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Saturday, March 18, 2017

पत्र: ११ १८ मार्च २०१७)

पत्र: ११ (१८ मार्च २०१७)

देश में मोदी प्रदेश में योगी 


पत्र श्रृंखला के आज के अंक में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को पत्र,


अभी कल ही मैंने एक पत्र लिखा था, जो की यौन उत्पीड़न पर एक खुला पत्र था। आज मैं उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नाम एक पत्र लिख रहा हूँ। योगी जी आपको प्रणाम एवं आपको बहुत बहुत बधाई!

ये जीत विकास के नाम पर या यूँ कहें कि मोदी जी के नाम पर मिली है, मैं अपना मताधिकार का प्रयोग नही करना चाहता था परन्तु मैंने संविधान द्वारा दिए गए इस अधिकार का प्रयोग किया। ये लहर २०१४ जैसी मोदी जी की लहर थी जो प्रतिनिधि को दरकिनार कर लोगो ने मत दिए।

मैंने गोरखपुर में अपने जीवन के आठ साल गुजारे है, अपने शिक्षा के अहम् आठ साल। ख़ुशी होती है कि एक ऐसे पवित्र शहर से जुड़ा हुआ हूँ, जिसमे सभी धर्म के लोग धार्मिक-सद्भाव से रहते है। आज क्योंकि आप प्रदेश के मुख्यमंत्री बन रहे है, इसलिए हम पूर्वांचलियों के लिए बहुत सारे सपने सच होंगे ऐसा प्रतीत हो रहा है। पूर्वांचल के विकास में जो काम माननीय वीर बहादुर सिंह जी ने किया था, उसे अब जाकर गति मिलेगा वरना भूतपूर्व मुख्यमंत्री गण केवल चुनावी प्रक्रिया के लिए पूर्वांचल का दर्शन करते थे, विकास के लिए नही।

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१९९८ से आप गोरखपुर से सांसद रहे है और गोरखपुर के लिए कई अभूतपूर्व विकास कार्य करवाये, और आशा है कि अब बाबा गोरखनाथ की कर्मभूमि गोरखपुर में तरक्की का मार्ग प्रशस्त होगा। कुछ कार्य का यहाँ जिक्र करना चाहूँगा, जो जनता के बीच चर्चित है:-

  • गोरखनाथ अस्पताल का स्थापना
  • मेडिकल कॉलेज का मान्यता यथावत रखना
  • जापान इंसेफेलाइटिस के लिए मेडिकल कॉलेज में अलग से वार्ड की स्थापना
  • गैस सिलिंडर भरने के लिए संयंत्र का स्थापना
  • एम्स की स्थापना
  • खाद कारखाना का पुर्नजन्म

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अब मैं चाहूँगा कि आप पूर्वांचल की आर्थिक दशा को और मजबूत करें जिससे कि यहाँ से मजदूर और पेशेवर/इंजीनियर इत्यादि का पलायन रुके और यहाँ का विकास हो।

  • वीडा और गीडा में उद्योगों की स्थापना, 
  • गोरखपुर में आईटी पार्क, 
  • कुशीनगर में विश्स्तरीय एयरपोर्ट की अविलम्ब शुरुआत, 
  • चीनी मिलों का पुर्नउद्धार, 
  • बाढ़ से बचने के लिए क्षेत्र में नदियों, नहरों और बाँधो की मरम्मत, 
  • क्षेत्र में कोल्ड स्टोरेज स्थापना,
  • गोरखपुर के दोनों विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा,
  • गोरखपुर से शहरीय/अंतर्राज्यीय परिवहन की दुरुस्त व्यवस्था
  • गोरखपुर में जंक्शन के अलावा एक और विश्वस्तरीय रेलवे स्टेशन,
  • चौरी-चौरा शहीद स्मारक को एक पर्यटक स्थल के रूप में विकास,
  • राज्य में स्थित धार्मिक स्थलों तक यातायात की दुरुस्त व्यवस्था,
जो विकास आजादी के ७० सालों में नही हुए वो आने वाले कुछ सालों में प्रशस्त हो, इन्ही शब्दो के साथ आपके आशीर्वाद के लिए शुभेक्क्षु, राजेश्वर। 


शेष फिर,
पत्र: ११  
राजेश्वर सिंह
नई दिल्ली, भारत
#rajeshwarsh

Wednesday, February 22, 2017

पत्र: ७ (२२ फरवरी २०१७)


पत्र: ७ (२२ फरवरी २०१७) 

पत्र माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को


माननीय प्रधानमंत्री जी, 
सादर प्रणाम! 

