Monday, June 27, 2011

एक श्रधा सुमन मेरे तरफ से

पूज्यनीय बड़े पिता जी "श्री गब्बू सिंह जी" की यादों में समर्पित, एक श्रधा सुमन मेरे तरफ से: 

२७ जून २००८, मेरे जिंदगी के सबसे बुरे दिनों में से एक| 
उस दिन का घटना मुझे जिंदगी के बारे में कई पाठ सिखाये, पढाये| मै २६ जून की दोपहर से ही कुछ परेशान सा था, क्यूँ परेशान था ये मुझे भी नही मालूम था| उस समय मै DOEACC से वापस आ रहा था, समय यही कुछ शाम के चार बज रहे थे| मै शगुन और साहुल मेरे कमरे पर लौट रहे थे| हम लोग हर समय की तरह उस समय भी मस्ती कर रहे थे| अचानक पांच बजे के बाद मुझे कुछ ऐसा लगने लगा की मेरे साथ कुछ बुरा होने वाला है, पर क्या होगा मुझे इसका अंदाज़ा भी नही हो रहा था और ना ही अंदाज़ा हुआ, अगर अंदाज़ा हुआ होता तो मै आज उस पल के लिए पछताता नही| 


शाम सात बजे मैंने शाहुल से बोला, "यार मुझे कुछ अच्छा नही लग रहा है!"
"क्यूँ क्या हुआ, तबियत ख़राब है क्या?" साहुल ने पुछा|
"नही यार, तबियत तो सही है पर कुछ अच्छा नही लग रहा है", मैंने उत्तर दिया|
अबे मुझे खाने का मन नही कर रहा है, आज", मैंने बोला| 
"अबे चल कोई बात नही, आज कुछ और बनाते है", साहुल बोला|
"घर पर बात कर लो, शायद तुम्हारा मन कुछ हल्का हो जाये", साहुल मुझसे बोला और अपना मोबाइल मेरे हाथ में पकड़ा दिया|
मैंने घर पर फोन किया और बस बहन से बात किया, सब हालचाल लिया और फोन साहुल को वापस कर दिया| पर उस समय क्या पता था कि मै कुछ भूल रहा हूँ| उससे पहले जब भी मैंने घर पर फोन किया अपने बड़े पापा ( बड़े ताऊ) से ज़रूर बात किया करता था, पर उस दिन बात नही किया, जिसका मलाल मुझे हर पल रहेगा|
डिनर करने के बाद हम लोग छत पर सोने गये, क्यूंकि उस समय गोरखपुर में रात को नौ बजे से बारह बजे तक रोज बिजली कटती थी| बिस्तर लगाने के बाद मै, साहुल, राजीव (बगल के कमरे में रहता था) छत पर ही बातें करने लगे|
तभी आसमान में इक तारा टूटा, साहुल चिल्लाया..."अबे मांग लो, टूटते तारें से जो भी मांगोगे, तुम्हे ज़रूर मिलेगा|" हम सभी ने कुछ समय के लिए आंख बंद किया|
कुछ देर बाद साहुल बोला, "मुझे मालूम है तुमने क्या माँगा है|"
"अच्छा, पता है तो चुप रह", मैंने बोला|
"चलो अन्त्याक्षरी खेलते है", राजीव ने तभी कहा|
"हा चल लेकिन सब इक ही टीम रहेंगे", मैंने बोला|
और फिर अन्त्क्यछारी शुरू हो गया| तभी इक और तारा टूटा, राजीव हसते हुए बोला, "इस बार भी मांग लो भैया, ज़रूर मिलेगा वो"|
फिर तारा टूटने और अन्त्याक्षरी का सिलसिला जारी था, हम लोग बहुत सारी मस्ती कर रहे थे अपने बातों में किसी और का फिक्र ही नही रहा तभी लगभग साढ़े बारह बजे बिजली आई और हम छत से नीचे आ गये, फिर हम सोने कि तैयारी करने लगे|
रात के दो बजे साहुल का फोन बजा, मैंने फोन रिसीव किया दुसरे तरफ मेरे भैया थे "पापा नही रहे", उनके शब्द सुनते ही मेरा दिमाग घूम गया| 
"क्या......????????" मै बस यही कह पाया और तुरंत पैंट-बुशर्ट पहना और ट्रेन पकड़ने के लिए दौड़ पड़ा|
सुबह घर पहुंचा तो माहौल गमगीन था
दिमाग में क्या कुछ दौड़ रहा था 
मै कुछ भी कह नही सकता|
पर रात के टूटते तारों ने 
मेरे जिंदगी से इक ऐसा तारा तोडा 
जिनके आँखों का तारा मै था, 
इस तारे को चमकाने में ही 
सारा जिंदगी गुज़र गयी उनकी, 
और मेरे जिंदगी का तारा टूट गया, 
उनके हाथो में कुछ नही रख पाया, 
जिन्होंने मेरे हाथ हरदम पकडे रहा 
मै अंतिम पलों में बात भी नही कर पाया
इसका आज भी अफ़सोस है मुझे
तारों ने मुझसे पहले ही बोल दिया 
कि हम बुला रहे हैं, उस शख्स को, इंसान को
जिनके जिंदगी का चमकता हुआ तारा मै था 
मेरे जिंदगी से निकाल कर उनको
चिपका देंगे आसमान में उस चमकते तारें को 
वो इंसान गुजर गया मेरे जिंदगी से
जिनकी ऊँगली पकड़ कर मै चलना सीखा
उनकी मौत पर आसमान भी दुखी था
बादल बने रहे आसमान में तब तक
जब तक उनकी शरीर इस दुनिया में रही
नश्वर शरीर के जलते ही, मिटटी में मिलते ही 
सारे बादल अपने आंसू बहाने लगे, 
बारिश की तेज बौछारों में
जब भी याद आती है, आपकी 
तो उन तारों को निहार लेता हूँ
शायद उन्होंने बुला लिया है आपको
मिला लिया है आपको भी उन चमकते तारों में
कर दिया है मुझसे दूर.... बहुत दूर.....बहुत दूर.......
बहुत दूर.....बहुत दूर...... 
पूज्यनीय बड़े पिता जी "श्री गब्बू सिंह जी" की यादों में समर्पित: 
आपका लाडला:
जिसको आपने नाम दिया: 'राजेश्वर' 
और प्यार से पुकारा 'पिंकू' कहकर

