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Sunday, February 19, 2017

पत्र: ६ (१९ फरवरी २०१७)

पत्र: ६ (१९ फरवरी २०१७)

पत्र चुनावी दंगल के उम्मीदवारों और उनके स्टार प्रचारको को, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चुनावी दंगल में सम्मिलित है।


माननीय नेताओ और नेत्रियों,
सादर नमस्कार,

आशा है आप जहाँ भी होंगे सकुशल होंगे और प्रजातंत्र में राजतंत्र जैसे सुख-सुविधाओं का जबरदस्त उपभोग कर रहें होंगे। इस पत्र को लिखते वक्त देश के बड़े जनसँख्या वाले राज्य में विधानसभा चुनाव चल रहा है और सभी दल विरोधी दलों की बखिया उधेड़ने में लगे हुए है। इन्ही अधोलिखित चुनाव प्रचार में भाषणों, कथनों, कृत्यों, कारनामों, साक्ष्यो इत्यादि को ध्यान में रखते हुए इसे लिख रहा हूँ, आशा है ये पत्र आपके दिलोदिमाग़ पर कुछ प्रभाव डाले और आप आने वाले दिनों मे देशहित में ज्यादा सोचे।

आजकल के डिजिटल युग में सब नेता लोग एक दूसरे से अच्छा दिखने के होड़ में लगे हुए है। किसी दल का काम बोलता है तो कोई परिवर्तन चाहता है। किसी दल को जाति-धर्म के आधार पर वोट चाहिए कि आलिशान मकान बनवा लें तो किसी के लिए परिवार में ही नेताओं की लंबी फ़ेहरिश्त चाहिए। ये लोग शायद घर पर भी नेतागिरी करना चाहते है या फिर इनको विधानसभा-संसद में पारिवारिक माहौल चाहिए।

काम बोलने से याद आया, अगर काम ही बोलता है तो गठबंधन क्यों? इसी गठबंधन का एक दल तो ऐसा है जो गठबंधन के दूसरे दल के ख़िलाफ़ कुछ दिनों पहले लोगो के बीच जा-जाकर खटिया बिछा कर विरोध कर रहा था, पर जब खटिया ही लूट ली गई तो मरता क्या ना करता, कैरियर पर बैठ लिए। वैसे भी इस दल के युवा(केवल कहने के लिए युवा) नेता जो उम्र के मामले में तो अर्धशतक लगाने वाले है, परन्तु अभी तक इनसे कभी आधिकारिक तौर पर खटिया चरमराने-टूटने का खबर नही मिला है।

वैसे तो चुनाव आयोग ने कमर कस कर रखी है, नियमो के अनुसार पालन कराने के लिए फिर भी भारतीय हमेशा जुगाड़ निकाल ही लेते है। कुछ उम्मीदवारों ने तो अपने ही खिलाफ एक या एक से अधिक उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे है जिससे कि तथाकथित उम्मीदवार को चुनाव प्रचार के लिए कई वाहनों, प्रचारको का इंतेजाम हो सके। इसकी आधिकारिक तौर पर पुष्टि शायद ही कोई कर सके, परन्तु इस चुनाव दंगल में ये सब हो रहा है।

वैसे तो आप लोगो के कारनामे भी पढ़कर परमानन्द की अनुभूति होती है। ये तो चुनावी दंगल है, और जनप्रतिनिधि बनने के लिए आप लोगो में से अधिकतर ने अपने जीवनकाल में ऐसे ऐसे कृत्य किये होंगे जिसे सामाजिक और क़ानूनी तौर पर वैध नही माना जाता फिर भी आप लोग महान है। आपके लिए सब कुछ छूट है, चाहे जोर जबरदस्ती करे, बलात्कार करे, क़त्ल करे या अतिक्रमण करे, आदि आदि कृत्य अनादि काल से आप लोगो के लिए जायज है। 

आप लोग अपने इलाके में एक अलग ही सरकार चलाने लगते हो, वो चाहे लोगो से वसूली करनी हो या फिर चौराहों पर वसूली, ठेका दिलवाना हो या फिर किसी को ठोक पीट कर ठीक कराना हो। 