आशा है आप सकुशल होंगे और कई सारे समस्याओं से जूझ रहे अपने देश भारत को तरक्की के राह पर प्रशस्त करने की कोशिश रहे होंगे। इस पत्र के माध्यम से मैं एक ऐसे मामले को आपके संज्ञान में लाने की कोशिश कर रहा हूँ जिससे, मेरे जैसे इस देश के दूर-दराज इलाकों (ग्रामीण परिवेश) में रहने वाले आम नागरिक हर दिन दो चार हो रहे होंगे। 

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पिछले साल के ८ नवम्बर को आपने राष्ट्र के नाम सन्देश में रूपये ५०० और रूपये १००० के नोटों को आधिकारिक तौर पर गैरकानूनी घोषित कर दिया। इस विमुद्रीकरण के कारण देश को एक साफ़-सुथरी और नया विचार मिला, जो समाज में फैले कुरीतियों को मिटाने में कई रूप से सहायक है और आने वाले दिनों में होगा। माननीय राजाराम मोहन राय द्वारा १८६२ ईसवी में सती-प्रथा उन्मूलन के लिए बनवाये गए कानून से अब समाज में उस समय फैली सती-प्रथा जैसी कुरीति से समाज को छुटकारा मिल चुका है। 

कुछ दिनों पहले मैं एक पेट्रोल पंप पर मोटर-साइकिल में पेट्रोल डलवाने गया, वहाँ पेट्रोल भरने वाले व्यक्ति से मैंने पूछा, “POS मशीन है?” 
“मतलब”, पेट्रोल पंप पर तेल भर रहा व्यक्ति बोला। 
“मतलब, एटीएम कार्ड से पेमेंट हो जाएगा?”, फिर मैंने पूछा। 
“नही है”, उसने बोला। 
“नेटबैंकिंग, भीम एप्प, मोबी क्विक, पेटीएम्”, मैंने फिर पूछा। 
“कुछ नही है भैया”, उसने बोला। 
“कब तक लगेगा?”, मैंने पूछा। 
“कभी नही”, उसने बोला। 
“ऐसा क्यों, सरकार तो बोल रही है कैशलेस होने को, फिर आप क्यों नही इसका फ़ायदा उठा रहे”, मैंने कहा। 
“जो भी हो, मालिक (पेट्रोल पंप) बोल रहे है कि नही लगेगा कोई ऐसा सिस्टम”, उसने बोला। 

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फिर मैंने जेब में बचे १०० रूपये का पेट्रोल डलवाया और निकल लिया। इस घटना को हुए लगभग ६५ दिन हो चुके है फिर भी आज तक इन पेट्रोल पंप पर POS मशीन नही लगी है। 

मैंने एक स्टार्टअप कम्पनी शुरू की है, जो सोलर एनर्जी सेक्टर में काम करती है और कुछ दिन पहले इसी व्यवसाय के सिलसिले अपने पैतृक गाँव फिर आया। इस बार मुझे लगभग हर रोज पेट्रोल डलवाना होता है, परन्तु इस क्षेत्र के सभी पेट्रोल पंप पर POS मशीन के बारे में पूछने पर सब इसके बारे में मना करते है और सबका एक ही उत्तर होता है, “नही लगेगा” । 

अब मैं बैंक जाकर पैसा निकालूं कि गाड़ी में पेट्रोल भरवा सकूँ, आखिर कब तक ऐसा रहेगा? जबकि ग्रामीण इलाकों के बैंको में अभी भी मुद्रा (कैश) की दिक्कत है, कैश निकालने में अभी भी परेशानी हो रही है । 

ग्रामीण परिवेश ऐसे सुविधाओं से कब तक विमुक्त रहेगा? कैशलेस व्यवस्था का हम सभी स्वागत करते है परन्तु कुछ लोगो के वजह से ये सुविधा एक दुविधा लग रही है । 

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मैं इस पत्र को लिखने से पहले कई ट्वीट करके सम्बंधित पेट्रोलियम कंपनी और पेट्रोलियम मंत्री माननीय धर्मेन्द्र प्रधान जी को अवगत करा चुका हूँ, परन्तु इस मामले में अभी तक कोई अनुरूप फल देखने को नही मिला है। मेरा ट्वीटर हैंडल है rajeshwarsh. 