Monday, June 20, 2011

रात और ख्याल

Hi I am Rajeshwar Singh from Kamareddy, Andhra Pradesh, INDIA.........

My heartbeat runs 72 times per minute, Some times when my heart feels emotions about close-one & jumps more than 72 times per minute, I like to create these stupid lines. I pleased, smiled on my self while I was writing these lines.

रात और ख्याल
आज रात तुम आये मेरे ख्यालों में,
गुम हो गया तुम्हारे बहकी सांसो में| 
भूल गया खुद को तुम्हारे बातों में,
उलझा रहा पूरी रात तुम्हारे बालों में||
आज रात तुम फिर आये मेरे ख्यालों में| 
आज रात तुम आये मेरे ख्यालों में||

आज रात तुम आये मेरे ख्यालों में, 
तुम जो शरमा कर बैठे मेरे आगोश में| 
बिछ गयी इस कदर मेरे अल्फाजों में,
परवाह ना रहा तुम्हे खुद का मेरे बाँहों में||
खो गया मै भी काले नैनो की बादलो में|  
आज रात तुम फिर आये मेरे ख्यालों में|| 

आज रात तुम आये मेरे ख्यालों में,
ना फिक्र रही घडी की सुइयों का हमें|
जो मिल गयी तुम्हारे होठो की लाली हमें,
डूब गया मै तुम्हारे लबों की नमी में|| 
पूरी रात ऐसे कट गयी तुम्हारे साथ में|
आज रात तुम फिर आये मेरे ख्यालों में||

आज रात तुम आये मेरे ख्याल में,
तुम भी हो गयी पगली, पगले के साथ में|
पहले थीं अन्जानी इस अन्जान के याद में,
खुद का पहचान ढूंढने लगी मेरे पहचान में|| 
मैं भी जीने लगा उस पगली के प्यार में| 
आज रात तुम फिर आये मेरे ख्याल में||
पूरी रात ऐसे कट गयी तुम्हारे साथ में|
आज रात तुम फिर आये मेरे ख्यालों में||

रात और ख्याल
By:-
राजेश्वर सिंह 'राज़्श'

Thursday, June 9, 2011

सुरमई अंखियों में

Hi I am Rajeshwar Singh from Banshwada, Andhra Pradesh,  INDIA.........



An appeal from my heart:



सुरमई अंखियों में इक प्यारा सा सपना दे जाए 
पलको के झपकते ही, अंखियों में वो आ जाए
कोई अपना दे जा, कोई सच्चा सपना दे जाए
अन्जाना सा पर कुछ पहचाना सा शबनमी दे जाए 

रेशम सी रेशमी दिल में समाकर जा ना पाए
सुरमई अंखियों में इक प्यारा सा सपना दे जाए
रात के आगोश में साथ में आ जाए
नींद की रिमझिम बारिश में साथ में नहा जाए

यादों में ऐसे ही आकर मुस्कुरा जाए
मेरे सपनो को भी यूँ ही हसाता जाए
सुरमई अंखियों में इक प्यारा सा सपना दे जाए 
प्यारी अंखियों में इक प्यारा सा सपना दे जाए
सुरमई अंखियों में:
By:
राजेश्वर सिंह 'राज्श'

Tuesday, June 7, 2011

तुम

Hi I am Rajeshwar Singh from Bodhan, Andhra Pradesh, INDIA.........

Dear,
As I said I am posting this for you....

क्या खूब लगती हो तुम!!
क्या तुम, खूब लगती हो??
ये आश्चर्य है या प्रश्न
मैं खुद से पूछता हूँ
तो इक ही उत्तर आता है
जो भी हो तुम खुदा की कसम
जो भी हो तुम खुद की कसम
लाजवाब हो, कमाल हो
ये जुल्फे लटकी है कंधे पे 
या बादल तुमसे उलझी हुई है
ये तुम्हारे आँखों की शोखियाँ है 
या दो प्याले मय के भरी हुई है 
ये तुम्हारे हुस्न का ज़लवा है
या झील में खिलता हुआ कँवल है
तुम-
By:
राजेश्वर सिंह 'राज्श'