Sunday, December 25, 2016

पत्र: ३ (२५ दिसंबर २०१६)

पत्र: ३ (२५ दिसंबर २०१६)


पत्र टीवीऍफ़ के संस्थापक अरूणभ कुमार के नाम!

नमस्कार अरुणभ!
जब आप अपने सपनों को जीने के लिए, एक उड़ान भरने के लिए धीरे धीरे पग को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे होते है तो, आप अपने अपने क्षेत्रो में सिद्ध महापुरुषों के बारे में पढ़ते है या फिर जानने की कोशिश कर रहे होते है। उनमे से कई महापुरुष गृहीत शिक्षा के इतर जाकर समाज के लिए एक नए दशा-दिशा का स्थापना कर रहे होते है या कर चुके होते है।

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 विद्वजन, विचारक, समाज सुधारक, अधिनायक सब अपने विशिष्ट गुण के कारण इतिहास के लिए एक नया अध्याय बनाते है, जिनसे आने वाली पीढ़ी सीखती है और समाज को आगे बढ़ाने के लिए अपना उत्कृष्ट देती है। टीवीऍफ़ के संस्थापक श्री अरुणभ कुमार (The Qutiyapa Guy) जी आप भारतवर्ष के प्रगतिशील युवाओं के लिए आदर्श बन चुके है। आपके समूह का मनोरंजन क्षेत्र में बहुआयामी कृत्य गुणवत्ता, विशेषता के आधार पर उत्कृष्ट और उत्तम होते है। टीवीऍफ़ के प्रणेता समूह में अधिकांशतः देश के नामी तकनीकी संस्थानों से उपाधिधारक है, शायद इसलिए उच्च कोटि का गुणवत्ता रखकर इस प्रवाह को उत्कृष्ट बनाए हुए है।

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टीवीऍफ़ का टैग लाइन है, "टीवी मर चुका है, हमारे कहानियाँ नहीं", जो आपके संस्था के बारे में बहुत कुछ बोलता है। आपके कुछ उवाचों में हमने आपके संघर्ष की कहानी सुनी है। आपने पिछले कुछ सालों में कई उत्कृष्ट वीडियो श्रृंखला बना दिए, जो समय सीमा के मामले में बॉलीवुड कथा चित्रो (Feature Films) के अनुरूप होंगे परन्तु गुणवत्ता में उनसे बेहतर है। टीवीऍफ़ द्वारा व्यक्त, उत्पादित श्रृंखला जैसे- परमानेंट रूममेट्स, पिचर्स, ट्रिपलिंग, बेयर्ली स्पीकिंग विथ अर्नब, चाय सुट्टा क्रोनिकल, दारू पे चर्चा, टेक कन्वर्सेशन विथ डैड, ह्यूमरोसली योर्स इत्यादि सारे प्रकरण में युवा कहीं ना कहीं खुद को जोड़ लेता है। संस्थापको का तकनीकी संस्थान उपाधिधारक होने के कारण इनके शुरू के वीडियो श्रृंखला अभियांत्रिकी, तकनीकी और प्रबंधन संस्थान के पुरातन छात्रों के लिए अपने महाविद्यालय की यादगार वीडियो जैसे लगती है, जो उनके स्मृतिपटल कुछ संकुचन के साथ साथ आनंद का अनुभूति कराती है।

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परन्तु 'टीवीऍफ़' के मूल वीडियो श्रृंखला (Original Video Series) 'परमानेंट रूममेट्स' में 'तान्या' और 'मिकेश' के गैर-पारंपरिक रिश्ते में सब कुछ है, जिसमे मानवीय भावनाओं को बहुत करीने से उलझते, सुलझते, मिलते, बिछुड़ते, रोते, हँसाते दिखाया गया है।

"पिचर्स" में 'नवीन', 'योगेंद्र', 'जितेंद्र' और 'सौरभ' के हिम्मत को दिखाया गया है, जिसमे चार नव साहसी, उद्यमी बनने के लिए कई कष्टों को झेलते, जूझते हुए आगे बढ़ते है। ये श्रृंखला हमारे लिए एक चुटकी (Pinch) जैसे है।

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"ट्रिपलिंग" में 'चन्दन', 'चंचल' और 'चितवन' एक जैसे परवरिश से होकर भी तीन तरह के अलग-अलग दिक्कतों में एक दूसरे के करीब आते है। तीन भाई बहनों के जीवन में आए उतार चढ़ाव के साथ एक सफ़र को अप्रतिम तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

आजकल प्रसारित हो रहे 'ह्यूमरोसली योर्स' प्रकरण जिसमे एक व्यक्ति 'विपुल' के सामने आने वाले कठिनाइयों और समाधान के साथ साथ 'काव्या' के साथ प्रेम प्रलाप, टीवीऍफ़ समूह के गुणवत्ता और परिश्रमी होने का सबूत देता है।

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आशा है ऐसे ही उच्च कोटि के संग्रह देखने के साथ साथ विज्ञान परिकल्पना (Science Fiction) आधारित वीडियो भी देखने को मिलेगा।

धन्यवाद अरुणभ!
शेष फिर........

