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Saturday, March 18, 2017

पत्र: ११ १८ मार्च २०१७)

पत्र: ११ (१८ मार्च २०१७)

देश में मोदी प्रदेश में योगी 


पत्र श्रृंखला के आज के अंक में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को पत्र,


अभी कल ही मैंने एक पत्र लिखा था, जो की यौन उत्पीड़न पर एक खुला पत्र था। आज मैं उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नाम एक पत्र लिख रहा हूँ। योगी जी आपको प्रणाम एवं आपको बहुत बहुत बधाई!

ये जीत विकास के नाम पर या यूँ कहें कि मोदी जी के नाम पर मिली है, मैं अपना मताधिकार का प्रयोग नही करना चाहता था परन्तु मैंने संविधान द्वारा दिए गए इस अधिकार का प्रयोग किया। ये लहर २०१४ जैसी मोदी जी की लहर थी जो प्रतिनिधि को दरकिनार कर लोगो ने मत दिए।

मैंने गोरखपुर में अपने जीवन के आठ साल गुजारे है, अपने शिक्षा के अहम् आठ साल। ख़ुशी होती है कि एक ऐसे पवित्र शहर से जुड़ा हुआ हूँ, जिसमे सभी धर्म के लोग धार्मिक-सद्भाव से रहते है। आज क्योंकि आप प्रदेश के मुख्यमंत्री बन रहे है, इसलिए हम पूर्वांचलियों के लिए बहुत सारे सपने सच होंगे ऐसा प्रतीत हो रहा है। पूर्वांचल के विकास में जो काम माननीय वीर बहादुर सिंह जी ने किया था, उसे अब जाकर गति मिलेगा वरना भूतपूर्व मुख्यमंत्री गण केवल चुनावी प्रक्रिया के लिए पूर्वांचल का दर्शन करते थे, विकास के लिए नही।

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१९९८ से आप गोरखपुर से सांसद रहे है और गोरखपुर के लिए कई अभूतपूर्व विकास कार्य करवाये, और आशा है कि अब बाबा गोरखनाथ की कर्मभूमि गोरखपुर में तरक्की का मार्ग प्रशस्त होगा। कुछ कार्य का यहाँ जिक्र करना चाहूँगा, जो जनता के बीच चर्चित है:-

  • गोरखनाथ अस्पताल का स्थापना
  • मेडिकल कॉलेज का मान्यता यथावत रखना
  • जापान इंसेफेलाइटिस के लिए मेडिकल कॉलेज में अलग से वार्ड की स्थापना
  • गैस सिलिंडर भरने के लिए संयंत्र का स्थापना
  • एम्स की स्थापना
  • खाद कारखाना का पुर्नजन्म

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अब मैं चाहूँगा कि आप पूर्वांचल की आर्थिक दशा को और मजबूत करें जिससे कि यहाँ से मजदूर और पेशेवर/इंजीनियर इत्यादि का पलायन रुके और यहाँ का विकास हो।

  • वीडा और गीडा में उद्योगों की स्थापना, 
  • गोरखपुर में आईटी पार्क, 
  • कुशीनगर में विश्स्तरीय एयरपोर्ट की अविलम्ब शुरुआत, 
  • चीनी मिलों का पुर्नउद्धार, 
  • बाढ़ से बचने के लिए क्षेत्र में नदियों, नहरों और बाँधो की मरम्मत, 
  • क्षेत्र में कोल्ड स्टोरेज स्थापना,
  • गोरखपुर के दोनों विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा,
  • गोरखपुर से शहरीय/अंतर्राज्यीय परिवहन की दुरुस्त व्यवस्था
  • गोरखपुर में जंक्शन के अलावा एक और विश्वस्तरीय रेलवे स्टेशन,
  • चौरी-चौरा शहीद स्मारक को एक पर्यटक स्थल के रूप में विकास,
  • राज्य में स्थित धार्मिक स्थलों तक यातायात की दुरुस्त व्यवस्था,
जो विकास आजादी के ७० सालों में नही हुए वो आने वाले कुछ सालों में प्रशस्त हो, इन्ही शब्दो के साथ आपके आशीर्वाद के लिए शुभेक्क्षु, राजेश्वर। 


शेष फिर,
पत्र: ११  
राजेश्वर सिंह
नई दिल्ली, भारत
#rajeshwarsh

Friday, March 17, 2017

पत्र: १० (१७ मार्च २०१७)

