोलघर से कपड़े खरीदे और वापस लौटने के लिए प्रणव बाइक स्टार्ट किया तो अमोल चिल्लाया, “अबे अपने अड्डे पर चल, कुछ खाना है”। 
प्रणव ने बाइक मोड़ी और दोनों उस दुकान पर पहुँच गए, जहाँ वो अक्सर शाम गुजारा करते थे। दो मैंगो शेक और एक प्लेट पाव भाजी का ऑर्डर देकर अमोल और प्रणव दोनों एक मेज के साथ लगी कुर्सियों पर बैठ गए।
फिर दोनों बातें करने लगे कि अचानक अमोल बोला, “यार आज के बाद ना जब भी हम मे से कोई भी, कभी भी इस दुकान पर आएगा तो, दूसरे को फोन ज़रूर करेगा।“

और आज प्रणव उस दुकान पर था.................

बस ऐसी ही है अमोल और प्रणव कि प्यारी सी दोस्ती.......................

#पल_भर_का_प्यार (‪#‎Momentary_Love‬), stories with emotion, a new series in my writing skill. ये संग्रह साधारण लड़के/लड़कियों के ज़िंदगी के कुछ छोटे-मोटे पलों को बयां करती है, जिसे उन्होने कभी किसी से साझा नही किया, एक दूसरे से भी नही, शायद खुद से भी नही। इस संग्रह को पढ़कर आपके चेहरो पर एक छोटी सी मुस्कान आ ही जाएगी और आप भी बुदबुदाने लगेंगे, “यार अपने साथ भी कभी ऐसा हुआ था”।

नोट:- इस संग्रह के किसी भी कहानी को दूसरे कहानी से जोड़कर ना पढ़े, हर एक भाग एक नई कहानी है, किसी भी कहानी का इस संग्रह के दूसरे कहानियों से कोई ताल्लुकात नही है सिवाय प्यार, कुछ नाम और शीर्षक ‘पल भर का प्यार’ के.........