पत्र: ३
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh)
नई दिल्ली, भारत

Friday, November 11, 2016

पत्र: २ (११ नवम्बर २०१६)

पत्र: २ (११ नवम्बर २०१६)
पत्र दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल के नाम,
महोदय,
आशा और जैसा कि ट्विटबाजी और आपके वीडियो से लग रहा है आप सकुशल है। खैर वैसे भी जबसे मोदी जी ने अचानक से ५०० और १००० रूपये के नोट बैन किया  आपके चेहरे पर हवाईयाँ उड़ गई थी, तबियत तो ठीक है ना?
खैर यहाँ कुछ साल पहले आपके कृत्यों, वादों और चर्चाओ का बहुत बखान हुआ करते थे। 
सब के सब बोलते थे, क्या बंदा है यार! 
वहीं आज सभी बोलते हो क्या बंदा है यार?
खैर ये सब छोड़िये, ये बताइये आप अभियंता होकर, देश (देश तो आपके हाथ में नही) या  प्रदेश में तकनीक, अभियांत्रिकी, औद्योगिक या फिर जनमानस के जीवनशैली में कितने नवाचार पर काम किये है? अभियांत्रिकी का मूल उद्देश्य तो आप जानते ही होंगे। जनमानस की जीवनशैली सुधारने की बजाय आप अपने जीवन शैली को ही अग्रसर करने में लगे हुए हैं। 
पिछले महीने पड़ोसी देश पर हुए सर्जीकल स्ट्राइक पर भी आपके फेसबुक लाइव/ यूट्यूब वीडियो में आप उन लोगो के प्रश्नों प्रधानमंत्री महोदय के सामने उठा रहे है जो आपके अपने देश की विरोध करते है। 
कल के वीडियो में भी आप प्रधानमंत्री महोदय को कोस रहे थे, जैसे कि किसी ने आपकी रातों रात जेब काट ली हो, या आपकी तिज़ोरी लूट ली हो। आपकी भाषा भी इतने गिरे दर्जे की हो गई है कि क्या कहें! आप वोट के लिए इतने नीचे गिर जाएंगे, कभी सोचा भी ना था।
आपने बोला, कि देश की आम आदमी इसमें पिस रही है, कैसे आम आदमी पिस रही है?
देश की अधिकतर जनता अपने पैसे या तो बैंक में रखती है या फिर कहीं निवेश की होती है। घर में नोट रखना बहुत पुरानी बात है, वैसे भी आम जनता कभी लाखों रुपये नहीं रखती। वो गिने चुने काम भर के रुपये पास रखती है। 
आपने बोला, शादियों में लोग परेशान हो रहे है, पर आपने कभी सोचा है, दहेज़ का लेन-देन कितना होता है?
केटरर्स, टेंट वाले कैश में अगर काम करते है तो, उनकी कमाई भी दो-तीन लाख से ऊपर होती होगी, और वो आईटीआर भरते होंगे, फिर दिक्कत किस बात की?
अम्बानी, अडानी के बारे में बोला, बहुत अच्छे! पर कभी सोचा माल्या, ललित मोदी, कलमाड़ी, कनिमोझी और ए राजा नही बचे फिर तो ये भी फसेंगे ही किसी ना किसी रोज।
एक कहावत मशहूर है, 'लोग खुद जैसा होते है वैसा सोचते है'। कहीं फिर आप तो ऐसे नही?

मैं भारतीय राजनीति का पिछले दो दशकों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भुक्तभोगी रहा हूँ। किसान का लड़का हूँ, केंद्र सरकार और प्रादेशिक सरकार के लड़ाई में बहुत पिसे है, खेतों में खड़ी फसल कभी चीनी मिल बंद हो जाने से सूख गई तो कभी मौसम की मार से। बारिश ने फसलों को बहा दिया, तो कभी सूखे ने अनाज लगने ही नहीं दिया। मानवीय मजदूरी, पेट्रोलियम, खादों के दाम बढ़ा दी गई पर आज भी अनाजों के दाम अपेक्षा में कम है। आजादी के ६९ साल बाद आज भी गांव में मानवीय मूलभूत सुविधाओं से विमुख है पर मोदी सरकार की तरफ से कोशिश की तारीफ करनी होगी। आज ना सही, पर कल तो देश विकासशील से विकसित की श्रेणी में आ जाएगा। 
केंद्र सरकार को लिखे ईमेल का प्रति उत्तर मिल जाता है पर आपके सरकार और आपको लिखे ईमेल का कोई प्रतिउत्तर नही मिलता| अब इसे क्या कहें? आपको एक पत्र लिखा था ३ मई २०१६ को 'हैल्लो मुख्यमंत्री जी!' एक ट्रैफिक सिग्नल को दुरुस्त कराने के लिए फिर भी आप या आपके विभागों की तरफ से कोई समाधान नही। 

आप कभी खुद से ऊपर उठ कर देश को पहले रख कर नेतृत्व करो, फिर देखो देश कैसा हो जाता है। माननीय मुख्यमंत्री जी, केवल खुद के महत्वकांक्षा के लिए ऐसे व्यक्तव्य देकर युवाओं के मनोबल पर प्रतिघात ना करें। अगर फिर भी आप जैसे पढ़े लिखे मुख्यमंत्री का ये हाल है तो उल्लुओं जैसे नेताओ की जात ही कभी कभी अच्छी लगती है। 
वैसे देश की राजनीति में एक पप्पू तो है ही, अब एक गुड्डू की जरुरत थी, जो लगभग पूरी हुई लगती है।
शेष फिर.......
पत्र: २
राजेश्वर सिंह (#rajeshwarsh)
नई दिल्ली, भारत