पत्र: १० (१७ मार्च २०१७)

ये पत्र सभी के लिए है,


पिछले कुछ दिनों से एक समाचार चर्चा में है, कि एक संस्था का मुख्य कार्यकारी अधिकारी अपने कनिष्ठ कर्मचारियों से अश्लील टिप्पणी और छेड़खानी करता है। इस पत्र के लिखने का मुख्य मकसद ये है कि लोग उन दो पहलुओं की तरफ भी देखे जबकि लोग केवल एक पहलू से जुड़े हुए है।

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भँवरी देवी बलात्कार कांड ने इस देश के संविधान में महिला यौन उत्पीड़न करने पर एक कठोर सजा का प्रावधान कराया। राजस्थान की राजधानी जयपुर से पचास किलोमीटर दूर ग्रामीण आँचल में अनपढ़ और पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाली भँवरी का बलात्कार उसके गाँव के ही उच्च जाति के पाँच लोगो ने किया था। आज पचपन साल की हो चुकी भँवरी देवी साथ घिनौना कृत्य हुए लगभग २५ साल हो चुके है। परन्तु आज तक इस मामले में जयपुर उच्च न्यायालय में केवल एक बार सुनवाई हुई है और कथित पांच आरोपियों में से दो की मौत भी हो चुकी है।

आप इस अदालती मामले के बारे में बीबीसी पर जरूर पढ़िए जिसमे निचली अदालत के द्वारा दिए गए बेतुके और बेबुनियाद कारण एक महिला को हतोत्साहित करते है।

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आज से छः साल पहले एक और भँवरी कांड हुआ था वो भी राजस्थान में ही हुआ था। जिसमे आशा (नर्स/ए एन एम्) भँवरी देवी प्रदेश के कई राजनीतिक नेताओ को अपने मोहपाश में फसाकर, आपत्तिजनक अवस्था में सीडी बना ली थी और उनको करोड़ो के लिए ब्लैकमेल कर रही थी। आख़िरकार उसकी हत्या कर दी गई और सीबीआई इस मामले की जाँच कर रही है।

चर्चा में चल रहे यौन उत्पीड़न की बात करूँ तो इस मामले में दो नही तीन पहलू बनते है, पहला वो सीईओ सही में बेहूदा हरकते करता है, दूसरा एक देश के टॉप टेन स्टार्टअप में से एक होने के कारण वहाँ आपको काम ना मिल रहा हो और तीसरा कि कहीं वो कंपनी खुद अपने प्रचार के लिए ऐसे बेहूदे हथकंडे अपना रही हो।

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पहले पहलु पर चर्चा करूँ तो यहाँ ये बताना बेहतर होगा कि मर्द जाति में कुछ ऐसे होते है जो नारी जाति को देखकर लार टपकाने लगते है। अपने बल, हठ, धन इत्यादि के दम पर एक नारी को भोगविलास की वस्तु समझते है और ऐसे कुकर्म करने का प्रयत्न करते हैं। भँवरी देवी के साथ साथ आपको ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जो ऐसे पहलुओं की एक बानगी पेश करते है जैसे साढ़े चार साल पहले हुआ निर्भया कांड, डेढ़ साल पहले गुरुग्राम के एक संस्था में एक शोध छात्रा के साथ देश के नामी गिरामी निदेशक का उत्पीड़न, विशेष पंथ के एक धर्म गुरु के कृत्य, कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश के सड़क पर हुआ सामूहिक दुष्कर्म, या कुछ दिनों पहले हुआ कुकर्म जिसमे उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की गिरफ़्तारी हुई। ऐसे मामले मीडिया में बहुत चर्चित होते हैं परन्तु इस कलयुग में किसी पर आरोप सिद्ध कर पाना बहुत मुश्किल है, कुछ मामलों में ही सजा मुकर्रर हो पाती है जैसे आज से तेरह साल पहले धनंजय चटर्जी को फाँसी दी गई अठारह साल की लड़की के साथ बलात्कार और हत्या के जुर्म में, वो भी कुकर्म करने के चौदह साल बाद। ऐसे में कइयों को लगता है कि इस देश में कुछ भी कर लो, कानून कुछ नही करेगा, टरकाने के सिवा।