आप लोग पुलिस को तो मुट्ठी में लेकर चलते है, जब चाहे जैसा चाहे मौका-ए-वारदात पर उनका खुल कर इश्तेमाल कर लेते है।

चाहे जैसा माहौल हो, चाहे आप जेल में हों या घर पर, आप लोगों की सेवा भाव आपके भरे पुरे खाते पीते शरीर में दिखता है। वोट करने वाली जनता पतली दुबली ही रहती है परन्तु आप लोगो की बलिष्ठ शरीर आपके सेहत का एक झलक पेश करता है। 

वैसे भी आप लोगो की वजह से ही तो जनता की छद्म सेवा की जाती है, वरना तो सारे सरकारी नौकर (माफ़ करियेगा नौकरी करने वालों को नौकर कह रहा हूँ) कर्मचारी निठ्ठले है, जिनके कानों पर जूं नही रेंगती। 

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आप ही लोगो की वजह से तो किसान खेत में फसल उगाता है वरना तो वो भूखे मर जाएगा। देश के एक बड़े मंत्री ने चुनावी प्रचार में कहा, "हम इस प्रदेश के किसानों की तकदीर बदल देंगे", उनके इस कथन पर एक किसान केवल यही कहना पसंद करेगा, "बेटा जिस विश्वविद्यालय से जिस समय तुमने राजनीति शुरू किया, वो क्षेत्र उस समय गन्ना उत्पाद में विश्व भर में प्रथम स्थान पर था। पर तुम तो बेटा प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने, देश के केंद्रीय मंत्री भी बन गए पर आज चीनी आयात कर रहे हो। तुमसे ना बेटा, कभी ना हो पाएगा। इसीलिए बेटा हम कह रहे है तुम अपने बेटे का तकदीर केवल बदलो और उसको राजनीति में स्थापित करवाओ-खिलाओ बाकि हमारी तकदीर क्या घंटा बदलोगे? तुम्हारी औकात नही है| एक बात है देश के प्रहरी पर भरोसा है, जो देश की तरक्की में तार्किक ध्यान दे रहा है।"

आप लोग भविष्य को ध्यान में रखते हुए अपने परिवार के सात पीढ़ियो के खर्च के लिए कमाई कुछ सालों में कर जाते हो और देश को उसी हालात में रहने को मजबूर करते हो| अगर साफ़ शब्दो में बोला जाये, तो यही कि तुम लोग अपनी सोच बढ़ा कर राष्ट्रहित में काम भी करो कब तक एक ही बंदा सोचेगा और एक्शन लेगा।

शेष फिर....... 
पत्र: ६
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh) 
गोरखपुर, भारत

Friday, November 11, 2016

पत्र: २ (११ नवम्बर २०१६)

