Saturday, April 30, 2016

माहवारी और महिला

कुछ दिनों से हमारे देश में सामाजिक बुराइयों या लम्बे समय से चली आ रही प्रथा के खिलाफ मोर्चा (प्रदर्शन) करके चर्चा का विषय बना दिया गया। इसमें से ही एक था 'माहवारी के समय महिलाओं का मंदिरों में प्रवेश'। 

वैसे तो समाज में केवल इस शब्द को ही बोलने से एक मनुष्य अपराध बोध हो जाता है, तो इस विषय पर चर्चा करना तो अनुपयोगी ही लगता है। फिर भी कुछ विद्वजनो ने इस मसले पर खूब प्रदर्शन किये, चर्चा किये, बहुत कुछ लिखे गए और बहुत कुछ बोले गए। कहीं पर लोगो द्वारा महीनो के उन दिनों में मंदिरों में प्रवेश अनुमति ना देना महिलाओं के अधिकारों का हनन बताया गया तो कहीं पर इसे पितृसत्तात्मक परिवार का देन माना गया।

जो भी हो, इन तर्क पर एक पुरुष होने के कारण मेरे कुछ शब्दों का समूह है....... 

परिवेश आधुनिक हो गया है, पर पुरातन काल में माहवारी के दिनों में रसोई घर में ना जाना, खाना ना बनाना, पूजा घर में प्रवेश ना करना, संभोग ना करने देना इत्यादि रोक कुछ कारणों से ही लगाया गया होगा। इसका मुख्यतः कारण माहवारी के समय होने वाला पेट दर्द, बुखार, सर दर्द, चक्कर आना, रक्तस्राव इत्यादि हो सकता है, जो कष्टकारी के साथ साथ शरीर में ऊर्जा की कमीं भी कर देता है। ऊर्जाविहीन शरीर को लेकर कहीं भी आना जाना ऐसा ही है जैसे आ बैल मुझे मार। आज भी महिलाएं माहवारी के पहले और दूसरे दिनों कुछ ना करने देना मेरे नजर में वैसा ही है जैसे एक कर्मचारी को रविवार को छुट्टी देना, शारीरिक थकान और मानसिक तनाव के समय इंसान को आराम करना ही बेहतर होता है। 

कुछ दिनों पहले एक सर्वे पर नजर गई जिसमे बताया गया था कि आज भी लगभग सत्तर प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी नैपकिन या पैड का इश्तेमाल नहीं करती है। ग्रामीण और शहरी दोनों परिवेशों में अभी भी अज्ञानता या झिझक या फिर दोनों की वजह से इस विषय पर चर्चा करना नगण्य है। 

इन मामलों में महिलाओं को आगे आना होगा और माहवारी पर समाज में फैले अज्ञानता और झिझक को मिटाना होगा। 
भारत सरकार ने समाज में महिलाओं की साझेदारी बढ़ाने के उद्देश्य से राशन कार्ड में पुरुष मुखिया की जगह महिला मुखिया करने का निर्णय ले लिया है। जो मेरे समझ से एक उम्दा कदम है, जिससे सामाजिक परिदृश्य में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा। 

भारत सरकार के द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से ग्रामीण इलाको में राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत आशा (Accredited Social Health Activist (ASHA)) से छ: रूपये में छ: सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराया जा रहा है। (क्लिक करें अधिक जानकारी के लिए)
दो तीन दिन पहले मैंने इन्डियन एक्सप्रेस न्यूज़पेपर में पढ़ी कि गुजरात सरकार 'तरुणी सुविधा कार्यक्रम' के अंतर्गत एक रुपये में छ: सैनिटरी पैड उपलब्ध करवाएगी। (क्लिक करें अधिक जानकारी के लिए)

ऊपर लिखे तथ्यों को इससे जोड़कर ना देखें कि मैं मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर लगे रोक का समर्थन करता हूँ। मेरा मानना है कि हमे अभी और भी मूलभूत सरंचनाए बनानी पड़ेंगी जिससे महिलाओं में माहवारी के दिनों में होने वाले दर्द से निजात मिले। इस टैबू (TABBO) और झिझक से मुक्ति मिले। 

गर्लियापा का ये गाना आपके झिझक को दूर करने में कुछ मदद करेगा, जरूर देखें:- 


#राजेश्वर_सिंह (#RajeshwarSingh)

Tuesday, April 26, 2016

बनारस 'एक अंतर्मन की आवाज'

बनारस, काशी, बाबा विश्वनाथ की नगरी, बाबा भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिका हुआ शहर, गलियों का शहर, घाटों का शहर वाराणसी......