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अब बात करता हूँ दूसरे पहलू की, जहाँ दफ़्तर में काम कर रहे मर्द और औरत के बीच मर्ज़ी (सहमति) से बना हर संबंध, चाहे वो दोस्ताना हो या फिर 'सेक्शुअल', वो उत्पीड़न नहीं है। सहमति से किया मज़ाक, तारीफ़ या उसमें इस्तेमाल की गई 'सेक्शुअल' भाषा में कोई परेशानी नहीं है। किसी से कस कर हाथ मिलाना, कंधे पर हाथ रख देना, बधाई देते हुए गले लगाना, दफ़्तर के बाहर चाय-कॉफ़ी या शराब पीना, ये सब अगर सहमति से हो तो इसमें ग़लत कुछ भी नहीं है। परन्तु यही आपसी सहमति जब फायदेमंद नही होती तो अपने फायदे और दूसरे के नुकसान के लिए आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल पड़ता है वैसे आरोप-प्रत्यारोप से पहले मामले को रफा-दफ़ा करने के लिये नेगोशिएशन्स होते है। इस मामले में अधिकतर पुरुष जाति प्रताड़ित होती है। इस प्रताड़ना से शायद ही कोई उबर पाता है।

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तीसरा पहलू की बात करें तो कई कंपनिया अपने किसी प्रोडक्ट के प्रचार के लिए ऐसे उल-फजूल के खबरें निकालते है। और अगर उसी ढर्रे पर ये भी कंपनी चल रही है तो ऐसा इसलिए क्योंकि इनके कई कंपटीटर मार्केट में आ गए है, और वो भी बेहतर मनोरंजन करा रहे है। 

अब इस मामले के पीछे क्या सच्चाई है, वो तो आने वाला वक्त बतायेगा। 

इस पत्र को लिखने का खास मकसद यही है कि आप हर एक पहलू को देखकर किसी के बारे में कोई विचार बनाए, क्योंकि ये कलयुग है। यहाँ सबको ज्ञान देने वाले खुद अज्ञानी होते है और एक फ़कीर बहुत कुछ बता जाता है।

इस पत्र पर अपने टिप्पणी (कमेंट) जरूर दीजिये और एन्जॉय कीजिए शॉपिंग इस ब्लॉग से करके,

शेष फिर,
पत्र: १० 
राजेश्वर सिंह
नई दिल्ली, भारत
#rajeshwarsh

Wednesday, February 22, 2017

पत्र: ७ (२२ फरवरी २०१७)


पत्र: ७ (२२ फरवरी २०१७) 

पत्र माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को


माननीय प्रधानमंत्री जी, 
सादर प्रणाम! 

आशा है आप सकुशल होंगे और कई सारे समस्याओं से जूझ रहे अपने देश भारत को तरक्की के राह पर प्रशस्त करने की कोशिश रहे होंगे। इस पत्र के माध्यम से मैं एक ऐसे मामले को आपके संज्ञान में लाने की कोशिश कर रहा हूँ जिससे, मेरे जैसे इस देश के दूर-दराज इलाकों (ग्रामीण परिवेश) में रहने वाले आम नागरिक हर दिन दो चार हो रहे होंगे। 

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पिछले साल के ८ नवम्बर को आपने राष्ट्र के नाम सन्देश में रूपये ५०० और रूपये १००० के नोटों को आधिकारिक तौर पर गैरकानूनी घोषित कर दिया। इस विमुद्रीकरण के कारण देश को एक साफ़-सुथरी और नया विचार मिला, जो समाज में फैले कुरीतियों को मिटाने में कई रूप से सहायक है और आने वाले दिनों में होगा। माननीय राजाराम मोहन राय द्वारा १८६२ ईसवी में सती-प्रथा उन्मूलन के लिए बनवाये गए कानून से अब समाज में उस समय फैली सती-प्रथा जैसी कुरीति से समाज को छुटकारा मिल चुका है। 

