Friday, September 16, 2016

पल भर का प्यार‬: १०

#‎पल_भर_का_प्यार‬: १०

राज और अनुज काफी अच्छे मित्र थे, कॉलेज के चार सालों में दोनों ने अधिकतर वक़्त साथ बिताए थे। अनुज का घर बक्सीपुर में था तो राज सिंघड़िया में किराए के मकान में रहता था। अनुज कंप्यूटर साइंस (सीएस) विषय से इंजीनियरिंग की पढाई कर रहा था तो राज इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी (आईटी) में महारथ हासिल करने में लगा हुआ था। क्योंकि दोनों विभागों के विषयों में ज्यादा अंतर नहीं होता, इसलिए दोनों को पढाई में कोई दिक्कत भी नहीं होती। दोनों की छुट्टियाँ अक्सर साथ बीतती थी। कभी अनुज राज के कमरे पर आता तो कभी राज अनुज के घर पर पर डेरा डाले रहता। परन्तु परीक्षा के दिनों में अनुज हमेशा राज के कमरे पर पड़ा रहता था।  पौने चार साल की दोस्ती में दोनों इतने करीब हो गए थे, कि  दोनों को किसी और की फिक्र नहीं रहती, एग्जाम के दिनों में तो पढ़ लेते पर बाकि दिनों में घूमना, फिरना, गेम खेलना, मूवी देखना होता था। 

कॉलेज के अंतिम दिन चल रहे थे, एग्जाम ख़त्म हो चुके थे पर प्रैक्टिकल वाईवा नहीं हुआ था। वाईवा का डेट भी आ चूका था। मई महीने के गर्म भरे मौसम की खड़ी दुपहरी में, राज के कमरे में अनुज और राज दोनों लैपटॉप पर २४ (टवेंटी फोर) सीरियल देख रहे थे। कमरे में कूलर की हवा हनहनाते हुए चल रही थी, कुछ ही समय पहले दोनों ने नाश्ता किया था। तभी राज का मोबाइल घनघनाने लगा। चूँकि स्पीकर पर वॉल्यूम लेवल अपने चरम पर था, इसलिए मोबाइल का आवाज दोनों में से कोई नहीं सुन सका। सीरियल ख़त्म होने के बाद राज की नजर अपने मोबाइल पर पड़ी, देखा तो अंकिता के नंबर से मिस्ड कॉल था। 


कॉलेज के दिन ख़त्म होने के कारण, नौकरी के लिए सब हाथ पैर मार रहे थे। कॉलेज ने तो प्लेसमेंट नहीं कराया इसलिए नौकरी पाने के लिए दोनों, वो सब कुछ ट्राई करते, जिससे उनको नौकरी मिल जाये। नौकरी के लिए दूसरे शहरों में होने वाले वाकिंग में राज और अनुज दोनों साथ जाते, सरकारी नौकरियों के लिए भी दोनों साथ में आवेदन करते। अधिकतर प्रतियोगी परीक्षाओं और वाकिंग में अंकिता भी राज के साथ ही जाती।
"भाई तुमको मेरे फ़ोन का रिंगटोन नहीं सुनाई दिया था क्या?", राज अनुज से पूछा, "नहीं तो", अनुज ने अपना सिर ना में हिलाते हुए उत्तर दिया।
"यार अंकिता की कॉल आई थी", अनुज बोला और अपने मोबाइल से अंकिता को कॉल करने लगा। 
अंकिता राज की क्लासमेट थी, और दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों अक्सर एक दूसरे का हाल चाल जानने के लिए फ़ोन करते, लम्बी बातें करते रहते थे। 
अंकिता से बात करते हुए पता चला कि आने वाले रविवार को एक सरकारी संस्था में नौकरी के लिए लिखित परीक्षा है, जिसका एडमिट कार्ड मेल पर आ चूका है, अंकिता से बात करते हुए राज ने अनुज को बोला, "भाई, अपना एडमिट कार्ड चेक करना सेंटर कहाँ है?" 
इधर अनुज लैपटॉप में एडमिट कार्ड चेक करने लगा और राज अंकिता से बातें करते हुए कमरे में ही टहलने लगा। कुछ मिनटों के बाद अनुज बोला, "यार, अपना परीक्षा केंद्र तो लखनऊ में हैं।"
 जैसे ही राज ने अंकिता को ये बात बताई, अंकिता ने राज को अपने साथ में ही रेलवे टिकट बुक करने को बोल दिया। अनुज को शनिवार का टिकट बुक करने को बोलकर राज अंकिता से बातें करते रहा। 
कुछ मिनटो के बाद जब राज और अंकिता की बात-चीत ख़त्म हुई, अनुज ने बताया कि शनिवार शाम का टिकट हो गया है। 
"ठीक है", राज ने बोला और दोनों फिर से टवेंटी फोर सीरियल देखने में व्यस्त हो गए। 
वाईवा भी ख़त्म हो चुके थे। शनिवार का दिन आ गया, पुर्नियोजित समयानुसार शाम को तीनो दोस्त गोरखपुर प्लेटफार्म नंबर १ पर मिले। राज अकेले आया था, जबकि अनुज के साथ उसके पिताजी और अंकिता के साथ उसके चाचाजी थे। राज, अनुज और अंकिता तीनो के सीट एक ही कूपे (कम्पार्टमेंट) में थी। ट्रेन का समय हो गया, तीनो ने सबसे आशीर्वाद लिया और ट्रेन में जा बैठे। ट्रेन चलने लगी, सबने हाथ हिलाकर टाटा बॉय किया।  