इस पत्र को अपने ब्लॉग पोस्ट के साथ साथ मैं आपके प्रत्येक महीने के रेडियो कार्यक्रम “मन की बात” के लिए भी प्रेषित कर रहा हूँ। मुझे ख़ुशी होगी, अगर इस पत्र को आप अपने रेडियो कार्यक्रम में सम्मिलित करें और भारतीय जनता के साथ साथ धनाढ्य को कैशलेस होने के लिए प्रेरित करें। 

शेष फिर....... 

पत्र: ७ 
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh) 
कुशीनगर, भारत

Wednesday, January 18, 2017

पत्र: ५ (१८ जनवरी २०१७)

पत्र: ५ (१८ जनवरी २०१७)
पत्र उनके लिए जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी के समर्थक है! 


प्रिय भाजपा समर्थको, 
नमस्कार! 
आशा है आप सभी सकुशल होंगे, और आगामी विधान-सभा चुनावों के लिए तैयार होंगे। कहते है कि सारे देश की मनोदशा उत्तर प्रदेश से होकर जाती है। और सभी राष्ट्रीय दल अपने चुनावी दाव-पेंच लगाने में जुटे हुए है। 

अभी अभी ताजा खबर मिला कि माननीय श्री एन डी तिवारी अपने जैविक पुत्र रोहित शेखर के साथ भाजपा में शामिल हो गए। वही तिवारी जी जिनकी उम्र आज लगभग इक्यानवे साल हो चुकी है और जिन्होंने एक युवा को तब अपना पुत्र माना जब सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया वो भी डीएनए टेस्ट करवा कर। खैर मैं क्या कहूँ राजनीति से मेरा प्रत्यक्ष या परोक्ष कुछ भी लेना देना नही है परन्तु जब देश एक तेज गति से विकासशील से विकसित राष्ट्र की तरफ बढ़ रहा है, ऐसे समय युवाओं को ना मौका देकर ऐसे निर्लज्ज (माफ़ करियेगा इस शब्द के लिए) को राष्ट्रीय दल में शामिल करना शोचनीय है। वैसे भी जब प्रधानमंत्री श्री मोदी जी अपने भाषणों में कुशल वक्ता के तौर पर युवाओं को मौका और एक उच्चीकृत मानसिकता से राष्ट्रहित में काम करने की बात करते है। 

जब आपके दल में ही ऐसे वृद्ध और अवगुण से परिपूर्ण (अपने पुत्र को पुत्र ना मानना, परमहिलाओं से यौन सम्बन्ध, राजभवन में यौन संतुष्टि के लिए कई महिलाओं से अंतरंग सम्बंध) राष्ट्र नेता सम्मिलित होंगे तो फिर इस देश का क्या हाल होगा? महिला सशक्तिकरण, युवाओं का साथ, नवाचार, दूर की सोचने की बात करते है ऐसे समय में ९१ साल के वयोवृद्ध ठरकी (जो ८८ साल की उम्र में शादी करता है, वो भी सर्वोच्च न्यायालय से फजीहत होने के बाद) को दल में शामिल करके कौन सा राष्ट्रहित में काम कर रहे है? 

आख़िरकार तिवारी परिवार के साथ साथ बहुगुणा जोशी परिवार, खंडूरी परिवार, आर्य परिवार के सगे-सम्बंधियों को चुनाव में उम्मीदवार बनाकर परिवारवाद की कौन सी परिभाषा बन रही है? क्या एक दल की चोली या धोती उतारकर दुसरे की पहनने से एक नपुंसक, पुरुष या महिला में परिवर्तित हो जाता है? और उसकी सोच बदल जाती है? 

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मेरे जैसे कइयों के दिमाग में ये प्रश्न कौंध रहा होगा, आखिर कौन से मामले में भाजपा दल कांग्रेस, सपा, बसपा, द्रमुक आदि दलों से अलग है? कब तक वही पुराने गणित पर गिनती करेगा? कुछ तो नवाचार की सम्भावना बनाओ। 

तब तो सबको एक और मौका मिलना चाहिए, ललित मोदी, विजय माल्या, सुब्रतो सहारा, आसाराम, अमरमणि, अमनमणि इत्यादि को भी.................... 

