Tuesday, May 3, 2016
Saturday, April 30, 2016
माहवारी और महिला
कुछ दिनों से हमारे देश में सामाजिक बुराइयों या लम्बे समय से चली आ रही प्रथा के खिलाफ मोर्चा (प्रदर्शन) करके चर्चा का विषय बना दिया गया। इसमें से ही एक था 'माहवारी के समय महिलाओं का मंदिरों में प्रवेश'।
वैसे तो समाज में केवल इस शब्द को ही बोलने से एक मनुष्य अपराध बोध हो जाता है, तो इस विषय पर चर्चा करना तो अनुपयोगी ही लगता है। फिर भी कुछ विद्वजनो ने इस मसले पर खूब प्रदर्शन किये, चर्चा किये, बहुत कुछ लिखे गए और बहुत कुछ बोले गए। कहीं पर लोगो द्वारा महीनो के उन दिनों में मंदिरों में प्रवेश अनुमति ना देना महिलाओं के अधिकारों का हनन बताया गया तो कहीं पर इसे पितृसत्तात्मक परिवार का देन माना गया।
जो भी हो, इन तर्क पर एक पुरुष होने के कारण मेरे कुछ शब्दों का समूह है.......
जो भी हो, इन तर्क पर एक पुरुष होने के कारण मेरे कुछ शब्दों का समूह है.......
परिवेश आधुनिक हो गया है, पर पुरातन काल में माहवारी के दिनों में रसोई घर में ना जाना, खाना ना बनाना, पूजा घर में प्रवेश ना करना, संभोग ना करने देना इत्यादि रोक कुछ कारणों से ही लगाया गया होगा। इसका मुख्यतः कारण माहवारी के समय होने वाला पेट दर्द, बुखार, सर दर्द, चक्कर आना, रक्तस्राव इत्यादि हो सकता है, जो कष्टकारी के साथ साथ शरीर में ऊर्जा की कमीं भी कर देता है। ऊर्जाविहीन शरीर को लेकर कहीं भी आना जाना ऐसा ही है जैसे आ बैल मुझे मार। आज भी महिलाएं माहवारी के पहले और दूसरे दिनों कुछ ना करने देना मेरे नजर में वैसा ही है जैसे एक कर्मचारी को रविवार को छुट्टी देना, शारीरिक थकान और मानसिक तनाव के समय इंसान को आराम करना ही बेहतर होता है।
कुछ दिनों पहले एक सर्वे पर नजर गई जिसमे बताया गया था कि आज भी लगभग सत्तर प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी नैपकिन या पैड का इश्तेमाल नहीं करती है। ग्रामीण और शहरी दोनों परिवेशों में अभी भी अज्ञानता या झिझक या फिर दोनों की वजह से इस विषय पर चर्चा करना नगण्य है।
इन मामलों में महिलाओं को आगे आना होगा और माहवारी पर समाज में फैले अज्ञानता और झिझक को मिटाना होगा।
भारत सरकार ने समाज में महिलाओं की साझेदारी बढ़ाने के उद्देश्य से राशन कार्ड में पुरुष मुखिया की जगह महिला मुखिया करने का निर्णय ले लिया है। जो मेरे समझ से एक उम्दा कदम है, जिससे सामाजिक परिदृश्य में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा।
भारत सरकार के द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से ग्रामीण इलाको में राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत आशा (Accredited Social Health Activist (ASHA)) से छ: रूपये में छ: सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराया जा रहा है। (क्लिक करें अधिक जानकारी के लिए)
दो तीन दिन पहले मैंने इन्डियन एक्सप्रेस न्यूज़पेपर में पढ़ी कि गुजरात सरकार 'तरुणी सुविधा कार्यक्रम' के अंतर्गत एक रुपये में छ: सैनिटरी पैड उपलब्ध करवाएगी। (क्लिक करें अधिक जानकारी के लिए)
ऊपर लिखे तथ्यों को इससे जोड़कर ना देखें कि मैं मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर लगे रोक का समर्थन करता हूँ। मेरा मानना है कि हमे अभी और भी मूलभूत सरंचनाए बनानी पड़ेंगी जिससे महिलाओं में माहवारी के दिनों में होने वाले दर्द से निजात मिले। इस टैबू (TABBO) और झिझक से मुक्ति मिले।
गर्लियापा का ये गाना आपके झिझक को दूर करने में कुछ मदद करेगा, जरूर देखें:-
#राजेश्वर_सिंह (#RajeshwarSingh)
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