अनुज अपने शर्मीले स्वाभाव के कारण किसी से बातचीत शुरुआत करने से कतराता था। परन्तु उसे सामरिक, राजनीतिक, विज्ञान, अविष्कार, प्रौद्योगिकी, रक्षा मामलों में वाद-विवाद करना अच्छा लगता था। उसे इन विषयों पर वाद-विवाद करके कोई हरा दे, ऐसा मुमकिन ना था। इससे पहले कभी भी अंकिता और अनुज का मुलाकात कॉलेज में कई  बार हुआ था परन्तु आमने-सामने ऐसे कभी नहीं बैठे थे। राज अपने वाकपटुता से किसी भी विषय पर चर्चा करने लग जाता। राज और अंकिता बाते करने में मशगूल हो गए और अनुज अपने साथ चेतन भगत की किताब "रेवोलुशन २०-२०" में व्यस्त हो गया। अनुज और अंकिता दोनों की आपस में बातचीत ना के बराबर ही थी, राज को रहना उचित नहीं लग रहा था और उसने बात करते करते "भारतीय सरकार द्वारा चीन निर्मित सेलुलर प्रौद्योगिकी यंत्रों का भारत में प्रतिबंध" टॉपिक पर चर्चा करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते कूपे में बाकि के तीन सीटों पर बैठे विद्वजन गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, बहुराष्ट्रीय कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर और एक सरकारी कंपनी में एचआर थी जो इस चर्चा में शामिल हो गए। राज, अंकिता और विद्वजन के चर्चा में अनुज चुप रह जाए ये मुश्किल था, अनुज भी अपनी बाते स्पष्ट तथ्यों के साथ वाद विवाद करने लगा। 
जहाँ अंकिता और बाकि विद्वजन भारतीय सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को अनुचित ठहरा रहे थे वहीं राज और अनुज भारतीय सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को उचित बताने के लिए तरह तरह के आधारों, विवरणों, घटनाओं, समाचारों का जिक्र करने लगे। चर्चा काफी लम्बी खींचने लगी तो प्रोफ़ेसर जी ने अनुज, राज और अंकिता तीनो के तर्कों, विश्लेषणों, आधारों का प्रशंसा करते हुए बोले, "रात काफी हो चुकी है, और आपने बहुत अच्छा परिचर्चा किया, मुझे काफी अच्छा लगा कि आप लोग, ऐसे विषयों पर भी चर्चा कर रहे हो" और अनुज के मुखातिब होकर बोले, "अगर आपके पास वक़्त हो तो मेरे ऑफिस में आकर मिलिए"। 
राज और अंकिता प्रोफ़ेसर जी के तरफ देखने लगे तो वो फिर से बोले,"आप लोग भी आ सकते है", तीनो दोस्तों के समझ में कुछ नहीं आ रहा था और एक प्रश्न के भाव लेकर प्रोफ़ेसर जी को एकटकी लगाए देख रहे थे, कुछ देर बाद प्रोफेसर जी बोले, "दरअसल मुझे एक तकनीकी सहायक की जरुरत है, यदि रूचि हो तो शायद आप में से कोई मेरी सहायता कर सके"।
"सर कितने सहायकों की जरुरत है? दो तीन नहीं है क्या?" अंकिता ख़ुशी प्रकट करते हुए पूछी और फिर बताती गई, "सर तीन नहीं तो कम से कम हम में से दो को सहायक रख कर देखिये, आपको निराश नहीं करेंगे। अनुज को तो देख ही लिए आप उसके जैसा होनहार, तर्क-संगत, विद्वान् आपको नहीं मिलेगा, हम आपसे ज़रूर मिलेंगे, हम सोमवार सुबह गोरखपुर लौट जाएंगे, आपसे हम कब मिले?" 

"मैं कल ही लौट जाऊँगा, सोमवार को ही मिल लो...... पर तैयारी करके आना", प्रोफेसर जी ने बोला। 
"ठीक है सर, हम तीनो आपसे सोमवार को १० बजे सुबह मिलेंगे, आपके ऑफिस में " अंकिता कौतुहल में ही बोल दिया, बिना अनुज और राज से पूछे। 
अंकिता आँखे बड़ी करके मुस्कुराते हुए राज और अनुज की तरफ देख रही थी, जैसे बैठे बिठाये उनको नौकरी मिल गई। अनुज और राज दोनों और संजीदा हो गये। रात के दस बज चुके थे, तीनों ने मिलकर भोजन किया और अपने अपने सीट पर जाकर सो गए।  


