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Tuesday, May 15, 2012

परिवार और प्यार



आज १५ मई २०१२, विश्व परिवार दिवस है, यानि "वर्ल्ड'स फॅमिली डे", आप सभी को मेरी तरफ से शुभकामनाये, आप अपने परिवार के साथ सुखी, समपन्न, समृधि, सफल जीवन का आनंद ले......


ये बहुत अच्छा है कि इसी बहाने मै अपनी बात रख रहा हूँ, जो काफी दिनो से मेरे दिमाग में चल रही थी, कौध रही थी | यहाँ मै इक सवाल करना/पूछना/रखना चाह रहा हूँ (अपने बड़ो से, या असल कहिये कि आप बड़ो से इसका सीधा सरोकार है) और बताना चाह रहा हूँ {अपने हमउम्र भाइयो और बहनो से, क्यूकि हमारे दिमाग में कुछ गलतफहमिया है, या ये कहिये कि हम कुछ पथभ्रम में है (अगर बहन शब्द बुरा लगे तो माफ़ी चाहूँगा)}:-

हम सभी जानते है कि परिवार साधारणतया पति, पत्नी और बच्चो के समूह को कहते हैं, परन्तु हम भारतीयो के परिवार में तीन या तीन से अधिक पीढियो के व्यक्तियो का समूह होता है | आजकल की दुनिया (समय) में हम खुद को आधुनिक (मोडर्न) कहते है, अंग्रेजी में बाते करना हमारा सौभाग्य बनता है, लो-वेस्ट जींस पहनने से नही कतराते, पार्टियो में या वैसे भी सिगरेट, शराब (व्हिस्की कहना सही होगा) पीना स्टेटस की बात होती है पर, जब कोई लड़का खुद की पसंद की लड़की से शादी करने की बात करता है तो समाज, रिश्तेदार की समझ पता नही कहा से आ जाती है!!!

अब तक तो आप समझ ही गये होँगे कि मै किस मसले के बारे में बात करना चाह रहा हूँ:- जी हाँ! मै अपने गोरखपुर में रहने वाले पढ़े-लिखे सभ्य कहलाने वाले बुद्धिजीवी वर्ग की बात कर रहा हूँ, जो समझ में खुद को इक पढ़ा-लिखा समझदार नागरिक मानते है, वो परिवार के लिए बहुत ही मेहनत करते है | बच्चो को अच्छे से अच्छे स्कूल में एडमिशन करवाते है, दिन भर ऑफिस, खेत, व्यापार में काम करते है, बच्चो को अच्छी से अच्छी सुविधाए देते है [शायद यहाँ आपमें से कुछ लोग मेरे विचारो से सहमत ना हो, पर हर इक माँ-बाप अपने बच्चो को अच्छा-से-अच्छा शिक्षा, सुविधा देने का प्रयास ज़रूर करते है, परन्तु कुछ अभागो के नसीब में ये नही होता {मेरा अभागा कहने का मतलब साफ़ यही है कि कुछ (बहुत कम) माँ बाप ऐसे भी होते है जो आर्थिक सम्पन्नता होने पर भी अपने बच्चो को उनके मूल आवश्यकताओ से दूर रखते है} पर यहाँ मै संपन्न वर्ग के अधिकतर लोगो की बात कर रहा हूँ जिनको सुविधाए दी जाती है, या जो सुविधाए देते है] | 

पढ़ने-लिखने के परिवार लड़के/लड़की के वर/वधु बनने का सपने देखने लगते है और उनको इस पारिवारिक-पवित्र-सूत्र बंधन में बांधने के लिए तत्पर हो जाते है, उनका ये दायित्व होता है, जिसको वो अपनी कार्यकुशलता से करना चाहते है, और करते भी है (मै मानता हूँ, और उनकी इस कुशलता की प्रशंसा भी करता हूँ) | 