कुछ दिनों पहले मैं एक पेट्रोल पंप पर मोटर-साइकिल में पेट्रोल डलवाने गया, वहाँ पेट्रोल भरने वाले व्यक्ति से मैंने पूछा, “POS मशीन है?” 
“मतलब”, पेट्रोल पंप पर तेल भर रहा व्यक्ति बोला। 
“मतलब, एटीएम कार्ड से पेमेंट हो जाएगा?”, फिर मैंने पूछा। 
“नही है”, उसने बोला। 
“नेटबैंकिंग, भीम एप्प, मोबी क्विक, पेटीएम्”, मैंने फिर पूछा। 
“कुछ नही है भैया”, उसने बोला। 
“कब तक लगेगा?”, मैंने पूछा। 
“कभी नही”, उसने बोला। 
“ऐसा क्यों, सरकार तो बोल रही है कैशलेस होने को, फिर आप क्यों नही इसका फ़ायदा उठा रहे”, मैंने कहा। 
“जो भी हो, मालिक (पेट्रोल पंप) बोल रहे है कि नही लगेगा कोई ऐसा सिस्टम”, उसने बोला। 

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फिर मैंने जेब में बचे १०० रूपये का पेट्रोल डलवाया और निकल लिया। इस घटना को हुए लगभग ६५ दिन हो चुके है फिर भी आज तक इन पेट्रोल पंप पर POS मशीन नही लगी है। 

मैंने एक स्टार्टअप कम्पनी शुरू की है, जो सोलर एनर्जी सेक्टर में काम करती है और कुछ दिन पहले इसी व्यवसाय के सिलसिले अपने पैतृक गाँव फिर आया। इस बार मुझे लगभग हर रोज पेट्रोल डलवाना होता है, परन्तु इस क्षेत्र के सभी पेट्रोल पंप पर POS मशीन के बारे में पूछने पर सब इसके बारे में मना करते है और सबका एक ही उत्तर होता है, “नही लगेगा” । 

अब मैं बैंक जाकर पैसा निकालूं कि गाड़ी में पेट्रोल भरवा सकूँ, आखिर कब तक ऐसा रहेगा? जबकि ग्रामीण इलाकों के बैंको में अभी भी मुद्रा (कैश) की दिक्कत है, कैश निकालने में अभी भी परेशानी हो रही है । 

ग्रामीण परिवेश ऐसे सुविधाओं से कब तक विमुक्त रहेगा? कैशलेस व्यवस्था का हम सभी स्वागत करते है परन्तु कुछ लोगो के वजह से ये सुविधा एक दुविधा लग रही है । 

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मैं इस पत्र को लिखने से पहले कई ट्वीट करके सम्बंधित पेट्रोलियम कंपनी और पेट्रोलियम मंत्री माननीय धर्मेन्द्र प्रधान जी को अवगत करा चुका हूँ, परन्तु इस मामले में अभी तक कोई अनुरूप फल देखने को नही मिला है। मेरा ट्वीटर हैंडल है rajeshwarsh. 

इस पत्र को अपने ब्लॉग पोस्ट के साथ साथ मैं आपके प्रत्येक महीने के रेडियो कार्यक्रम “मन की बात” के लिए भी प्रेषित कर रहा हूँ। मुझे ख़ुशी होगी, अगर इस पत्र को आप अपने रेडियो कार्यक्रम में सम्मिलित करें और भारतीय जनता के साथ साथ धनाढ्य को कैशलेस होने के लिए प्रेरित करें। 

शेष फिर....... 

पत्र: ७ 
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh) 
कुशीनगर, भारत

Friday, November 11, 2016

पत्र: २ (११ नवम्बर २०१६)