भोर के ३ बजे तीनो लखनऊ पहुंच गए, स्टेशन से ऑटो लिया, लखनऊ एयरपोर्ट के पास तीनों को जाना था। ऑटो के एक तरफ राज बैठ गया और अंकिता को बीच में बैठने के लिए इशारा किया। अंकिता बीच में बैठ गई इसके बाद अनुज ऑटो में बैठा। एक तरफ राज था तो दूसरे तरफ अनुज था और बीच में बैठी अंकिता थी। ऑटो में ग़ज़ल गायकी के बादशाह जगजीत सिंह का गाया "ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो......" गीत बज रहा था, तीनो एक दूसरे को देखने लगे। 
अचानक राज ने कहा, "यार बचपन ही सही था, जो हम मौज में रहते थे, किसी चीज़ का फिक्र नही था", राज की बात सुनकर अंकिता और अनुज ने हाँ में सिर हिलाया, और ऑटो स्टेशन के पार्किंग से निकल  मुख्य मार्ग पर आ गई। राज की बातें सुनकर ऑटो वाला बोला, "भैया जिंदगी है ये, बढ़ती ही जाएगी, कोई रोक नही पायेगा", ऑटो वाले की बात सुनकर तीनो मुस्कुराने लगे। रेलवे स्टेशन से एयरपोर्ट जाने में लगभग आधे घंटे लगते है, ये सोचकर राज ऑटो में ही सो गया। अनुज और अंकिता चुपचाप बैठे गाने सुन रहे थे। 
अगला ग़ज़ल जगजीत सिंह जी के आवाज में था "झुकी झुकी सी नजर बेक़रार है कि नही, दबा दबा ही सही दिल में प्यार है कि नही. ... . . . . . . . . . ."
ऑटो वाला ऑटो को गति के साथ भगा रहा था, सड़क एकदम सुनसान थी, कभी कभार कुत्तों का भौंकना सुनाई देता था, वो भी पल भर में दूर चला जाता था। राज एक किनारे सोया हुआ था,ऑटो के अंदर घुप अँधेरे में अनुज और अंकिता ऑटो में चुपचाप गाने सुनने में व्यस्त थे। 
अनुज और अंकिता एकाध पल के लिए एक दूसरे को देख लेते थे, और आँखे मिलते ही मुस्कुरा देते थे। "तुम जो इतना मुस्कुरा रहें हो, क्या ग़म है जो छिपा रहे हो.... . . .. . . ." ग़ज़ल बज रहा था जब अचानक एक मोड़ पर ऑटो दाएं तरफ मुड़ा और राज अंकिता के ऊपर आ गिरा। राज के अंकिता के तरफ अचानक आने से, अंकिता अनुज के और करीब सरक गई। ये सब इतना अचानक हुआ कि किसी को कुछ पता ना चला। राज की नींद टूट चुकी थी और ऑटो वाले को डाँटते हुए बोला, "अरे भैया थोड़ा देखकर चलाइये"।
"ठीक है भैया", ऑटो वाले ने बोला और ऑटो को सड़क पर सरपट दौड़ाये रखा। 
सामने की तरफ से आने वाले इक्का दुक्का गाड़ियों के आवाजाही से कभी कभार ऑटो में रोशनी आ रही थी। इन्ही रौशनी में अनुज और अंकिता एक दूसरे को तिरछी नज़रो से देख रहे थे। कुछ समय बाद ऑटो में जगजीत सिंह जी की पत्नी चित्रा सिंह जी का गाया गीत "तू नही तो जिंदगी में और क्या रह जाएगा.........." बजने लगा। इन गीतों के तरत्नमय ने ऑटो में अनुज और अंकिता के दरम्यान एक शमां जला दी थी, जिससे राज और ऑटो चालक दोनों अनभिज्ञ थे। 
अनुज और अंकिता दोनों किसी द्विस्वपन में खो गए ऐसा प्रतीत हो रहा था, "भैया आगे से बाएं ले लो" राज ने ऑटो चालक को कहा तो अनुज और अंकिता की तन्द्रा टूटी। इतने में अंकिता के बुआ का घर आ गया और अंकिता को उसके बुआ के घर छोड़कर राज और अनुज अपने एक मित्र के घर चले गए। सुबह होने में अभी कुछ घंटे बाकि थे और परीक्षा नौ बजे से था।
राज बिस्तर पर पड़ते ही सो गया, पर अनुज की आँखों से नींद गायब हो थी। इधर अनुज का ये हाल था तो उधर अंकिता भी अपने बुआ के बिस्तर पर पड़े पड़े किसी सपने में खो चुकी थी। 

अंकिता और अनुज के परीक्षा केंद्र एक ही थे और राज का करीब के ही दूसरे विद्यालय में था।  
   

ये कहानी थोड़ी लंबी है इसलिए इसे कई भाग में लिखना पड़ेगा। 
पल भर का प्यार‬: १० का दूसरा पार्ट जल्दी ही लिखूँगा........ 

तब तक बाकि के पोस्ट पढ़ सकते है!



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