आज से ठीक पाँच साल पहले ६ जुलाई की सुबह मैं कश्मीर घाटी में पहली बार गया था, एक मोबाइल नेटवर्क को स्थापित करने वाले टीम का हिस्सा बनकर| ऐसी खुबसूरत वादी देखकर मैं मोहित हो गया था, अपने उस वक्त के भावनाओ वाकयों को लिखने के लिए वक्त चाहिए, जिसकी कमी है| परन्तु एक प्रश्न बार बार कौंध रही है, क्या हो रहा है कश्मीर को जिसके बारे में सही कहा गया है "Gar firdaus bar-rue zamin ast, hami asto, hamin asto, hamin ast"
बुरहन वानी का आतंकवादिओं से मेल और फौजिओं से मुठभेड़ में मौत, एक बार सोचने पर मजबूर करता है, ये संगठन काम कैसे करता है?
कौन करता है पीर-पंजाल पहाड़ी श्रृंखला में अशांति फैलाने का कृत्य?
कौन करता है बुरहन वानी, जाकिर भट, वासिम मल्ला आदि जैसे लाखों का ब्रेनवाश?
डल झील के पास किसी भी रेस्टोरेंट में पता कीजिये, वहाँ के किसी डॉक्टर से बात कीजिए, गेस्ट हाउस के मालिकों से पूछिए, देश के विश्वविद्यालयों (JNU, Aligarh Muslim Univesity, Jamia Hamdard, Hyderabad University etc और जिनमे प्राइवेट विश्वविद्यालय भी है) और कालेजों में पढने वाले कश्मीरी छात्रों से पूछिए, मिल जाएगा कुछ किताबों के नाम, "जिनमे भारतीय होना कश्मीर घाटी के लिए एक दुस्वपन की तरह बताया गया है"|
कभी इन किताबों को पढ़ के देखिए, जुड़ जायेंगे खुद ही, ऐसे ही जैसे कामवासना ज्ञान के लिए वात्स्यायन के लिखे कामसूत्र से लोग जुड़ जाते है|
एक भारतीय होने के बावजूद मुझे और टीम को सोपोर, अनंतनाग, बारामुला, सोपियन इत्यादि जिलों में जाने पर भी डर लगता था, २२ दिन रहा था कश्मीर घाटी में, खुबसूरत वादियों में, हरियाली से सराबोर माहौल में...... पर जाने किसकी नजर लग गई है इसे?
मिल जाएगा कुछ प्रश्नों का पुलिंदा, जैसे यासीन मलिक, लाल चौक के लफड़े....... सोपोर में हर शुक्रवार होने वाले धमाके!