पर सबसे मुश्किल तब होता है जब उनका लड़का/लड़की (जो विजातीय लड़की या लड़के से प्यार करने वाले) की शादी की जाती है (या करने की तैयारी की जाति है), तो सम-जाति-बिरादरी का ख्याल सबसे पहले आता है, मै यहाँ स्पष्ट करना चाहूँगा कि यहाँ मै केवल प्यार करने वाले व्यक्ति (लड़का/लड़की दोनो) की बात करना चाहूँगा, लड़के-लड़की से उसके बचपन में {२४ साल से पहले, (क्यूंकि उसके पहले शादी होना तो मुश्किल ही होता है)} कहा/बताया जाता है की वो जिस लड़की/लड़के को पसंद करेगा/करेगी, उसका/उसकी विवाह उसी लड़की/लड़के से करा दी जाएगी, हो जाएगी | परन्तु जब वक्त आता है अपने बातो को रखने को, तो, वो अपने लड़के/लड़की की शादी के लिए सम-जाति की तरफ चले जाते है, या यो कहिये कि उनकी शादी सम-जाति में ही करा दी जाती है, उनके प्यार को भुलवा दिया जाता है या फिर उनके प्यार का, भावनाओ का सरेआम क़त्ल कर दिया जाता है | जब लड़का/लड़की उनसे अपने दिल की बात बताता है, समझाना चाहता है, कहना चाहता है तो वो बुद्धिजीवी, पढ़ा-लिखा, सभ्य वर्ग (हमारे पूज्यनीय, आदरणीय) सीधे इन बात पर ही आते है, ये तर्क रखते है हमारे सामने:-

१. वो अलग बिरादिरी की है, हमारी रहन-सहन कैसे सीख पायेगी?? 
२. तुमको पढ़ाने-लिखने के लिए हमने क्या कुछ नही किया? इतने पैसे खर्च किये तुम्हारे पढाई पर (लडको के मामलो में अक्सर सुनने को मिलता है) |
३. समाज की सोचो, लोग क्या कहेंगे? 
४. तुम्हारे परिवार में पहले किसी ने पहले ऐसा नही किया, तुम सोच भी कैसे सकते हो??
५. तुमसे छोटी तुम्हारी भाई-बहने है, उनपर क्या असर पड़ेगा??
६. उस लड़के/लड़की के लिए तुम हमे छोड़ रहे हो?

वो भी जानते है कि इन तर्कों का कोई महत्व नही है, खासकर उन्ही की अपनी व्यक्तिगत सोच में भी पर समाज को ज्यादा सोचते है | और आखिर में जब लड़का या लड़की उनको कहते है की वो अपनी मर्ज़ी का करेंगे तो पूज्यनीय बड़े लोग सीधे सम्बन्ध तोड़ने की बात पर आ जाते है| और उनका यही उत्तर होता है "जब अपनी ही करनी है तो हमसे क्यू कह रहे हो, जाओ जो मान में आये करो, पर आज के बाद हमारी शक्ल भी देखने नही आना, आज से हम तुम्हारे लिए मर गये |" जबकि वहा पर लड़का या लड़की कोई भी अपने परिवार को छोड़ने कि बात भी नही करता है, या परिवार छोधने की इक सोच भी अन्दर तक झकझोर देती है | 

मै अपने आदरणीयो से ये प्रश्न करना चाहता हूँ कि, "क्या वजह है कि इतने आधुनिकता में जीते हुए भी हमारे पूज्यनीय ऐसा करते है, समाज का डर अपने बच्चे के प्यार से बढ़कर है या फिर उन्हें अपने बच्चो के पसंद पर भरोशा नही होता?"

और मै अपने हमउम्र और स्नेहिल छोटो से चाहूँगा कि वो भी अपना विचार रखें, शायद हमे कुछ नया जानने/सीखने को मिल जाये|


नोट:- ये पूरा लेख मैने खुद तैयार किया है, या यो कहिये मेरे दिमाग के किसी कोने में बैठे एक लेखनी का कमाल है जो कुछ बुद्धिजीवियो के सोच को समझना चाहता है, या फिर किसी के दर्द का उल्लेख है, कटाक्ष है............ मैंने अपने शब्दो को आपके सामने रखने में काफी एहतियात रखा है और अगर इसके बाद भी कोई त्रुटी रह गयी हो तो माफ़ी चाहूँगा.........

यदि कोई टिपण्णी करना, सुझाव देना चाहते है तो ज़रूर लिखे, आपके शब्दो का इंतज़ार है |

परिवार और प्यार
सप्रेम, 
राजेश्वर सिंह 'राज्श'
www.rajeshwarsh.blogspot.in