एक कटाक्ष: डब्लूएचओ (वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन) को एचआईवी/एड्स से होने वाले बीमारी में तिवारी कथा को शामिल कर लेना चाहिए, कि अंजान पुरुष/महिला से असुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाने पर आपका एक औलाद भी हो सकता है जो डीएनए टेस्ट से आपके कमाई से हिस्सा ले लेगा। 

शेष फिर....... 
पत्र: ४ 
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh) 
नई दिल्ली, भारत 

Monday, November 7, 2016

पत्र: १ (७ नवम्बर २०१६)

पत्र: १ (७ नवम्बर २०१६)

पत्र प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी, गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी, रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश सिंह यादव और मुख्य निर्वाचन आयुक्त डॉ. नसीम जैदी के नाम, 

महोदयों,
आशा है आप सभी सकुशल होंगे, मैं २७ साल का एक भारतीय नागरिक हूँ। जिसका बचपन एक गाँव में, पढ़ाई शहर में हुई है, रोजी रोटी के लिए नौकरी मेट्रो शहर में करते हुए अब अपने कृतियों और नवाचार को एक प्रारूप देने में लगा है। यह एक पत्र के साथ साथ आप बीती है जिसे मैं बयाँ कर रहा हूँ। अगर समय ना हो तो सीधे नीचे के दो पैराग्राफ पढ़ लीजिये, जिसमे मैंने सुझाव देने की कोशिश की है, कि आपका वक़्त बच सके और मेरी बात आप तक पहुँच सके। और अगर मन करें तो आगे के पैराग्राफ पढ़िएगा, और मेरे वास्तुस्थिति को समझिएगा।
मेरे पैदा होने से एक साल पहले ही देश में मताधिकार का प्रयोग करने की आयुसीमा घटाई गई थी, और जब मैं पैदा हुआ तो देश के राजनीतिक गलियारे में बहुत चहल पहल हो रही थी। देश के प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोपो का अम्बार था, बचपन से लेकर आज तक देश, प्रदेश, गाँव हर जगह राजनीति का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभाव पड़ा है। इवीऍम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के प्रयोग से देश के चुनाव नीति और तौर तरीके में बहुत बदलाव हुए, फिर भी वोट डालने की प्रतिशतता में बढ़ोत्तरी के लिए अभी बहुत परिवर्तन की जरुरत है। 
मैं दिल्ली में रहता हूँ और अपने गाँव पर ही मताधिकार का प्रयोग करता हूँ। मैंने आजतक के सारे चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग मैं घर जाकर करता रहा हूँ, पर अब थोड़ी मुश्किल है क्योंकि,:
२०१४ के आम चुनाव में घर जाने के लिए तत्काल टिकट लिया पर वेटिंग के कारण टिकट कैंसल हो गया। फिर भी जैसे तैसे गया, आने के लिए 'सुविधा ट्रेन' में टिकट बुक किया था। सुविधा ट्रेन अभी नई नई शुरू हुई थी, और डायनामिक प्राइसिंग का कांसेप्ट रेलवे में शुरुआत हुआ था। खैर टिकट ले लिया, जिसमे कैंसल करने का भी कोई ऑप्शन नही था। गोरखपुर से दिल्ली आने के लिए मेरा और मेरे मित्र दो लोगो का टिकट था। परन्तु मेरे मित्र किसी कारणवश यात्रा नही कर रहे थे। सुविधा ट्रेन में ज़्यादा पैसा खर्च करके टिकट लेने के बाद भी जब मैं गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर अपने कोच में चढ़ने लगा, तो कोच पूरी तरह से भरी हुई थी,मेरा सीट पर जाने को तो छोड़ो, ट्रेन में चढ़ना मुश्किल हो रहा था। साथ में सामान काम था, इसलिए जैसे तैसे धक्का मुक्की करके ट्रेन में चढ़ा और सीट तक पहुँचा। पुरे ट्रेन राजकीय पुलिस से खचाखच भरी हुई थी, मेरे अलॉटेड सीट पर पहले से ही पुलिस के बंदे बैठे हुए थे, जिनसे थोड़ा सा एडजस्ट करने को बोलने पर वो अपने वर्दी का धौस दिखाने लगे। उनको बोलने पर कि मेरे पास दो सीट के लिए टिकट है, एक सीट पर बैठे पुलिस वाले ने गाली गलौज देनी शुरू कर दी। बहुत ही दयनीय स्थिति थी, पुलिस के बन्दे हर जगह पड़े हुए थे, सारे सीट पर, कम्पार्टमेंट में चलने वाले जगह पर भी कुछ पुलिस के लोग लेटे हुए थे। रास्ते में बस्ती स्टेशन पर तो गेट ही नही खोलने दिए कि ट्रेन में कोई और यात्री ना चढ़ सके। कोच के हर कॉम्पार्टेन्ट में एक दो सवारी और १०-१२ पुलिस वाले या तो लेटे पड़े थे या फिर बैठे थे, लखनऊ पहुँचने तक मैं सामान अपने पीठ पर लादे सीट के पास खड़ा रहा। लखनऊ में पहुँचते ही ट्रेन से कुछ पुलिस वालों के उतरते थोड़ी जगह बनी तो एक पुलिस वाले ने बैठने को जगह दिया। 
Advert