पत्र: २ (११ नवम्बर २०१६)
पत्र दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल के नाम,
महोदय,
आशा और जैसा कि ट्विटबाजी और आपके वीडियो से लग रहा है आप सकुशल है। खैर वैसे भी जबसे मोदी जी ने अचानक से ५०० और १००० रूपये के नोट बैन किया  आपके चेहरे पर हवाईयाँ उड़ गई थी, तबियत तो ठीक है ना?
खैर यहाँ कुछ साल पहले आपके कृत्यों, वादों और चर्चाओ का बहुत बखान हुआ करते थे। 
सब के सब बोलते थे, क्या बंदा है यार! 
वहीं आज सभी बोलते हो क्या बंदा है यार?
खैर ये सब छोड़िये, ये बताइये आप अभियंता होकर, देश (देश तो आपके हाथ में नही) या  प्रदेश में तकनीक, अभियांत्रिकी, औद्योगिक या फिर जनमानस के जीवनशैली में कितने नवाचार पर काम किये है? अभियांत्रिकी का मूल उद्देश्य तो आप जानते ही होंगे। जनमानस की जीवनशैली सुधारने की बजाय आप अपने जीवन शैली को ही अग्रसर करने में लगे हुए हैं। 
पिछले महीने पड़ोसी देश पर हुए सर्जीकल स्ट्राइक पर भी आपके फेसबुक लाइव/ यूट्यूब वीडियो में आप उन लोगो के प्रश्नों प्रधानमंत्री महोदय के सामने उठा रहे है जो आपके अपने देश की विरोध करते है। 
कल के वीडियो में भी आप प्रधानमंत्री महोदय को कोस रहे थे, जैसे कि किसी ने आपकी रातों रात जेब काट ली हो, या आपकी तिज़ोरी लूट ली हो। आपकी भाषा भी इतने गिरे दर्जे की हो गई है कि क्या कहें! आप वोट के लिए इतने नीचे गिर जाएंगे, कभी सोचा भी ना था।
आपने बोला, कि देश की आम आदमी इसमें पिस रही है, कैसे आम आदमी पिस रही है?
देश की अधिकतर जनता अपने पैसे या तो बैंक में रखती है या फिर कहीं निवेश की होती है। घर में नोट रखना बहुत पुरानी बात है, वैसे भी आम जनता कभी लाखों रुपये नहीं रखती। वो गिने चुने काम भर के रुपये पास रखती है। 
आपने बोला, शादियों में लोग परेशान हो रहे है, पर आपने कभी सोचा है, दहेज़ का लेन-देन कितना होता है?
केटरर्स, टेंट वाले कैश में अगर काम करते है तो, उनकी कमाई भी दो-तीन लाख से ऊपर होती होगी, और वो आईटीआर भरते होंगे, फिर दिक्कत किस बात की?
अम्बानी, अडानी के बारे में बोला, बहुत अच्छे! पर कभी सोचा माल्या, ललित मोदी, कलमाड़ी, कनिमोझी और ए राजा नही बचे फिर तो ये भी फसेंगे ही किसी ना किसी रोज।
एक कहावत मशहूर है, 'लोग खुद जैसा होते है वैसा सोचते है'। कहीं फिर आप तो ऐसे नही?

मैं भारतीय राजनीति का पिछले दो दशकों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भुक्तभोगी रहा हूँ। किसान का लड़का हूँ, केंद्र सरकार और प्रादेशिक सरकार के लड़ाई में बहुत पिसे है, खेतों में खड़ी फसल कभी चीनी मिल बंद हो जाने से सूख गई तो कभी मौसम की मार से। बारिश ने फसलों को बहा दिया, तो कभी सूखे ने अनाज लगने ही नहीं दिया। मानवीय मजदूरी, पेट्रोलियम, खादों के दाम बढ़ा दी गई पर आज भी अनाजों के दाम अपेक्षा में कम है। आजादी के ६९ साल बाद आज भी गांव में मानवीय मूलभूत सुविधाओं से विमुख है पर मोदी सरकार की तरफ से कोशिश की तारीफ करनी होगी। आज ना सही, पर कल तो देश विकासशील से विकसित की श्रेणी में आ जाएगा। 
केंद्र सरकार को लिखे ईमेल का प्रति उत्तर मिल जाता है पर आपके सरकार और आपको लिखे ईमेल का कोई प्रतिउत्तर नही मिलता| अब इसे क्या कहें? आपको एक पत्र लिखा था ३ मई २०१६ को 'हैल्लो मुख्यमंत्री जी!' एक ट्रैफिक सिग्नल को दुरुस्त कराने के लिए फिर भी आप या आपके विभागों की तरफ से कोई समाधान नही। 

आप कभी खुद से ऊपर उठ कर देश को पहले रख कर नेतृत्व करो, फिर देखो देश कैसा हो जाता है। माननीय मुख्यमंत्री जी, केवल खुद के महत्वकांक्षा के लिए ऐसे व्यक्तव्य देकर युवाओं के मनोबल पर प्रतिघात ना करें। अगर फिर भी आप जैसे पढ़े लिखे मुख्यमंत्री का ये हाल है तो उल्लुओं जैसे नेताओ की जात ही कभी कभी अच्छी लगती है। 
वैसे देश की राजनीति में एक पप्पू तो है ही, अब एक गुड्डू की जरुरत थी, जो लगभग पूरी हुई लगती है।
शेष फिर.......
पत्र: २
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh)
नई दिल्ली, भारत

Monday, November 7, 2016

पत्र: १ (७ नवम्बर २०१६)