स्कन्दपुराण में काशी के बारे में वर्णन है-
"भूमिष्ठापिन यात्र भूस्त्रिदिवतोऽप्युच्चैरध:स्थापिया
या बद्धाभुविमुक्तिदास्युरमृतंयस्यांमृताजन्तव:।
या नित्यंत्रिजगत्पवित्रतटिनीतीरेसुरै:सेव्यते
सा काशी त्रिपुरारिराजनगरीपायादपायाज्जगत्॥"

जो भूतल पर होने पर भी पृथ्वी से संबद्ध नहीं है, जो जगत की सीमाओं से बंधी होने पर भी सभी का बन्धन काटनेवाली (मोक्षदायिनी) है, जो महात्रिलोकपावनी गङ्गा के तट पर सुशोभित तथा देवताओं से सुसेवित है, त्रिपुरारि भगवान विश्वनाथ की राजधानी वह काशी संपूर्ण जगत् की रक्षा करे।

इस शहर में जब भी जाता हूँ, खुद को भूल जाता हूँ, नशा सा है इस शहर के माहौल में, हर पल जाना पहचाना सा लगता है ये शहर, कुछ तो है इस शहर में जो यहाँ मरने वाले को सीधे स्वर्ग में जगह मिलती है... ये शहर आत्मीय सा लगता है... बाबा भैरव नाथ की काशी नगरी में चार बार आना हुआ है, जिसमे से तीन बार आगमन हुआ मित्रों के वैवाहिक शुभ अवसरों पर..... 
२०१२ में पहली बार इस शहर में एक वैवाहिक समारोह में आया था.... ट्रेन से उतरते ही इस शहर के वातावरण से एक खास लगाव सा बन गया.... इस नगर के सकरी गलियों से, घाटों से, रास्तो से, घाटों के पंडो से, मंदिर में बजने वाले घंटियों से, बाबा विश्वनाथ के मंदिर से, इस शहर ने बिताये हुए पलों में आत्मा का ओत-प्रोत होना, पहली बार में ही इस शहर ने अपने बारे में बहुत कुछ बता दिया था.... इससे पहले इस आस्था के शहर के बारे में जो भी जानता था वो कहीं पर पढ़ा था या फिर किसी से सुना था..... उमस से भरे गर्मी के ज्येष्ठ माह में इस शहर के वातावरण, माहौल से एक सम्मोहन सा हो गया.... दोपहर के वक्त काशी विश्वनाथ मंदिर में शिवलिंग का दर्शन और प्रसाद आत्मीय लगाव को और बढ़ा दिया.... रात में शादी समारोह अपने में कुछ यादों को सजीव बना रखा है.....

जाड़े के दिन लगभग बीत गये थे, फिर भी वातावरण में थोड़ी ठंडी थी....बसंत ऋतू चल रही थी जब २०१५ में दूसरी बार इस शहर में आना हुआ. सड़को पर लगे जाम में पहली बार मन शांत था, मन में कुछ भी उथल पुथल नही था, मन इस शहर में और रमना चाहता था, झूमना चाहता था, समय की कमी के चलते बाबा भोलेनाथ का दर्शन नहीं कर सका पर अस्सी घाट पर जाना हुआ.... शाम के वक्त मित्रो के साथ अस्सी घाट पर, गंगा नदी के किनारे बहती बयार में चाय की चुस्की असीम आनंद की अनुभूति करा रही थी..... इस शहर में बिताये हर क्षण दिलो-दिमाग में वैसे ही ताजा है जैसे उसे मैंने अभी जी है......

तीसरा आगमन ठीक एक साल बाद फिर से बसंत ऋतू में हुआ, चंद घंटो के इस बार आगमन में काम के अधिकता के कारण किसी पर्यटन स्थल पर जाना ना हो सका... फिर भी इस शहर के बेहतर हुए माहौल, बेहतर हुए सड़को ने इस शहर से और जोड़ दिया.....

कुछ दिनों पहले फिर बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी में जाना हुआ, एक परम मित्र के वैवाहिक समारोह में सम्मिलित होना था.... ट्रेन से उतरते ही सुबह सुबह इस शहर के हवाओं ने फिर से मनोमष्तिस्क पर अपना राज कर लिया.... इस बार असली बनारस को और करीब से देखा, पहचाना, घूमा, डूबा........ खो गया इस शहर में दो दिनों के लिए.... विश्व की सबसे पवित्र नदी गंगा में दोनों दिन घंटो घंटो का स्नान और उसके लिए तपती गर्मी में पैदल जाना, एक अलग ही रोमांचित अनुभव था, ऐसा अनुभव जो पहले कभी नही मिला था .... काल भैरव जी का दर्शन, बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर में कुछ पलो के लिए मग्न हो जाना, नौका विहार करके दशाश्वमेध घाट पर स्नान आत्मीय पल थे... हिन्दू विश्वविद्यालय का हरा भरा वातावरण सम्मोहित कर गया.... बनारस नगरी के लोग बहुत ही आत्मीय, हँसमुख, मिलनसार हैं कि किसी को भी सम्मोहित कर लें.....

हे बाबा विश्वनाथ की नगरी 'बनारस' हम फिर आयेंगे, मिलने के लिए, कुछ पल तेरे आँचल में खो जाने के लिए, गंगा किनारे घाटों पर तेरे आगोश में समाने के लिए.......