वैसे भी उत्तर प्रदेश के पुलिस वालों के साथ ८० प्रतिशत नकारात्मक प्रभाव दिखा है, जबकि राजधानी दिल्ली के पुलिस वालों का ९० प्रतिशत प्रभाव सकारात्मक रहा है। 
इस बार फरवरी में होने वाले प्रादेशिक चुनाव में भी वोट देने जाना चाहता हूँ कि सेवाएं और सुविधाओं में थोड़ी तरक्की हो, ना कि फिर से गाली सुनूँ, फिर से परेशान होऊं, देश बदले, सोच बदले.......

प्रधानमंत्री कार्यालय, रेलवे मंत्रालय, गृह मंत्रालय, निर्वाचन आयोग और उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री कार्यालय के कर्ता-धर्ता इन बिंदुओं पर ध्यान दीजियेगा:-
  • चुनाव की तिथि चार महीने पहले घोषित किया जाए कि अधिकाधिक नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें, जब तक कि किसी इलेक्ट्रॉनिक मत (वोट) का प्रारूप ना आ जाए, क्योंकि अग्रिम रेल टिकेट लेने की समय सीमा चार महीने (१२० दिन) हैं। 
  • अतिरिक्त ट्रेन चलाई जाए, मेट्रो शहरो से क्षेत्र के आस पास, चुनाव तिथि के नजदीक, कि मतदाता सुविधानुसार समय पर पहुँच सके और मताधिकार का प्रयोग कर सके।  
  • चुनाव में ड्यूटी पर लगे राजकीय पुलिस, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को बस की बजाय रेल सुविधा दिया जाए कि वो अपने घर या स्थानीय ड्यूटी पर जल्दी पहुँच सके। क्योंकि इनके भयावह स्वरुप को झेलना या यूँ कहें समझ पाना बहुत मुश्किल है। क्योंकि क्या है ना, इस देश में खाकी और खादी के सफ़ेद कपड़ो में बस दिखने को सादगी है। 
  • इलेक्ट्रॉनिक वोट का कांसेप्ट जल्दी से लागू किया जाए कि मत प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हो। 
शेष फिर....... 

पत्र: १ 
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh)
नई दिल्ली, भारत 


Thursday, May 26, 2016

A Lesson for me and every one

A Lesson for me and every one


It was the summer of 1990. As Indian Railway (Traffic) Service probationers, my friend and I travelled by train from Lucknow to Delhi. Two MPs were also travelling in the same bogie. That was fine, but the behaviour of some 12 people who were travelling with them without reservation was terrifying. They forced us to vacate our reserved berths and sit on the luggage, and passed obscene and abusive comments. We cowered in fright and squirmed with rage. It was a harrowing night in the company of an unruly battalion; we were on edge, on the thin line between honour and dishonour. All other passengers seemed to have vanished, along with the Travelling Ticket Examiner.

We reached Delhi the next morning without being physically harmed by the goons, though we were emotionally wrecked. My friend was so traumatised she decided to skip the next phase of training in Ahmedabad and stayed back in Delhi. I decided to carry on since another batchmate was joining me. (She is Utpalparna Hazarika, now Executive Director, Railway Board.) We boarded an overnight train to Gujarat’s capital, this time without reservations as there wasn’t enough time to arrange for them. We had been wait-listed.