पत्र: १ (७ नवम्बर २०१६)

पत्र प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी, गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी, रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश सिंह यादव और मुख्य निर्वाचन आयुक्त डॉ. नसीम जैदी के नाम, 

महोदयों,
आशा है आप सभी सकुशल होंगे, मैं २७ साल का एक भारतीय नागरिक हूँ। जिसका बचपन एक गाँव में, पढ़ाई शहर में हुई है, रोजी रोटी के लिए नौकरी मेट्रो शहर में करते हुए अब अपने कृतियों और नवाचार को एक प्रारूप देने में लगा है। यह एक पत्र के साथ साथ आप बीती है जिसे मैं बयाँ कर रहा हूँ। अगर समय ना हो तो सीधे नीचे के दो पैराग्राफ पढ़ लीजिये, जिसमे मैंने सुझाव देने की कोशिश की है, कि आपका वक़्त बच सके और मेरी बात आप तक पहुँच सके। और अगर मन करें तो आगे के पैराग्राफ पढ़िएगा, और मेरे वास्तुस्थिति को समझिएगा।
मेरे पैदा होने से एक साल पहले ही देश में मताधिकार का प्रयोग करने की आयुसीमा घटाई गई थी, और जब मैं पैदा हुआ तो देश के राजनीतिक गलियारे में बहुत चहल पहल हो रही थी। देश के प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोपो का अम्बार था, बचपन से लेकर आज तक देश, प्रदेश, गाँव हर जगह राजनीति का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभाव पड़ा है। इवीऍम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के प्रयोग से देश के चुनाव नीति और तौर तरीके में बहुत बदलाव हुए, फिर भी वोट डालने की प्रतिशतता में बढ़ोत्तरी के लिए अभी बहुत परिवर्तन की जरुरत है। 
मैं दिल्ली में रहता हूँ और अपने गाँव पर ही मताधिकार का प्रयोग करता हूँ। मैंने आजतक के सारे चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग मैं घर जाकर करता रहा हूँ, पर अब थोड़ी मुश्किल है क्योंकि,:
२०१४ के आम चुनाव में घर जाने के लिए तत्काल टिकट लिया पर वेटिंग के कारण टिकट कैंसल हो गया। फिर भी जैसे तैसे गया, आने के लिए 'सुविधा ट्रेन' में टिकट बुक किया था। सुविधा ट्रेन अभी नई नई शुरू हुई थी, और डायनामिक प्राइसिंग का कांसेप्ट रेलवे में शुरुआत हुआ था। खैर टिकट ले लिया, जिसमे कैंसल करने का भी कोई ऑप्शन नही था। गोरखपुर से दिल्ली आने के लिए मेरा और मेरे मित्र दो लोगो का टिकट था। परन्तु मेरे मित्र किसी कारणवश यात्रा नही कर रहे थे। सुविधा ट्रेन में ज़्यादा पैसा खर्च करके टिकट लेने के बाद भी जब मैं गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर अपने कोच में चढ़ने लगा, तो कोच पूरी तरह से भरी हुई थी,मेरा सीट पर जाने को तो छोड़ो, ट्रेन में चढ़ना मुश्किल हो रहा था। साथ में सामान काम था, इसलिए जैसे तैसे धक्का मुक्की करके ट्रेन में चढ़ा और सीट तक पहुँचा। पुरे ट्रेन राजकीय पुलिस से खचाखच भरी हुई थी, मेरे अलॉटेड सीट पर पहले से ही पुलिस के बंदे बैठे हुए थे, जिनसे थोड़ा सा एडजस्ट करने को बोलने पर वो अपने वर्दी का धौस दिखाने लगे। उनको बोलने पर कि मेरे पास दो सीट के लिए टिकट है, एक सीट पर बैठे पुलिस वाले ने गाली गलौज देनी शुरू कर दी। बहुत ही दयनीय स्थिति थी, पुलिस के बन्दे हर जगह पड़े हुए थे, सारे सीट पर, कम्पार्टमेंट में चलने वाले जगह पर भी कुछ पुलिस के लोग लेटे हुए थे। रास्ते में बस्ती स्टेशन पर तो गेट ही नही खोलने दिए कि ट्रेन में कोई और यात्री ना चढ़ सके। कोच के हर कॉम्पार्टेन्ट में एक दो सवारी और १०-१२ पुलिस वाले या तो लेटे पड़े थे या फिर बैठे थे, लखनऊ पहुँचने तक मैं सामान अपने पीठ पर लादे सीट के पास खड़ा रहा। लखनऊ में पहुँचते ही ट्रेन से कुछ पुलिस वालों के उतरते थोड़ी जगह बनी तो एक पुलिस वाले ने बैठने को जगह दिया। 
Advert