पत्र: २ (११ नवम्बर २०१६)
पत्र दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल के नाम,
महोदय,
आशा और जैसा कि ट्विटबाजी और आपके वीडियो से लग रहा है आप सकुशल है। खैर वैसे भी जबसे मोदी जी ने अचानक से ५०० और १००० रूपये के नोट बैन किया  आपके चेहरे पर हवाईयाँ उड़ गई थी, तबियत तो ठीक है ना?
खैर यहाँ कुछ साल पहले आपके कृत्यों, वादों और चर्चाओ का बहुत बखान हुआ करते थे। 
सब के सब बोलते थे, क्या बंदा है यार! 
वहीं आज सभी बोलते हो क्या बंदा है यार?
खैर ये सब छोड़िये, ये बताइये आप अभियंता होकर, देश (देश तो आपके हाथ में नही) या  प्रदेश में तकनीक, अभियांत्रिकी, औद्योगिक या फिर जनमानस के जीवनशैली में कितने नवाचार पर काम किये है? अभियांत्रिकी का मूल उद्देश्य तो आप जानते ही होंगे। जनमानस की जीवनशैली सुधारने की बजाय आप अपने जीवन शैली को ही अग्रसर करने में लगे हुए हैं। 
पिछले महीने पड़ोसी देश पर हुए सर्जीकल स्ट्राइक पर भी आपके फेसबुक लाइव/ यूट्यूब वीडियो में आप उन लोगो के प्रश्नों प्रधानमंत्री महोदय के सामने उठा रहे है जो आपके अपने देश की विरोध करते है। 
कल के वीडियो में भी आप प्रधानमंत्री महोदय को कोस रहे थे, जैसे कि किसी ने आपकी रातों रात जेब काट ली हो, या आपकी तिज़ोरी लूट ली हो। आपकी भाषा भी इतने गिरे दर्जे की हो गई है कि क्या कहें! आप वोट के लिए इतने नीचे गिर जाएंगे, कभी सोचा भी ना था।
आपने बोला, कि देश की आम आदमी इसमें पिस रही है, कैसे आम आदमी पिस रही है?
देश की अधिकतर जनता अपने पैसे या तो बैंक में रखती है या फिर कहीं निवेश की होती है। घर में नोट रखना बहुत पुरानी बात है, वैसे भी आम जनता कभी लाखों रुपये नहीं रखती। वो गिने चुने काम भर के रुपये पास रखती है। 
आपने बोला, शादियों में लोग परेशान हो रहे है, पर आपने कभी सोचा है, दहेज़ का लेन-देन कितना होता है?
केटरर्स, टेंट वाले कैश में अगर काम करते है तो, उनकी कमाई भी दो-तीन लाख से ऊपर होती होगी, और वो आईटीआर भरते होंगे, फिर दिक्कत किस बात की?
अम्बानी, अडानी के बारे में बोला, बहुत अच्छे! पर कभी सोचा माल्या, ललित मोदी, कलमाड़ी, कनिमोझी और ए राजा नही बचे फिर तो ये भी फसेंगे ही किसी ना किसी रोज।
एक कहावत मशहूर है, 'लोग खुद जैसा होते है वैसा सोचते है'। कहीं फिर आप तो ऐसे नही?

मैं भारतीय राजनीति का पिछले दो दशकों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भुक्तभोगी रहा हूँ। किसान का लड़का हूँ, केंद्र सरकार और प्रादेशिक सरकार के लड़ाई में बहुत पिसे है, खेतों में खड़ी फसल कभी चीनी मिल बंद हो जाने से सूख गई तो कभी मौसम की मार से। बारिश ने फसलों को बहा दिया, तो कभी सूखे ने अनाज लगने ही नहीं दिया। मानवीय मजदूरी, पेट्रोलियम, खादों के दाम बढ़ा दी गई पर आज भी अनाजों के दाम अपेक्षा में कम है। आजादी के ६९ साल बाद आज भी गांव में मानवीय मूलभूत सुविधाओं से विमुख है पर मोदी सरकार की तरफ से कोशिश की तारीफ करनी होगी। आज ना सही, पर कल तो देश विकासशील से विकसित की श्रेणी में आ जाएगा। 
केंद्र सरकार को लिखे ईमेल का प्रति उत्तर मिल जाता है पर आपके सरकार और आपको लिखे ईमेल का कोई प्रतिउत्तर नही मिलता| अब इसे क्या कहें? आपको एक पत्र लिखा था ३ मई २०१६ को 'हैल्लो मुख्यमंत्री जी!' एक ट्रैफिक सिग्नल को दुरुस्त कराने के लिए फिर भी आप या आपके विभागों की तरफ से कोई समाधान नही। 

आप कभी खुद से ऊपर उठ कर देश को पहले रख कर नेतृत्व करो, फिर देखो देश कैसा हो जाता है। माननीय मुख्यमंत्री जी, केवल खुद के महत्वकांक्षा के लिए ऐसे व्यक्तव्य देकर युवाओं के मनोबल पर प्रतिघात ना करें। अगर फिर भी आप जैसे पढ़े लिखे मुख्यमंत्री का ये हाल है तो उल्लुओं जैसे नेताओ की जात ही कभी कभी अच्छी लगती है। 
वैसे देश की राजनीति में एक पप्पू तो है ही, अब एक गुड्डू की जरुरत थी, जो लगभग पूरी हुई लगती है।
शेष फिर.......
पत्र: २
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh)
नई दिल्ली, भारत