Sunday, January 23, 2011

Tuesday, January 4, 2011

मेरी बेचैनी

Hi I am Rajeshwar Singh from Gurgaon, INDIA.........

Date: 4th Jan'11
Time: 11:22 PM

क्यू मै बेचैन हो जाता हूँ भरी महफ़िल में
क्यू गुनगुनाता हूँ राह चलते हुए
क्यू आती है याद तुम्हारी हरपल
इंतज़ार रहता है सिर्फ तुम्हारे फ़ोन के
ये है मेरे दिल की घबडाहट
या फिर तुमसे दिल्लगी है
अब समझा इस दिल के आँखों का आलम
क्यूकि इसमे बैठी तुम्हारे जैसी हसीना है

मेरी बेचैनी
By:
राजेश्वर सिंह 'राज़्श'

Sunday, January 2, 2011

अपनी गुज़ारिश

Hi I am Rajeshwar Singh from Gurgaon INDIA.........

Date: 1st Jan'2011
Time: 9:56 PM

Created in BIHAR SAMPARK KRANTI train ahead Lucknow railway station.

ट्रेन की सीट पर सोया
'रसीदी टिकट' पढ़ रहा हूँ
ये तो रचना है अमृता प्रीतम जी का
जो मेरे अल्फाजो को भुना रहा है
कुछ पंक्तिया आई सामने तो
दिल ने कहा तुम पर शब्द गूंथने को
शांत हो गया था ट्रेन का माहौल
पर कौन रोक सकता है पटरियों के आवाज़ को
आगाज़ है नए उम्र का नए साल का
ये शुभारम्भ है मेरे हाथ में इस कलम का
तुम याद आते रहे हर पल आज
कभी पवन के झोंको में तो कभी मेरे मुस्कराहट में
कैसे ज़ाहिर करू अपने बेताबी को
प्यारे अल्फाजो को अपने इश्क को
कैसे समर्पित करू इस माला को
शब्द-माला में गुंथे हुए शब्दों को
गूंथने का कुछ य़ू आलम हुआ
ये फुल पड़ते गाए और माला बन गई
ये माला जो है मैंने गुंथा शब्दों का
मेरे जूनून का तुम्हारे मुहब्बत का
मेरे ख़ुशी का तुम्हारे छुअन का
मेरे अल्फाजो का तुम्हारे ख़ामोशी का
२०१० की अंतिम सर्द रात का
तुम्हारे बिना बात के रूठने का
२०११ की सुबह किसी को ना फ़ोन करने का
ये शब्द है सुबह-सुबह तुम्हारे सन्देश आने का
ये शब्द है सुबह तुमसे बात करने का
मेरे जिद करने पर तुमसे मिलन का
ऐसे-वैसे गुफ्तगू करने का 
है ये तुम्हारे बेइंतहा चाहत का
मेरे बातो पर तुम्हारे खीझने का
तुम्हारे बोलो पर मेरे रिझने का
इक छोर पकडे रहना इस माला के धागा का
क्योकि मुझे जूनून है तुम पर शब्द पिरोने का
याद आ रहे है अब भी तुम्हारे होठो के मुस्कान
आँखों के अपनेपन का हाथो के नरमी का
हाथो की नरमी का हाथो की छुअन का
मेरे दिल की धड़कन का तुम्हारे एहसासों का
याद कर रहा हूँ मै विदा होते हुए तुम्हारे झलक का
मेरे आँखों की ख़ुशी का तुम्हारे गुजारिश का
फिक्र है हमे अपने साजिशो का खुद को फसने का
साथ ही साथ इस जाल में तुम्हे फ़साने का
उस मोड़ के इंतज़ार का अपने इकरार का
ऊपर वाले की साजिश है अपने मिलन का
हमारे तकरार का मेरे पुकार का
तुम्हारे गुज़ारिश का मेरे दीदार का
इक लफ्ज़ में कहूँ तो, पिरो रहा हूँ..............
.....अपने आँखों के अनकहे प्यार को

अपनी गुज़ारिश-
By:
राजेश्वर सिंह 'राज़्श'