वैसे भी उत्तर प्रदेश के पुलिस वालों के साथ ८० प्रतिशत नकारात्मक प्रभाव दिखा है, जबकि राजधानी दिल्ली के पुलिस वालों का ९० प्रतिशत प्रभाव सकारात्मक रहा है। 
इस बार फरवरी में होने वाले प्रादेशिक चुनाव में भी वोट देने जाना चाहता हूँ कि सेवाएं और सुविधाओं में थोड़ी तरक्की हो, ना कि फिर से गाली सुनूँ, फिर से परेशान होऊं, देश बदले, सोच बदले.......

प्रधानमंत्री कार्यालय, रेलवे मंत्रालय, गृह मंत्रालय, निर्वाचन आयोग और उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री कार्यालय के कर्ता-धर्ता इन बिंदुओं पर ध्यान दीजियेगा:-
  • चुनाव की तिथि चार महीने पहले घोषित किया जाए कि अधिकाधिक नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें, जब तक कि किसी इलेक्ट्रॉनिक मत (वोट) का प्रारूप ना आ जाए, क्योंकि अग्रिम रेल टिकेट लेने की समय सीमा चार महीने (१२० दिन) हैं। 
  • अतिरिक्त ट्रेन चलाई जाए, मेट्रो शहरो से क्षेत्र के आस पास, चुनाव तिथि के नजदीक, कि मतदाता सुविधानुसार समय पर पहुँच सके और मताधिकार का प्रयोग कर सके।  
  • चुनाव में ड्यूटी पर लगे राजकीय पुलिस, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को बस की बजाय रेल सुविधा दिया जाए कि वो अपने घर या स्थानीय ड्यूटी पर जल्दी पहुँच सके। क्योंकि इनके भयावह स्वरुप को झेलना या यूँ कहें समझ पाना बहुत मुश्किल है। क्योंकि क्या है ना, इस देश में खाकी और खादी के सफ़ेद कपड़ो में बस दिखने को सादगी है। 
  • इलेक्ट्रॉनिक वोट का कांसेप्ट जल्दी से लागू किया जाए कि मत प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हो। 
शेष फिर....... 

पत्र: १ 
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh)
नई दिल्ली, भारत 


Wednesday, November 2, 2016

सच्चाई साझा करें झूठ नही!

मैंने जैसे ही फेसबुक अकाउंट खोला, एक मित्र द्वारा साझा किया 'फास्टेस्ट लेडी बैंकर" का पोस्ट दिखा। पोस्ट में बैंक के केबिन में एक महिला दिख रही थी, जिनके हाथ में कुछ नोट थे। जिज्ञासावश मैंने भी उस पोस्ट पर क्लिक किया, यूट्यूब पर एक वीडियो खुला, जिस वीडियो में एक महिला कैशियर कुछ रुपयों के नोटों को एक एक करके कॉउंटर मशीन में डाल रही थीं। उन महिला के काम करने की गति बहुत धीमी थी। 

मुझे उनके काम करने की गति में थोड़ी असहजता लगी, तो मैंने सोचा की गूगल बाबा से पूछ लेते है क्या सच्चाई है, जैसे ही मैंने फास्टेस्ट लेडी बैंकर लिखकर सर्च बटन दबाया, मुझे कई सारे लिंक मिलने लगे पर कोई भी ऐसा नही था जिस पर सच्चाई मानी जा सके। फिर न्यूज़ टैब पर देखा तो कई सारे विश्वसनीय लिंक मिले, जिनमे कुछ समाचार संस्था भी थे।