We met the TTE of the first class bogie, and told him how we had to get to Ahmedabad. The train was heavily booked, but he politely led us to a coupe to sit as he tried to help us. I looked at the two potential co-travellers, two politicians, as could be discerned from their white khadi attire, and panicked. “They’re decent people, regular travellers on this route, nothing to worry,” the TTE assured us. One of them was in his mid-forties with a normal, affectionate face, and the other in his late-thirties with a warm but somewhat impervious expression. They readily made space for us by almost squeezing themselves to one corner.

They introduced themselves: two BJP leaders from Gujarat. The names were told but quickly forgotten as names of co-passengers were inconsequential at that moment. We also introduced ourselves, two Railway service probationers from Assam. The conversation turned to different topics, particularly in the areas of History and the Polity. My friend, a post-graduate in History from Delhi University and very intelligent, took part. I too chipped in. The discussion veered around to the formation of the Hindu Mahasabha and the Muslim League.

The senior one was an enthusiastic participant. The younger one mostly remained quiet, but his body language conveyed his total mental involvement in what was being discussed, though he hardly contributed. Then I mentioned Syama Prasad Mookerjee’s death, why it was still considered a mystery by many. He suddenly asked: “How do you know about Syama Prasad Mookerjee?” I had to tell him that when my father was a post-graduate student in Calcutta University, as its Vice-Chancellor he had arranged a scholarship for the young man from Assam. My father often reminisced about that and regretted his untimely death [in June 1953 at the age of 51].

The younger man then almost looked away and spoke in a hushed tone almost to himself: “It’s good they know so many things ...”

Suddenly the senior man proposed: “Why don’t you join our party in Gujarat?” We both laughed it off, saying we were not from Gujarat. The younger man then forcefully interjected: “So what? We don’t have any problem on that. We welcome talent in our State.” I could see a sudden spark in his calm demeanour.

The food arrived, four vegetarian thalis. We ate in silence. When the pantry-car manager came to take the payment, the younger man paid for all of us. I muttered a feeble ‘thank you’, but he almost dismissed that as something utterly trivial. I observed at that moment that he had a different kind of glow in his eyes, which one could hardly miss. He rarely spoke, mostly listened.

The TTE then came and informed us the train was packed and he couldn’t arrange berths for us. Both men immediately stood up and said: “It’s okay, we’ll manage.” They swiftly spread a cloth on the floor and went to sleep, while we occupied the berths.

What a contrast! The previous night we had felt very insecure travelling with a bunch of politicians, and here we were travelling with two politicians in a coupe, with no fear.

The next morning, when the train neared Ahmedabad, both of them asked us about our lodging arrangements in the city. The senior one told us that in case of any problem, the doors of his house were open for us. There was some kind of genuine concern in the voice or the facial contours of the otherwise apparently inscrutable younger one, and he told us: “I’m like a nomad, I don’t have a proper home to invite you but you can accept his offer of safe shelter in this new place.”

We thanked them for that invitation and assured them that accommodation was not going to be a problem for us.

Before the train came to a stop, I pulled out my diary and asked them for their names again. I didn’t want to forget the names of two large-hearted fellow passengers who almost forced me to revise my opinion about politicians in general. I scribbled down the names quickly as the train was about to stop: Shankersinh Vaghela and Narendra Modi.

I wrote on this episode in an Assamese newspaper in 1995. It was a tribute to two unknown politicians from Gujarat for giving up their comfort ungrudgingly for the sake of two bens from Assam. When I wrote that, I didn’t have the faintest idea that these two people were going to become so prominent, or that I would hear more about them later. When Mr. Vaghela became Chief Minister of Gujarat in 1996, I was glad. When Mr. Modi took office as Chief Minister in 2001, I felt elated. (A few months later, another Assamese daily reproduced my 1995 piece.) And now, he is the Prime Minister of India.

Every time I see him on TV, I remember that warm meal, that gentle courtesy, caring and sense of security that we got that night far from home in a train, and bow my head.

(I copied this content from The Hindu. The author is General Manager of the Centre for Railway Information System, Indian Railways, New Delhi. leenasarma@rediffmail.com)