Tuesday, July 12, 2016

कश्मीर को नजर लगी?


आज से ठीक पाँच साल पहले ६ जुलाई की सुबह मैं कश्मीर घाटी में पहली बार गया था, एक मोबाइल नेटवर्क को स्थापित करने वाले टीम का हिस्सा बनकर| ऐसी खुबसूरत वादी देखकर मैं मोहित हो गया था, अपने उस वक्त के भावनाओ वाकयों को लिखने के लिए वक्त चाहिए, जिसकी कमी है| परन्तु एक प्रश्न बार बार कौंध रही है, क्या हो रहा है कश्मीर को जिसके बारे में सही कहा गया है "Gar firdaus bar-rue zamin ast, hami asto, hamin asto, hamin ast"

बुरहन वानी का आतंकवादिओं से मेल और फौजिओं से मुठभेड़ में मौत, एक बार सोचने पर मजबूर करता है, ये संगठन काम कैसे करता है? 
कौन करता है पीर-पंजाल पहाड़ी श्रृंखला में अशांति फैलाने का कृत्य?
कौन करता है बुरहन वानी, जाकिर भट, वासिम मल्ला आदि जैसे लाखों का ब्रेनवाश?


डल झील के पास किसी भी रेस्टोरेंट में पता कीजिये, वहाँ के किसी डॉक्टर से बात कीजिए, गेस्ट हाउस के मालिकों से पूछिए, देश के विश्वविद्यालयों (JNU, Aligarh Muslim Univesity, Jamia Hamdard, Hyderabad University etc और जिनमे प्राइवेट विश्वविद्यालय भी है) और कालेजों में पढने वाले कश्मीरी छात्रों से पूछिए, मिल जाएगा कुछ किताबों के नाम, "जिनमे भारतीय होना कश्मीर घाटी के लिए एक दुस्वपन की तरह बताया गया है"|

कभी इन किताबों को पढ़ के देखिए, जुड़ जायेंगे खुद ही, ऐसे ही जैसे कामवासना ज्ञान के लिए वात्स्यायन के लिखे कामसूत्र से लोग जुड़ जाते है|

एक भारतीय होने के बावजूद मुझे और टीम को सोपोर, अनंतनाग, बारामुला, सोपियन इत्यादि जिलों में जाने पर भी डर लगता था, २२ दिन रहा था कश्मीर घाटी में, खुबसूरत वादियों में, हरियाली से सराबोर माहौल में...... पर जाने किसकी नजर लग गई है इसे?

मिल जाएगा कुछ प्रश्नों का पुलिंदा, जैसे यासीन मलिक, लाल चौक के लफड़े....... सोपोर में हर शुक्रवार होने वाले धमाके!

Tuesday, May 31, 2016

चलना हमारा काम है!

बचपन में आठ लाइन की दो- तीन कविताएँ रट लिया करता था, जो मुख्यतः होती थी, "मछली जल की रानी है, उसका जीवन पानी है..." और मैथिली शरण गुप्त जी का "नर हो ना निराश करो मन को, कुछ काम करो कुछ काम करो...."| वस्तुतः ये कविताये याद करने का मुख्य कारण था, परीक्षा में आठ लाइन की लिखने के लिए आना| आज इन कवियों के पंक्तियों में जोश, भावना, मानवता नजर आता है| जो उपयोगी है सीखने और जीवन को समझने के लिए, संघर्ष करने के लिए, जीतने के लिए, लड़ने के लिए, गिर कर खड़े होने के लिए........
आज जब इस कविता पर नजर पड़ी तो मन ने खुद ब खुद उँगलियों को कॉपी पेस्ट करने के लिए उकसा लिया एक नया पोस्ट लिखने के लिए, 


शिवमंगल सिंह सुमन की कविता....


चलना हमारा काम है
गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूँ दर दर खड़ा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक न मंज़िल पा सकूँ, 
तब तक मुझे न विराम है, चलना हमारा काम है।
कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गईं
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।
जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरुद्ध, इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।
इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पड़ा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पड़ा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।
मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोड़ा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे? जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।
साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रुकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम, उसीकी सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।
फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूँदकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिश्रित गरल, वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है।