वहाँ पता चला "महिला श्रीमती प्रेमलता शिंदे,"महाराष्ट्र बैंक" में खजांची हैं और दो दिल के दौरे और एक पक्षाघात स्ट्रोक झेलकर भी बच गई हैं। शिंदे अगले साल फरवरी में सेवानिवृत्त हो रहीं हैं और पर्याप्त पूर्ण वेतन के साथ सेवानिवृत्ति तक घर पर बैठने के लिए उनके पास छुट्टियाँ जमा है, फिर भी उन्होंने एक सम्मानजनक तरीके से अपनी सेवा समाप्त करने के लिए चुना है। उसकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए, उनकी शाखा ने उनके लिए एक अतिरिक्त कैश काउंटर की स्थापना की, इन सबके अलावा, शिंदे जी के पति का निधन हो गया है और उनका बेटा विदेश में रहता है खुद के लिए काम कर रहीं है।"

सरकारी संस्थानों में कभी कभी कुछ ऐसे धीमी गति से काम करते हुए कर्मचारी मिल जाते है। मगर कभी जान बूझकर धीमी गति से काम करने वाले नही मिलते। जिन महाशय व्यक्ति ने ये वीडियो साझा किया, उन्होंने सोचा होगा कि इससे वो देश में एक बदलाव ला रहे हैं। साझा करने वाले भी यही सोचकर साझा किये होंगे कि जो पोस्ट है वो वाकई ठीक है और उनको साझा करके वो देश के तरक्की में अपना कोरम पूरा कर दिए। गलतियों को साझा करना सही है परंतु उसके पीछे का कारण पता करने के बाद।

कुछ वक़्त पहले एक और वीडियो ट्रेंड में आया था, जिसमे एक दिल्ली के पुलिस "सलीम" जी को मेट्रो में गिरते हुए दिखाया गया था। दिल्ली पुलिस से उन्हें निष्कासित भी कर दिया गया परंतु चिकित्सीय जाँच में पाया गया की उन्हें पक्षाघात स्ट्रोक हुआ था, जिसकी वजह से वो दिल्ली मेट्रो में गिर पड़े थे। फिर उनकी बहाली हुई।

आजकल समस्याओं को महान हस्तियों से जोड़कर कुछ अफवाहें फैलाई जा रही हैं, जिनमे से एक का उदाहरण मैं दे रहा हूँ, जिसे लगभग आठ-नौ मित्रो को समझा चुका हूँ। मैसेज/मेल/पोस्ट होता है पार्टी में बचे भोजन को गरीबों में बाँटने के लिए १०९८ (1098) पर कॉल करें और संस्था आपके घर से भोजन ले जाकर गरीब बच्चों में बाँट देगी। इस अफ़वाह के चलते चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन को कई फ़ोन कॉल मिलते है, जिनमे बताया जाता है कि "हमारे यहाँ पार्टी हुआ है, कुछ खाना बचा है आप ले जाइये"। चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन (सीआईएफ) महिलाओं के संघ एवं बाल विकास मंत्रालय की नोडल एजेंसी है, जो देश भर में चाइल्डलाइन 1098 सेवा की स्थापना, प्रबंधन और निगरानी के लिए बुनियादी संगठन है। जो बाल संरक्षण के मुद्दे जैसे, "दुर्व्यवहार और हिंसा, तस्करी, बाल श्रम, कानून के साथ संघर्ष, बाल विवाह, बाल यौन शोषण, माता पिता की देखभाल के बिना गली के बच्चे, जन्म पंजीकरण, सशस्त्र संघर्ष, विकलांगता, दवाई का दुरूपयोग, बच्चियों, एचआईवी-एड्स संक्रमित बच्चे, ग़ुम बच्चे इत्यादि" का समन्वयन करती है। 

ना जाने कितने ऐसे केस होते है, जिन्हें हम बेवजह ही इतना बढ़ावा दे देते है कि उस इंसान या संस्था को परेशानी और शख्सियत के साथ साथ देश के भी साख को नुक्सान होता है। 

वीडियो या पोस्ट को ट्रेंड में लाने के लिए एक व्यंगात्मक/टिप्पणीनात्मक शीर्षक देखकर साझा ना करें। चंद पसंद और टिप्पणी के लिए कुछ भी प्रकाशित करने से पहले उसके सत्यता की जाँच कर लें। 

आजकल कुछ फ़र्ज़ी समाचार संस्थाये भी ऐसे लेख, फोटो और वीडियो को पोस्ट कर लोगो को दिग्भ्रमित कर रहीं है, इसलिए सजग रहिये, सचेत रहिये और देश की तरक्की में सहयोग करते रहिये। 


जय हिन्द! 


राजेश्वर सिंह
#rajeshwarsh
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