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Tuesday, April 26, 2016

बनारस 'एक अंतर्मन की आवाज'

बनारस, काशी, बाबा विश्वनाथ की नगरी, बाबा भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिका हुआ शहर, गलियों का शहर, घाटों का शहर वाराणसी......

स्कन्दपुराण में काशी के बारे में वर्णन है-
"भूमिष्ठापिन यात्र भूस्त्रिदिवतोऽप्युच्चैरध:स्थापिया
या बद्धाभुविमुक्तिदास्युरमृतंयस्यांमृताजन्तव:।
या नित्यंत्रिजगत्पवित्रतटिनीतीरेसुरै:सेव्यते
सा काशी त्रिपुरारिराजनगरीपायादपायाज्जगत्॥"

जो भूतल पर होने पर भी पृथ्वी से संबद्ध नहीं है, जो जगत की सीमाओं से बंधी होने पर भी सभी का बन्धन काटनेवाली (मोक्षदायिनी) है, जो महात्रिलोकपावनी गङ्गा के तट पर सुशोभित तथा देवताओं से सुसेवित है, त्रिपुरारि भगवान विश्वनाथ की राजधानी वह काशी संपूर्ण जगत् की रक्षा करे।

इस शहर में जब भी जाता हूँ, खुद को भूल जाता हूँ, नशा सा है इस शहर के माहौल में, हर पल जाना पहचाना सा लगता है ये शहर, कुछ तो है इस शहर में जो यहाँ मरने वाले को सीधे स्वर्ग में जगह मिलती है... ये शहर आत्मीय सा लगता है... बाबा भैरव नाथ की काशी नगरी में चार बार आना हुआ है, जिसमे से तीन बार आगमन हुआ मित्रों के वैवाहिक शुभ अवसरों पर..... 
२०१२ में पहली बार इस शहर में एक वैवाहिक समारोह में आया था.... ट्रेन से उतरते ही इस शहर के वातावरण से एक खास लगाव सा बन गया.... इस नगर के सकरी गलियों से, घाटों से, रास्तो से, घाटों के पंडो से, मंदिर में बजने वाले घंटियों से, बाबा विश्वनाथ के मंदिर से, इस शहर ने बिताये हुए पलों में आत्मा का ओत-प्रोत होना, पहली बार में ही इस शहर ने अपने बारे में बहुत कुछ बता दिया था.... इससे पहले इस आस्था के शहर के बारे में जो भी जानता था वो कहीं पर पढ़ा था या फिर किसी से सुना था..... उमस से भरे गर्मी के ज्येष्ठ माह में इस शहर के वातावरण, माहौल से एक सम्मोहन सा हो गया.... दोपहर के वक्त काशी विश्वनाथ मंदिर में शिवलिंग का दर्शन और प्रसाद आत्मीय लगाव को और बढ़ा दिया.... रात में शादी समारोह अपने में कुछ यादों को सजीव बना रखा है.....

जाड़े के दिन लगभग बीत गये थे, फिर भी वातावरण में थोड़ी ठंडी थी....बसंत ऋतू चल रही थी जब २०१५ में दूसरी बार इस शहर में आना हुआ. सड़को पर लगे जाम में पहली बार मन शांत था, मन में कुछ भी उथल पुथल नही था, मन इस शहर में और रमना चाहता था, झूमना चाहता था, समय की कमी के चलते बाबा भोलेनाथ का दर्शन नहीं कर सका पर अस्सी घाट पर जाना हुआ.... शाम के वक्त मित्रो के साथ अस्सी घाट पर, गंगा नदी के किनारे बहती बयार में चाय की चुस्की असीम आनंद की अनुभूति करा रही थी..... इस शहर में बिताये हर क्षण दिलो-दिमाग में वैसे ही ताजा है जैसे उसे मैंने अभी जी है......

तीसरा आगमन ठीक एक साल बाद फिर से बसंत ऋतू में हुआ, चंद घंटो के इस बार आगमन में काम के अधिकता के कारण किसी पर्यटन स्थल पर जाना ना हो सका... फिर भी इस शहर के बेहतर हुए माहौल, बेहतर हुए सड़को ने इस शहर से और जोड़ दिया.....

कुछ दिनों पहले फिर बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी में जाना हुआ, एक परम मित्र के वैवाहिक समारोह में सम्मिलित होना था.... ट्रेन से उतरते ही सुबह सुबह इस शहर के हवाओं ने फिर से मनोमष्तिस्क पर अपना राज कर लिया.... इस बार असली बनारस को और करीब से देखा, पहचाना, घूमा, डूबा........ खो गया इस शहर में दो दिनों के लिए.... विश्व की सबसे पवित्र नदी गंगा में दोनों दिन घंटो घंटो का स्नान और उसके लिए तपती गर्मी में पैदल जाना, एक अलग ही रोमांचित अनुभव था, ऐसा अनुभव जो पहले कभी नही मिला था .... काल भैरव जी का दर्शन, बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर में कुछ पलो के लिए मग्न हो जाना, नौका विहार करके दशाश्वमेध घाट पर स्नान आत्मीय पल थे... हिन्दू विश्वविद्यालय का हरा भरा वातावरण सम्मोहित कर गया.... बनारस नगरी के लोग बहुत ही आत्मीय, हँसमुख, मिलनसार हैं कि किसी को भी सम्मोहित कर लें.....

हे बाबा विश्वनाथ की नगरी 'बनारस' हम फिर आयेंगे, मिलने के लिए, कुछ पल तेरे आँचल में खो जाने के लिए, गंगा किनारे घाटों पर तेरे आगोश में समाने के लिए.......